अखबार पढ़ते हुए चाय पीना के साथ टीवी भी देखना और इसी समय बच्चों की शरारतों पर नजर रखते हुए उन्हें टोकते हुए किचन में बन रही सब्जी का ध्यान भी रखना(ये सभी काम एक साथ करना ), कई बार पूछते हैं बच्चे, आपकी कितनी आँखें हैं !
मंगलवार, 15 नवंबर 2011
गृहिणियों का काम मल्टीटास्किंग के बिना चलता ही नहीं !
अखबार पढ़ते हुए चाय पीना के साथ टीवी भी देखना और इसी समय बच्चों की शरारतों पर नजर रखते हुए उन्हें टोकते हुए किचन में बन रही सब्जी का ध्यान भी रखना(ये सभी काम एक साथ करना ), कई बार पूछते हैं बच्चे, आपकी कितनी आँखें हैं !
गुरुवार, 10 नवंबर 2011
बेटियां क्यों नापसंद की जाती हैं ...नारी ब्लॉग पर!
बुधवार, 21 सितंबर 2011
बड़ा ब्लॉगर कौन!!
वाणी
आप जिस दिन ये पोस्ट आयी थी उस दिन भी मुझे कह्चुकी हैं की एक पुरुष ब्लोग्गर ने आप को कहा की ये पोस्ट आप के ऊपर हैं
फिर आज भी आप ये बात दुहरा चुकी हने
आप मुझ पर ये भी संदेह कर चुकी हैं की मै और दिव्या एक ही हैं और पूछ भी चुकी हैं
अब इसके बाद कुछ और कहने को रह ही क्या जाता हैं
September 21, 2011 11:40 AM
@ जी हाँ , रचना जी , मुझे आभास हुआ था कि कहीं आप दिव्या के नाम से ही तो नहीं लिखती हैं , ये मुझे किसी ने बताया नहीं था , पोस्ट लिखने के अंदाज से मुझे ऐसा महसूस हुआ , और मैंने आपसे पूछा , आपने बता दिया तो बात साफ़ हो गयी ...और बात वहीं ख़त्म हो गयी!
@ मुझे किसी पुरुष ब्लॉगर ने ये नहीं कहा कि ये पोस्ट मुझ पर लिखी गयी है , मुझे सिर्फ इसका लिंक दिया गया था !
मेरा कमेन्ट लिखने का आशय यह है कि आहत करने वाली बात आहत ही करती है , वो चाहे पुरुष/महिला द्वारा पुरुष /महिला के लिए लिखी गयी हो !
September 21, 2011 12:08 PM
आपने बता दिया तो बात साफ़ हो गयी
to phir aap ke pehlae kament kaa kyaa auchitya haen tab bhi aap mujh sae puchh chuki thee
baat tab bhi usii din saaf ho gyaee thee
aur aap chaet par aaj bhi puchh chuki haen
rahii baat aahat honae ki
to baebaat aahat hona agar aap ko ruchtaa haen to yae aap kaa adhikaar haen mujhae koi aaptti nahin haen
maene yae patr divya kae liyaa likha haen
uttar wo daegi nahin daegi yae uski marzi haen
September 21, 2011 12:16 PM
.
रचना दीदी ,
पत्र का जवाब शीघ्र दूँगी । तबियत बहुत खराब है। थोडा संभलने दीजिये।
वाणी दीदी,
आपके मन में ये संशय भी आया की रचना और दिव्या एक हैं, तो सचमुच मैं धन्य हुयी। एक बात सच कह दूं तो....मैं तो रचना दीदी के पैर की धूल भी नहीं। इतना साहस विरले ही किसी स्त्री के पास होता है । काश मैं उनके जैसी बन सकती।
एक बात और --आपने अपनी टिप्पणी मेल से क्यूँ लिखी थी ? जब सब कुछ सार्वजनिक और पारदर्शी है तो पब्लिक में लिखने से डर किस बात का था ? लेकिन आपकी विवशता समझ सकती हूँ। आपने मेल से क्यूँ लिखा उसका कारण जानती हूँ और आपके निर्णय का सम्मान करती हूँ।