मंगलवार, 15 नवंबर 2011

गृहिणियों का काम मल्टीटास्किंग के बिना चलता ही नहीं !


गृहिणियों के नजरिये से बताऊँ तो हमारा काम तो मल्टी टास्किंग के बिना चलता ही नहीं !
अखबार पढ़ते हुए चाय पीना के साथ टीवी भी देखना और इसी समय बच्चों की शरारतों पर नजर रखते हुए उन्हें टोकते हुए किचन में बन रही सब्जी का ध्यान भी रखना(ये सभी काम एक साथ करना ), कई बार पूछते हैं बच्चे, आपकी कितनी आँखें हैं !

गुरुवार, 10 नवंबर 2011

बेटियां क्यों नापसंद की जाती हैं ...नारी ब्लॉग पर!


बहुसंख्यक मध्यमवर्ग परिवारों में बच्चों की सीमित संख्या ( एक या दो ) होने के कारण अपनी ख़ुशी और सुविधा से उन्हें सुविधाएँ दी जाती हैं , इसलिए इस समय समाज में लड़कियों की घटती संख्या में मैं दहेज़ प्रथा को बड़े कारण के रूप में नहीं देख पा रही हूँ.
आजकल ससुराल पक्ष से अपने किसी भी कारण होने वाले मतभेदों को लिया- दिया जाने वाला धन या सामान की आड़ में दहेज़ प्रताड़ना का रूप देकर परेशान करने जैसी घटनाएँ ही ज्यादा देखने में आ रही हैं . (विश्वास कीजिये , यह एक बहुत बड़ा सच है ) , इसलिए दहेज़ प्रथा बंद हो जाए तो आपसी मतभेदों का एक कारण समाप्त किया जा सकता है मगर यह सीधे लड़कियों की घटती संख्या के लिए जिम्मेदार नहीं है . यदि दहेज़ ही एकमात्र कारण होता तो संपन्न मध्यमवर्गीय परिवारों में बेटियों को जन्म ना लेने देने जैसी घटनाएँ नहीं होती !
मध्यम वर्ग में लड़कियों के लिए दोहरे मानदंड हैं . असुरक्षित समाज में बेटियों को आत्मनिर्भर बनाना समय की मांग है , बढ़ते प्रतिस्पर्धी माहौल में जहाँ उन्हें आगे भी बढ़ना है , आत्मनिर्भर भी होना है , वहां उनके सहज व्यवहार को भी बारीकी से परखा जाता है, चरित्र का निर्धारण किया जाता है , इसके अतिरिक्त महिलाओ के प्रति बढती अपराधिक घटनाएँ भी एक प्रमुख कारण है !

बुधवार, 21 सितंबर 2011

बड़ा ब्लॉगर कौन!!

बड़ा ब्लॉगर कौन , वह जो टंकी पर चढ़ता हो या जिसके कमेन्ट प्रकाशित नहीं किये जा सके , या डिलीट करने पड़े ...
इधर हमारे भी एक दो कमेन्ट प्रकाशित नहीं किये गये तो हम भी भ्रम में रहे कि शायद बड़े ब्लॉगर बनने की पंक्ति में खड़े हैं , इसलिए सावधानी रखते हुए अपने कमेन्ट का लेखा जोखा रखते हुए एक ब्लॉग ही बना लेने की पहल की है . खुदा न खस्ता किसी दिन बड़े ब्लॉगर बन गये तो काम आयेंगे ..
अपना आशीर्वाद दीजियेगा !

1.जी हाँ , एक महिला को तब भी दुखी होना चाहिए जब उसे बंदरिया बना कर नचाया गया हो , वो भी एक दूसरी महिला के ब्लॉग पर ही ! http://mypoeticresponse.blogspot.com/2011/06/blog-post_23.html

मुझे जो कहना था दिव्या को मैं मेल में कह चूकी हूँ , उसकी पोस्ट पब्लिश होते ही !
(मेरा यह कमेन्ट भी बहुत सिफ्रारिश के बाद पब्लिश किया गया)

2.
Blogger रचना said...

वाणी
आप जिस दिन ये पोस्ट आयी थी उस दिन भी मुझे कह्चुकी हैं की एक पुरुष ब्लोग्गर ने आप को कहा की ये पोस्ट आप के ऊपर हैं
फिर आज भी आप ये बात दुहरा चुकी हने
आप मुझ पर ये भी संदेह कर चुकी हैं की मै और दिव्या एक ही हैं और पूछ भी चुकी हैं
अब इसके बाद कुछ और कहने को रह ही क्या जाता हैं

September 21, 2011 11:40 AM

3.
Blogger वाणी गीत said...

@ जी हाँ , रचना जी , मुझे आभास हुआ था कि कहीं आप दिव्या के नाम से ही तो नहीं लिखती हैं , ये मुझे किसी ने बताया नहीं था , पोस्ट लिखने के अंदाज से मुझे ऐसा महसूस हुआ , और मैंने आपसे पूछा , आपने बता दिया तो बात साफ़ हो गयी ...और बात वहीं ख़त्म हो गयी!

@ मुझे किसी पुरुष ब्लॉगर ने ये नहीं कहा कि ये पोस्ट मुझ पर लिखी गयी है , मुझे सिर्फ इसका लिंक दिया गया था !
मेरा कमेन्ट लिखने का आशय यह है कि आहत करने वाली बात आहत ही करती है , वो चाहे पुरुष/महिला द्वारा पुरुष /महिला के लिए लिखी गयी हो !

September 21, 2011 12:08 PM

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4.
Blogger रचना said...

आपने बता दिया तो बात साफ़ हो गयी

to phir aap ke pehlae kament kaa kyaa auchitya haen tab bhi aap mujh sae puchh chuki thee

baat tab bhi usii din saaf ho gyaee thee
aur aap chaet par aaj bhi puchh chuki haen

rahii baat aahat honae ki
to baebaat aahat hona agar aap ko ruchtaa haen to yae aap kaa adhikaar haen mujhae koi aaptti nahin haen

maene yae patr divya kae liyaa likha haen
uttar wo daegi nahin daegi yae uski marzi haen

September 21, 2011 12:16 PM

5.
Blogger ZEAL said...

.

रचना दीदी ,
पत्र का जवाब शीघ्र दूँगी । तबियत बहुत खराब है। थोडा संभलने दीजिये।

वाणी दीदी,
आपके मन में ये संशय भी आया की रचना और दिव्या एक हैं, तो सचमुच मैं धन्य हुयी। एक बात सच कह दूं तो....मैं तो रचना दीदी के पैर की धूल भी नहीं। इतना साहस विरले ही किसी स्त्री के पास होता है । काश मैं उनके जैसी बन सकती।

एक बात और --आपने अपनी टिप्पणी मेल से क्यूँ लिखी थी ? जब सब कुछ सार्वजनिक और पारदर्शी है तो पब्लिक में लिखने से डर किस बात का था ? लेकिन आपकी विवशता समझ सकती हूँ। आपने मेल से क्यूँ लिखा उसका कारण जानती हूँ और आपके निर्णय का सम्मान करती हूँ।


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मेरा कमेन्ट जो पब्लिश नहीं किया गया कुछ और शब्द बाद में जोड़े ....


पब्लिकली नहीं लिखने का कोई डर या कारण नहीं है ...मगर बार बार ब्लॉगिंग छोड़ जाने की बात कहना , वो भी मनोविज्ञान की जानकार से, मुझे अच्छा नहीं लगता . मैं किसी से ब्लॉगिंग छोड़ जाने की अपील नहीं करती , जिसको नहीं रुचता है , छोड़ दे, मगर किसी कि पोस्ट को आधार बना कर नहीं ...ऐसे थोड़े ना चलता है कि हम किसी को कुछ भी कह दें , किसी पर कैसा भी व्यंग्य करें और जब हमारी बारी आये तो सौ तोहमतें लगा दें कि आपके कारण हम छोड़ कर जा रहे हैं / यहाँ बड़ों का सम्मान नहीं किया जाता./गाली गलौज शुरू कर दी जाए ...आदि आदि ...व्यंग्य या हंसी मजाक करने के आदि हैं तो उन्हें झेलने का माद्दा भी रखना चाहिए ! मेरे विचार स्त्री और पुरुष दोनों के लिए समान ही होते हैं , सही मायनो में बिना जेंडर बायस्ड हुए!
मेरा मेल करने का कारण था कि आपने एक बार अस्वस्थ रहने की बात की थी ...और दो दिन तक आपने मेल का कोई जवाब नहीं दिया , और आज रचनाजी के बुलाते ही आप स्वस्थ हो गयी ! मैं फिर से कह रही हूँ कि आपके ब्लॉगिंग छोड़ जाने के कारण नहीं , आपकी अस्वस्थता से परेशान हुई हूँ मैं , क्योंकि इतनी इंसानियत मुझमे हमेशा रही है ...मैं दूसरों की बीमारी का जश्न नहीं मनाती !