tag:blogger.com,1999:blog-74456941324479684112024-02-20T18:40:19.577-08:00कहानियां सुनाती हैं …......... जिंदगी से मिले तमाम अनुभव और कल्पनाएँ मिलकर बुनती है कहानियां ....वाणी गीतhttp://www.blogger.com/profile/01846470925557893834noreply@blogger.comBlogger11125tag:blogger.com,1999:blog-7445694132447968411.post-91414965630507189962021-06-29T22:15:00.002-07:002021-06-29T22:15:43.677-07:00वरना लड़कियाँ इतना खुश कैसे रह लेतीं...<p> </p><span style="font-family: arial; font-size: 14px; line-height: 25px; text-align: -webkit-auto;">एक ज़माने में सभी लड़कियां खूबसूरत थी या नहीं रोती बहुत थी. चक्की चलाते आटा पिसती , तेज धूप में मीलों सिर पर पानी की गागर उठाये चलती , कपास कातती, खेतों से सिर पर मनों वजन उठाये उबड़ खाबड़ सड़क पर लड़खड़ा कर चलते सहमकर बातें करती , हंसती मुस्कुराती यूँ कि जैसे रोती थी .</span><div><span style="font-family: arial;"><span style="font-size: 14px;"><br /></span></span><span style="font-family: arial; font-size: 14px; line-height: 25px; text-align: -webkit-auto;">वक़्त से पहले झुकती कमरें , चेहरों की झुर्रियों वाली उन रोती हुई उदास स्त्रियों में से ही किसी एक ने रची एक कहानी , यह सोच कर कि उनकी बेटी को भी यूँ ही रोना ना पड़े ....</span></div><div><span style="font-family: arial;"><span style="font-size: 14px;"><br /></span></span><div style="font-family: arial; font-size: 14px; line-height: 25px; text-align: -webkit-auto;">ठुड्डी पर दोनों हाथ टिकाये एक उदास बच्ची को उसकी माँ ने पास बुलाया , गुदगुदाया ...क्या हुआ ?</div><div style="font-family: arial; font-size: 14px; line-height: 25px; text-align: -webkit-auto;"><br /></div><div style="font-family: arial; font-size: 14px; line-height: 25px; text-align: -webkit-auto;">कुछ नहीं ...अनमनेपन से नहीं कहते हुए उसकी आँखों के पीछे उदासियों का शुष्क समंदर लहराया ... </div><div style="font-family: arial; font-size: 14px; line-height: 25px; text-align: -webkit-auto;"><br /></div><div style="font-family: arial; font-size: 14px; line-height: 25px; text-align: -webkit-auto;">हूँ ...माँ की आँखों में प्रश्न नहीं थे ! वह भी कभी एक ऐसी ही उदास बच्ची थी , उसकी नानी भी , दादी भी ....</div><div style="font-family: arial; font-size: 14px; line-height: 25px; text-align: -webkit-auto;"><br /></div><div style="font-family: arial; font-size: 14px; line-height: 25px; text-align: -webkit-auto;">मगर उस माँ को इन उदासियों को यही रोक देना था ...</div><div style="font-family: arial; font-size: 14px; line-height: 25px; text-align: -webkit-auto;"><br /></div><div style="font-family: arial; font-size: 14px; line-height: 25px; text-align: -webkit-auto;">तुम्हे पता है , मैं जब छोटी थी मेरे माँ ने मुझे एक कहानी सुनायी थी , तुम सुनोगी ...</div><div style="font-family: arial; font-size: 14px; line-height: 25px; text-align: -webkit-auto;"><br /></div><div style="font-family: arial; font-size: 14px; line-height: 25px; text-align: -webkit-auto;">हाँ हाँ. क्यों नहीं ! मगर परियों वाली , सफ़ेद घोड़े के राजकुमार की कहानी तो तुम मुझे कई बार सुना चुकी ....अब लड़की की आँख में आकाशदीप झलका.</div><div style="font-family: arial; font-size: 14px; line-height: 25px; text-align: -webkit-auto;"><br /></div><div style="font-family: arial; font-size: 14px; line-height: 25px; text-align: -webkit-auto;">कहानी तो सुनायी मैंने , लेकिन कहानी कहते हुए माँ ने जो कहा , मैंने नहीं सुनाया ...तुम्हे पता है जिस वक़्त परमात्मा ने सृष्टि रची , स्त्री को बनाया , उसी समय उस ने किसी को उसके लिए बनाया जो उसे हर समय प्रेम करता है , हर स्थिति में , उसके होने में , ना होने में ! अच्छे- बुरे होने में , सफल -असफल होने में ! वह उसे कभी मिलता है , कभी नहीं मिलता है , कभी दिखता है , कभी नहीं दिखता है ...मगर वह होता है या होती भी है ! </div><div style="font-family: arial; font-size: 14px; line-height: 25px; text-align: -webkit-auto;"> </div><div style="font-family: arial; font-size: 14px; line-height: 25px; text-align: -webkit-auto;">ऐसा हो सकता है मां , ऐसा होता है !! बच्ची की आँखें विस्फारित हो गईं.</div><div style="font-family: arial; font-size: 14px; line-height: 25px; text-align: -webkit-auto;"><br /></div><div style="font-family: arial; font-size: 14px; line-height: 25px; text-align: -webkit-auto;">हाँ. होता है ना ! वह हमेशा सफ़ेद घोड़े पर आने वाला राजकुमार ही नहीं होता . हाथ पकड़कर पुल पार कराने वाला पिता भी हो सकता है . चोटी खींच कर भाग जाने वाला भाई , रूठ कर मनाने वाली बहन , चिढाते रहने वाला मित्र . कोई भी हो सकता है ...वह दृश्य हो या अदृश्य , मगर वह होता जरुर है ! </div><div style="font-family: arial; font-size: 14px; line-height: 25px; text-align: -webkit-auto;"><br /></div><div style="font-family: arial; font-size: 14px; line-height: 25px; text-align: -webkit-auto;">लड़की की आँखों के शुष्क समंदर में आशाओं का पानी उतर आया था ...</div><div style="font-family: arial; font-size: 14px; line-height: 25px; text-align: -webkit-auto;"><br /></div><div style="font-family: arial; font-size: 14px; line-height: 25px; text-align: -webkit-auto;">तुमने मुझे बताया , मगर सब उदास बच्चों को कैसे पता होगा ....</div><div style="font-family: arial; font-size: 14px; line-height: 25px; text-align: -webkit-auto;"><br /></div><div style="font-family: arial; font-size: 14px; line-height: 25px; text-align: -webkit-auto;">तुम उनको यही कहानी सुनाना !</div><div style="font-family: arial; font-size: 14px; line-height: 25px; text-align: -webkit-auto;"><br /></div><div style="font-family: arial; font-size: 14px; line-height: 25px; text-align: -webkit-auto;">लड़की ने इस कहानी के आगे सोचा ... कहानी सुनाने के साथ वह स्वयं भी तो वैसी ही हो जाए तो जैसे कि किसी को ईश्वर ने किसी के लिए बनाया , उसे भी बनाया ...</div><div style="font-family: arial; font-size: 14px; line-height: 25px; text-align: -webkit-auto;">आँचल के साए में घेर लेने वाली मां , अनुशासन में सुरक्षित रहने की सीख देता पिता , उसकी पसंद की चीज बहुत खिझा कर देने वाला वाला स्नेहिल भाई या बहन , सन्मार्ग को प्रेरित करता मित्र , कंटीली राहों पर क़दमों के नीचे फूल बिछाने वाला प्रेमी या हाथ पकड़कर हर मुश्किल में साथ रहने वाली प्रेमिका ....</div><div style="font-family: arial; font-size: 14px; line-height: 25px; text-align: -webkit-auto;">वह जितनी अपने करीब आती गयी वैसी ही होती गयी जैसे कि ईश्वर ने उसे किसी के लिए बनाया . </div><div style="font-family: arial; font-size: 14px; line-height: 25px; text-align: -webkit-auto;">उस लड़की ने कहानी में सब कहा , जोड़ा और स्वयं भी वैसी हो गयी . जब वह लड़की बड़ी हुई , माँ हुई तब उसने अपनी बेटी को सुनायी यही कहानी ... पीढ़ी दर पीढ़ी सब कहते सुनते गये , खुशहाल होते गये ....</div><div style="font-family: arial; font-size: 14px; line-height: 25px; text-align: -webkit-auto;">वरना ऐसा कैसे हो सकता था कि लड़कियां इतनी खुश रह लेती !!!!</div></div>वाणी गीतhttp://www.blogger.com/profile/01846470925557893834noreply@blogger.com7tag:blogger.com,1999:blog-7445694132447968411.post-8453293615455371382021-06-26T02:45:00.003-07:002021-06-26T02:54:45.362-07:00जिन खोजा तीन पाइयां...<p> चाय बना लाती हूँ - कहती माला रसोई जाने केे लिए मुड़ी तो विद्या भी उसके साथ हो ली यह कहते हुए कि मैं भाभी की मदद करती हूँ.</p>आपके पापा के बारे में सुना था तबसे ही आपसे मिलने का मन हो रहा था. कैसे क्या हो गया था!<br />चाय की पतीली गैस पर रखते माला भीगी पलकों से सब बताती रही.<br />बहुत बुरा हुआ लेकिन पीछे रह जाने वालों को हिम्मत रखनी पड़ती है. चाय विद्या ने ही कप में छानी. बिस्किट, नमकीन करीने से प्लेट में रखते हुए माला फिर से सुबक पड़ी.<br />अपना ख्याल रखो भाभी. कितनी कमजोर हो गई हो.<br />नन्हीं काया भी तुम्हारे पास है. और देखो , हर समय रोते रहने से कुछ हासिल नहीं है. उलटा सामने वाला भी परेशान हो जाता है. स्वयं स्वस्थ न रहो तो कोई एक गिलास पानी भी नहीं पूछता. शेखर अकेले कितना और कब तक ध्यान रखेगा..<br /><br />ठीक कहती हो विद्या. मैं भी सोचती हूँ मगर...<div><br />दुख और शर्म की मिली जुली अनुभूति इंसान को कितना दयनीय बना देती है. सोचती हुई विद्या ने माला का हाथ पकड़ कर हौले से दबाया. दर्द को अनकही संवेदना ने चेहरे की स्मित मुस्कुराहट में बदल दिया.<br /><br />चाय बन गई या कहीं बाहर से ही आर्डर कर दें ! <br />उधर से हल्के ठहाके के साथ कमल की आवाज आई तो दोनों चाय और नाश्ते के साथ बैठक में आ गईं. दोनों के साथ कुछ हल्की- फुल्की इधर उधर की बातों से माला भी सहज हो आई थी.<br /><br />आज फिर से कक्षा अध्यापिका के बुलावे ने उसे चिंता में डाल दिया था. क्या कहेगी शेखर को, कैसे सामना करेगी उसका. जैसे अपने हाथों पैरों पर नियंत्रण न रहा उसका. साँसें जैसे डूबती सी जातीं थीं. दवाईयों के डब्बे से ब्लड प्रेशर की दवा ढ़ूँढ़ कर ले ली मगर घबराहट पर काबू ही न था. अकेली क्या करेगी वह.<br />काया को गोद में उठाया और दरवाजे की कुंडी लगाकर पड़ोस के वर्मा जी के घर चली आई. मिसेज वर्मा उसकी मानसिक स्थिति समझती थीं. अपने काम निपटाकर माला के पास आ बैठतीं थी कई बार. उसके गोद से काया को लेकर सुला दिया . माला वहीं सोफे पर पसर गई. अपनी घबराहट पर नियंत्रण न रख पाई और फूट फूट कर रो पड़ी. मिसेज वर्मा ने उसे पानी पिलाया और सिर पर हाथ फेरते बहुत समझाया भी.<br />दवा से कुछ फायदा नहीं हो रहा तो किसी पीर देवता से झाड़ा लगवा आयें या फिर किसी देवी -देवता को पूछ लेते हैं. अगली गली में वह कन्नू रहता है न , उस पर छाया आती है. कहते हैं सब सच बताता है. कुछ टोना टोटका कर दिया हो किसी ने या कोई देवताओं का दोष हो. या फिर छोटा बाजार चल आयें . वहाँ फूली देवी में माता आती है. झाड़ा भी देती हैं और साथ ही देसी दवा भी . बहुत लोगों को फायदा होते देखा है.<br /><br />देवी देवता, झाड़ फूँक सुनते माला कुछ चौकन्नी सी हो गई. विज्ञान का ज्ञान उसे इन सब बातों पर विश्वास न करने देता था. मगर काया की तबियत खराब होने पर दवा देते हुए भी राई लूण करना नहीं भूलती थी. या फिर कपड़े की कतरनों से वारते हुए भी नजर उतारने का टोटका कर ही लेती थी. करने को कार्तिक में करवा चौथ पर चंद्रमा के दर्शन कर उसकी पूजा भी करती ही थी जबकि उसे स्कूल में पढ़े गये विज्ञान के सबक अच्छी तरह याद थे कि चंद्रमा एक उपग्रह मात्र ही है . उसकी रोशनी भी उसकी अपनी नहीं. वह सूर्य के प्रकाश से ही चमकता है. मगर कुछेक अवसरों पर दिमाग की खिड़कियों को बंद कर श्रद्धा के वशीभूत हो किये गये शुभ कार्य एक सुकून या प्रसन्नता का भाव उत्पन्न करने में सहायक होते हैं. पारिवारिक और सामाजिक मेलजोल के ये पर्व या व्रत त्योहार रूढ़ि में न बदलने तक एक प्रकार से दैनिक कार्यों जैसे आवश्यक से ही हो जाते हैं और रससिक्त कर सुख और आनंद की अनुभूति देते हैं.<br /><br />नहीं. अभी इसकी जरूरत नहीं. कुछ आराम मिला है मुझको. यदि आवश्यक हुआ तो हम जरूर चलेंगे वहाँ.<br /><br />अब तक पैर समेट कर आराम की मुद्रा में बैठती माला संयत हो चली थी. मिसेज वर्मा की बेटी शुभी चाय बना लाई थी. किशोरवय की उनकी पुत्री चपल और हँसमुख होने के साथ सुघड़ भी थी. काया के साथ खेलते बतलाते माहौल को सुखद बनाने में अपनी भूमिका में कुशल लगती थी वह.<br /><br />अब चलती हूँ मैं. शेखर के आने का समय भी हुआ जा रहा. फिर इसका होमवर्क भी कराना है. </div><div>काया की अँगुली पकड़ते वह उठ खड़ी हुई . मगर घर की ओर मुड़ते कदम उसे फिर से चिंता में डाले जाते थे. क्या कहेगी शेखर को वह. क्यों बुलावा आया होगा स्कूल से...<br /><br />अभी दरवाजे पर लगा ताला खोला भी न था कि पीछे से दौड़ती हाँफती शुभी उसकी साड़ी का पल्ला खींचते उसे जल्दी वापस उसके घर चलने को कहने लगी.</div><div><br />जल्दी चलिये . माँ ने बुलाया है.</div><div> कहते उसने काया को गोद में उठा लिया.</div><div><br />अरे! घबराइये मत. कोई आया है घर पर. माँ आपसे मिलवाना चाहती है.</div><div><br />कौन होगा जिससे मिलवाना इतना जरूरी है कि उसके लिए शुभी इस तरह दौड़ती भागती चली आई. काया और शुभी को पीछे छोड़ लंबे डग भरती हुई माला अगले ही पल में मिसेज वर्मा के सामने थी.<br /><br />आओ माला. कितनी अच्छी बात है न. अभी कुछ ही समय पहले इसकी बात कर रहे थे हम . तुम जैसे ही बाहर निकली इसका आना हुआ. जानती हो न इसको.<br /><br />हाँ . आपकी गली में बच्चों के साथ खेलते इसे कई बार देखा है. चेहरे से पहचानती हूँ.<br /><br />अरे. यही तो है कन्नू जिसके बारे में मैं बता रही थी. वही जिस पर देवता की छाया है. आगे के शब्द फुसफुसाते से कहे थे उन्होंने.<br /><br />जा शुभी. भैया के लिए पानी भर ला लोटे में. एक आसन भी दे जा बिछाने को.<br /><br />अनमनी सी हो उठी थी माला. यह क्या कर रही हैं मिसेज वर्मा. उसे विश्वास नहीं इन ढ़कोसलों पर. कैसे कहे उसके सामने ही. मगर तब तक शुभी आसन बिछा चुकी थी. उसके सामने पानी का लोटा भी रख दिया गया था.<br /><br />कैसे भागे यहाँ से सोच रही थी माला . शेखर को पता चला तो कितना गुस्सा होगा. तब तक कन्नू जी आसन पर जम चुके थे. हाथ पैरों को बल खाने की मुद्रा में लाते उसकी आँखें हल्की ललाई लिये थीं. आसन पर बैठे मरोड़े खाते देख मिसेज वर्मा उसके सामने जा बैठीं. इशारे से शुभी को काया को वहाँ से ले जाने को कहते हुए माला का हाथ खींचकर अपने पास ही बैठा लिया.<br /><br />बोलो महाराज. क्या बात है. क्या कष्ट है!</div><div><br />मिसेज वर्मा की उत्सुकता देखते बनती थी वहीं माला सकुचा रही थी. किस फेर में पड़ गई आज वह.<br />उधर कन्नू के शरीर के झटके बढ़ते जा रहे थे . नहीं के इशारे में जोर से गरदन हिलाते हुए वह छटपटाता सा दिख रहा था. कुछ कहने के लिए मुँह खोलता कि उढ़के से दरवाजे पर जोर से खट की आवाज आई. वर्मा जी तेजी से घर में घुसे थे.<br /><br />ये क्या हो रहा है यहाँ...</div><div><br />तत्क्षण ही तेजी से पानी का लोटा उठाकर गटकते कन्नू अपनी गरदन ढ़हाते जमीन पर लोट गया. कुछ ही सेकंड में वापस अपनी स्वाभाविक स्थिति में उठ भी बैठा. सब कुछ इतने कम समय के अंतराल में हुआ कि माला समझ नहीं पाई कि आखिर हुआ क्या था.<br />कन्नू वर्माजी का अभिवादन करते हुए उठकर डाइनिंग टेबल की कुर्सी पर जम चुका था.<br /><br />वर्मा जी घर के भीतर चले गये तो मिसेज वर्मा ने धीमे स्वर में माला से कहा... अभी देवता चले गये पर कुछ असर तो रहेगा. पूछती हूँ तुम्हारी समस्या के बारे में.<br /><br />इनके पिताजी के देहांत के बाद इसकी तबियत ठीक नहीं रहती. पेट में अजीब सा दर्द बताती है. खाना पचता नहीं . दिन पर दिन कमजोर हुई जा रही. दवा लेते दो तीन महीने हुए. कुछ असर नहीं हो रहा. कहीं पैर तो नहीं पड़ गया इनका कहीं.<br /><br />अब तक मिसेज वर्मा और माला भी कुर्सियों पर बैठ चुकी थीं.<br /><br /> हम्म्म्... पिता जी के जाने के बाद.... एक जोर की साँस ली कन्नू ने और रूआँसी सी हुई माला की ओर देखा.<br /><br />क्यों रोती हो इतना. किसके लिए रो रहे. क्या समझते हो . तुम अमर हो. ये जीवन है. इसका क्या भरोसा. सोचो कल ही तुम्हें कुछ हो गया तो.... तुम्हारा इस समय का रोना क्या काम आयेगा.<br /><br />कान के पर्दे पर जैसे किसी तीक्ष्ण वस्तु का वार हुआ. भय से सिहर उठी माला. पाँच वर्ष की नन्ही सी काया , अकेले पड़ता शेखर... इतनी सी देर में क्या- क्या नहीं सोच लिया उसने.<br /><br />मैं चलती हूँ. शेखर परेशान होंगे.</div><div> काया को गोद में उठाये माला दौड़ती सी घर आ पहुँची. शेखर घर आ चुका था. स्कूटर भीतर रखने के लिए मेनगेट पूरा खोलता हुआ रूक गया.<br /><br />कहाँ गई थीं. अब क्या हो गया. </div><div>उसके मुरझाये हतप्रभ चेहरे को देखते कहा उसने.<br /><br />कुछ नहीं. काँपते हाथों से दरवाजे का ताला खोला माला ने. काया को गोद में लिए हल्की सिसकियों से शुरू हुई उसकी रूलाई जल्दी ही चीख कर रोने में बदल चुकी थी. शेखर और काया को अंक में समेटे कुछ देर फूट फूट कर रोती रही माला. होठों में ही अस्पष्ट शब्दों में बुदबुदाती. काया के उलझे बालों की लटें, तुड़ी मुड़ी सी यूनिफार्म को अँगुलियों से सही करते हुए . वह इतनी निर्दयी कब और कैसे हुई. पिता का जाना उसे इतना व्यथित कर रहा कि उसने पाँच वर्ष की नन्हीं काया के बारे में भी नहीं सोचा. अपने आपको इतना कमजोर कैसे कर सकती थी वह. उसके और काया के अच्छे भविष्य के लिए खटते शेखर के प्रति इतनी लापरवाह कैसे हो सकती थी वह. अपनी जिम्मेदारियों से कैसे भाग सकती थी. क्या उसका अपना दुख इस दूधमुंही काया के दुख से भी बढ़कर था...<br />उसके बालों में अँगुलियाँ फेरते शेखर ने उसे जी भर रो लेने दिया.<br /><br />तुम बहुत साहसी हो और हम दोनों का संबल भी. शेखर समझा रहा था और माला कल के नये सूर्य के साथ अपने भीतर ऊर्जा भरते हुए जिंदगी की ओर बढ़ रही थी. दर्द वहीं था अभी, अफसोस भी परंतु उसके साथ अपने उत्तरदायित्व को अच्छी तरह निभाने,का हौसला भी...।<br /><br />कितनी दवाईयाँ, कितनी किताबें और कितने मनोवैज्ञानिक नहीं समझा सकते थे जिसे एक अल्पशिक्षित अज्ञानी ने अनजाने में समझा दिया था उसे। देवी देवता के आने - जाने का पता नहीं और न कभी वह इस पर विश्वास भी कर पायेगी मगर जीवन मजबूती से चलते रहने का नाम है, दुर्लभ है . यह जरूर समझ चुकी थी माला. कमर कस कर आने वाली चुनौतियों से लड़ने को तैयार.<br /></div>वाणी गीतhttp://www.blogger.com/profile/01846470925557893834noreply@blogger.com13tag:blogger.com,1999:blog-7445694132447968411.post-65523968015885914592021-06-05T21:35:00.004-07:002021-09-26T10:34:01.951-07:00साड्डा कुत्ता कुत्ता त्वाडा कुत्ता टॉमी...<blockquote style="border: none; margin: 0px 0px 0px 40px; padding: 0px;"><p style="text-align: left;"> <span style="color: red; text-align: center;">में</span><span style="color: red; text-align: center;">म</span><span style="color: red; text-align: center;"> </span><span style="color: red; text-align: center;">साहब</span><span style="color: red; text-align: center;"> </span><span style="color: red; text-align: center;">की</span><span style="color: red; text-align: center;"> </span><span style="color: red; text-align: center;">पामेरियन</span></p></blockquote>कुत्तों के लगातार भौंकने की आवाज़ और गाड़ी के होर्न , कारिंदों की चहल -पहल से अनुमान लगाया कांता ने कि नगर निगम की गाड़ी आ गयी है ...आवारा कुत्तों को पकड़ने के लिए ... बोरी उठाये गली के कुत्तों के पीछे दौड़ते कर्मचारी और उनसे बच निकलने की कोशिश कुत्तों की ...बिल्ली चूहे या चोर पुलिस के खेल सा दृश्य दृष्टिगोचर होने लगता है ...आजादी की कीमत तो ये कुत्ते भी खूब समझते हैं .... गली के कोने पर कूं - कूं करता पड़ा हुआ टॉ<span>मी</span> कराह रहा था ..पूरे दो दिन से वही एक जगह पड़ा हुआ ....कुछ दिन पहले उसकी पीठ पर घाव का निशान देखा था कांता ने ...दूसरी गली के कुत्तों के साथ जंग में घायल हो गया था बेचारा ...उसके होते किसकी मजाल थी कि किसी दूसरी गली का कुत्ता आये और भौंक कर चला जाए ...मगर इस बार घाव गहरा था ....अब तो बिलकुल ही हिलना डुलना मुश्किल था ... पिछले कई महीनों से देख रही थी कांता इसे ...आस पास के घरों से रोटी मिल जाती थी और गली के कोने में ऐसे अलसाया पड़ा रहता मगर जैसे ही कोई अजनबी नजर आता कान खड़े हो जाते उसके . दौड़ा- भागा चलता आता ...भोंक -भोंक कर नाक में दम कर देता ...कई बार कांता जब सब्जी लेने या किसी काम से घर से निकलती तो वह भी साथ हो लेता ...बाकायदा गली के आखिरी छोर तक उसके साथ चलता ....बच्चे हँसते थे उसपर ... बॉडीगार्ड है आपका ....मोहल्ले वाले उसकी वफ़ादारी से बहुत प्रसन्न थे यहाँ तक कि कांता की कर्कशा पड़ोसन भी जो जब तब हर किसी से भिड़ जाती थी ...माली , सब्जी वाला , पेड -पौधों वाला , मोची ... ..मजाल है जो आजतक किसी को उसने वाजिब कीमत दी हो ..काम पूरा करवाने के बाद थोड़े बहुत पैसे बहुत एहसान के साथ पकड़ा देती इन लोगों को और यदि किसी ने साहस कर लिया पूरी कीमत मांग लेने का तो फिर उसकी खैर नहीं ....ऐसी महिला यदि किसी कुत्ते से खुश है , टिके रहने देती है गली में तो उसमे कुछ न कुछ ख़ास तो पक्का ही है ... मगर घाव खाया टॉ<span>मी</span> ( नाम कांता ने ही दिया था ) जब से बीमार पड़ा है उसके घाव में कीड़े पड़ गए हैं . वही महिला हाय तौबा मचाये रखती है ....जब भी कांता नजर आ जाती है उसे तो तीखा बोले बिना नहीं रहती ..." रोटी दे दे र हिला लियो ...कत्तो बास मार है ...लोगां ना कियां क्यां काम सूझ ...आपक घर में क्यूँ ना राख लेव " (रोटी खिला कर मुंह लगा लिया इसे ...कितनी बदबू मार रहा है ...लोगों को भी क्या क्या काम सूझते हैं , अपने घर में क्यूँ नहीं रख लेते )....<div style="text-align: center;"><a href="http://jnilive.mobi/wp-content/uploads/2010/05/12MAY2010dog_village.jpg" onblur="try {parent.deselectBloggerImageGracefully();} catch(e) {}"><img alt="" border="0" src="http://jnilive.mobi/wp-content/uploads/2010/05/12MAY2010dog_village.jpg" style="cursor: pointer; display: block; height: 205px; margin: 0px auto 10px; width: 282px;" /></a><span>टॉमी</span></div>आखिर कांता ने नगर निगम के पशु विभाग में फ़ोन कर बीमार कुत्ते की इत्तला कर दी ...और वही गाड़ी आ पहुंची थी उसे लेने ....इस हालत में टॉ<span>मी</span> भाग नहीं सकता था इस लिए आसानी से गिरफ्त में आ गया ....उसे ले जाते देख कांता को थोडा दुःख तो हुआ मगर उसे संतोष था कि पशु चिकित्सालय में उसका ठीक से इलाज़ हो सकेगा ...कम से कम उम्मीद तो यही थी !<div><br /><div> सुनो ! रामलीला मैदान में सहकार मेला लगा है , तिब्बती मार्केट भी लगा हुआ है ...आज फ्री हूँ ...जो लाना है चल कर ले आओ ...फिर मुझे समय नही होगा तो जान खाओगी ...</div><div>गाड़ी की धुलाई करते हुए कांता के पति ने पत्नी और बच्चों को कहा ... दोनों बच्चे बड़े खुश हो गए ...</div><div>हाँ हाँ, पापा चलिए . मुझे नयी डिजाईन की जैकेट लानी है ...शायद तिब्बती मार्केट में मिल जाए ... </div><div>व्यस्ततम बाजार में गाड़ी पार्क करते एक बड़ी सी गाड़ी पर कांता की नजर ठहर गयी ...उसकी खिड़की से एक सफ़ेद झक पामेरियन कुतिया झाँक रही थी ...</div><div><br /></div><div>"बेबी , मुंह अन्दर करो , डोंट क्राई"...उसकी मोटी -सी मालकिन गोदी में लेकर लाड़ दुलार कर रही थी ....बेबी के लिए एक अच्छा सा ब्लैंकेट देखना है , बहुत ठण्ड हो गयी है ..अपने पास बैठे व्यक्ति से कहा उसने .</div><div><br /></div><div>कांता को एकदम से <span>टॉमी</span> याद आ गया ....देशी कुत्तों को कहाँ यह सब नसीब है ...बेचारे गली -गली भटकते रहते हैं , अक्सर दुत्कारे जाते हैं ...कोई तरस खाकर कुछ खिला दे तो ठीक वरना .... </div><div>तभी देखा उसने एक गन्दा सा लड़का मिट्टी में सना कपड़े से उस महिला की गाडी साफ़ करता रिरिया रहा था.....दो रूपये दे दीजिये ...</div><div>अपने पप्पी के मुंह में महंगे बिस्किट ठूंसती महिला ने मुंह फेर कर अपने ड्राईवर से कहा - </div><div>अरे , हटाओ इसे ...गाड़ी साफ़ कर रहा है या और गन्दी कर देगा ...हटाओ इसे यहाँ से .</div><div>कांता की उदासी बढ़ती गयी ....नर्म बिस्तर , ममतामयी गोद , गरम कपड़े ,महंगा खाना .... देशी कुत्ते ही क्यों , बिना घर बार वाले अनाथ बच्चों या घर -बार होकर भी मांगने को विवश बच्चों से भी अच्छे हैं विदेशी कुत्तों के नसीब.......</div><div>एक गहरी सांस लेकर खुद को सामान्य रखने की कोशिश करती मेले की ओर बढ़ चले कांता के कदम ... </div><div><br /></div><div>चित्र गूगल से साभार ....</div></div>वाणी गीतhttp://www.blogger.com/profile/01846470925557893834noreply@blogger.com3tag:blogger.com,1999:blog-7445694132447968411.post-39980167865641960852017-04-11T19:02:00.002-07:002021-09-26T10:41:36.047-07:00छोटी पहचान लंबा इंतजार......<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div style="font-family: arial; line-height: 25px; text-align: -webkit-auto;">
<span style="font-size: large; line-height: 32px;">उबासियाँ </span>लेते हुए मेनगेट का लॉक खोला और उसने एक लम्बी सांस ली . सुबह की ताजा हवा की ठंडक कलेजे तक भर गयी . पेड़ पौधों को निहारते पीले गुलाब के फूल पर उसकी नजर टिक गयी . अधखिले फूल को प्यार से सहलाते मुस्कुरा पड़ी .</div>
<div style="font-family: arial; line-height: 25px; text-align: -webkit-auto;">
कमरे से बाहर निकलते बेटी की नजर माँ की इस बचकाना हरकत पर पड़ी तो हँस पड़ी -आप हमसे ज्यादा इन फूलों से प्यार करती हैं .संभालिये अपने नन्हे -मुन्नों को . झूठ मूठ नाराज होने का नाटक करती हुई वापस अन्दर चली गयी .</div>
<div style="font-family: arial; line-height: 25px; text-align: -webkit-auto;">
पुष्प होते ही ऐसे हैं . किसी भी रंग- रूप -आकार में प्रकृति का सौन्दर्य बढ़ाते हैं .अपने छोटे से जीवन में खुशियाँ बाँट देते हैं . खुशियों से लेकर ग़म तक , मिलने से लेकर बिछड़ने तक के साथी होते हैं. किसे प्यार नहीं हो जाता होगा इन फूलों से !!</div>
<div style="font-family: arial; line-height: 25px; text-align: -webkit-auto;">
मुस्कुराते हुए गुनगुनाने लगी .</div><div style="font-family: arial; line-height: 25px; text-align: -webkit-auto;">कौन है ऐसा जिसे फूलों से , गीतों से,पंछियों से प्यार ना हो ....नहीं ....होते हैं बहुत लोग इस दुनिया में ऐसे भी , जिन्हें इनसे प्यार नहीं होता . हाँ ...सच ऐसे लोग भी होते हैं !!</div>
<div style="font-family: arial; line-height: 25px; text-align: -webkit-auto;">
फूल के पास पीली पड़ गयी पत्तियां तोड़ते एक कांटा चुभा उसके हाथ में और खून की कुछ बूँदें टपक गयी . यदि ये कांटे नहीं होते तो फूल कितने सुन्दर होते . सोचा उसने फिर तुरन्त ही ख्याल आया शायद कांटे ही इन फूलों की रक्षा करते हैं वरना डाल पर इतनी देर तक शान से खड़ा मुस्कुराता ना होता . कांटा खुद दूसरों की आँखों की किरकिरी बन फूल की रक्षा करता है . एक ही पौधे पर पलते , एक जैसी ही <span style="line-height: 1.8;">हवा , धूप , चांदनी ,</span><span style="line-height: 1.8;"> </span><span style="line-height: 1.8;">मिट्टी और खाद मगर कितने अलग एक दूसरे से . एक पौधे पर पलने वाले फूल भी कौन से एक जैसे ही होते हैं !!</span></div>
<div style="font-family: arial; line-height: 25px; text-align: -webkit-auto;">
<span style="background-color: white; color: #262c2c; font-family: "helvetica" , "georgia" , "times new roman" , "times" , serif; line-height: 22px;">फूल और काँटा</span><span style="background-color: white; color: #262c2c; font-family: "helvetica" , "georgia" , "times new roman" , "times" , serif; line-height: 22px;"> , पुष्प की अभिलाषा , कितनी कवितायेँ याद हो आती हैं ...</span><br />
<span style="background-color: white; color: #262c2c; font-family: "helvetica" , "georgia" , "times new roman" , "times" , serif; line-height: 22px;"><br /></span>
<span style="background-color: white; color: #262c2c; font-family: "helvetica" , "georgia" , "times new roman" , "times" , serif; line-height: 22px;">मन की गति कितनी चंचल है , क्षणांश में ही कितने मीलों की यात्रा . सुबह -सुबह उसके ख्यालों की उड़ान कितनी ऊँची उड़ गयी ...खुद को धमकाते हुए कह उठी , अब काम पर लग जाओ ....</span></div><div style="font-family: arial; line-height: 25px; text-align: -webkit-auto;"><span style="background-color: white; color: #262c2c; font-family: "helvetica" , "georgia" , "times new roman" , "times" , serif; line-height: 22px;"><br /></span></div>
<div style="font-family: arial; line-height: 25px; text-align: -webkit-auto;">
<span style="background-color: white; color: #262c2c; font-family: "helvetica" , "georgia" , "times new roman" , "times" , serif; line-height: 22px;">सड़क के उस पार नीम के पेड़ के नीचे पार्क की </span><span style="background-color: white; color: #262c2c; font-family: "helvetica" , "georgia" , "times new roman" , "times" , serif; line-height: 22px;">छोटी </span><span style="background-color: white; color: #262c2c; font-family: "helvetica" , "georgia" , "times new roman" , "times" , serif; line-height: 22px;">दीवार पर </span><span style="background-color: white; color: #262c2c; font-family: "helvetica" , "georgia" , "times new roman" , "times" , serif; line-height: 22px;">रखे पात्र पर चिड़ियाँ शोरगुल मचा रही थीं .</span></div><div style="font-family: arial; line-height: 25px; text-align: -webkit-auto;"><span style="background-color: white; color: #262c2c; font-family: "helvetica" , "georgia" , "times new roman" , "times" , serif; line-height: 22px;">ओह , आज इसमें पानी नहीं भरा . वह मिट्टी के बड़ी सिकोरे -से उस पात्र को उठा लाई और साफ़ कर ताजे पानी से भर दिया . पेड़ के नीचे फिर से चिड़ियों का वही शोरगुल था मगर अब खिलखिलाता- सा ... कभी पात्र के किनारे बैठ चोंच से पानी भरती तो कभी पात्र के बीच में बैठ कर जोर से पंख फड़फड़ाते किलोल करती .</span></div>
<div style="font-family: arial; line-height: 25px; text-align: -webkit-auto;">
<span style="background-color: white; color: #262c2c; font-family: "helvetica" , "georgia" , "times new roman" , "times" , serif; line-height: 22px;">उसकी दिनचर्या का ही एक हिस्सा है यह कार्य भी . इसी समय अक्सर एक वृद्ध महिला को लाठी का सहारा लेकर मॉर्निंग वॉक पर जाते हुए देखती है वह. उनके साथ एक लड़का भी होता है जो शायद उनका नौकर है . कई दिनों से यह संयोग होता है कि जब वह पानी भरकर रख रही होती है , उनका गुजरना होता है . कई बार दोनों की नजरें टकरा गयी मगर अपरिचित चेहरों से मुस्कुराना , बात करना थोड़ा अजीब लगता है . बस वे ख़ामोशी से कभी उस सड़क से गुजर जाती, कभी अपने नौकर से बतियाती. </span></div>
<div style="font-family: arial; line-height: 25px; text-align: -webkit-auto;">
<span style="background-color: white; color: #262c2c; font-family: "helvetica" , "georgia" , "times new roman" , "times" , serif; line-height: 22px;">बहुत अच्छा काम कर रही हो , बेटा ....एक दिन पात्र में पानी भरते सुनकर चौंक कर मुड़ी तो वही वृद्ध महिला थी . अचानक से टोका था उन्होंने . हड़बड़ाहट में वह सिर्फ मुस्कुराकर रह गयी . कुछ कह नहीं पाई और वे धीरे धीरे चलते हुए उस रास्ते से गुजर गयी . वह बहुत देर तक सोचती रही , उसने कुछ जवाब क्यों नहीं दिया . चलो कोई नहीं , कल मिलेंगी तो जरुर बात करुँगी उनसे और कुछ नहीं तो गुड मोर्निंग ही कह दूँगी .....</span></div>
<div style="font-family: arial; line-height: 25px; text-align: -webkit-auto;">
<span style="background-color: white; color: #262c2c; font-family: "helvetica" , "georgia" , "times new roman" , "times" , serif; line-height: 22px;">एक महिना , दो महिना , करते समय अब तो एक वर्ष तक बीत गया उस बात को . वह रोज सुबह उनका इंतज़ार करती है मगर उस दिन के बाद वे कभी नजर नहीं आईं .पहले कई दिनों तक सोचती रही कि वे कहीं बाहर गयी हुई होंगी अपने परिवार के साथ मगर उनके साथ कभी कोई परिवारजन नजर तो नहीं आया था . वे तो बस उस नौकर के साथ ही घूमने निकलती थीं . दूसरे शहर में रहते होंगे बेटे -बेटी , उन्हें अपने साथ ले गये होंगे ....कभी- कभी उसका दिल धक् भी रह जाता है . कहीं वे बीमार तो नहीं हो गयी . कही उन्हें कुछ हो तो नहीं गया ....</span><br />
<div>
<span style="background-color: white; color: #262c2c; font-family: "helvetica" , "georgia" , "times new roman" , "times" , serif; line-height: 22px;"><span style="color: #262c2c; font-family: "helvetica" , "georgia" , "times new roman" , "times" , serif; line-height: 22px;">अब वह कई बार झुंझलाती है . </span><span style="color: #262c2c; font-family: "helvetica" , "georgia" , "times new roman" , "times" , serif; line-height: 22px;">उस छोटी सी पहचान से उसे कितना लम्बा इंतज़ार दे दिया </span><span style="color: #262c2c; font-family: "helvetica" , "georgia" , "times new roman" , "times" , serif; line-height: 22px;">है . </span><span style="color: #262c2c; font-family: "helvetica" , "georgia" , "times new roman" , "times" , serif; line-height: 22px;">उन्हें उस दिन के बाद आना नहीं था तो उस दिन उसे टोका ही क्यों !!!!</span></span></div>
</div>
</div>
वाणी गीतhttp://www.blogger.com/profile/01846470925557893834noreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-7445694132447968411.post-67935568275785916902016-06-28T03:00:00.002-07:002021-06-26T03:03:04.554-07:00द्विरागमन.....<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<b><span face=""arial" , "helvetica" , sans-serif">"We All are Dogs !"</span></b><br />
<span face=""arial" , "helvetica" , sans-serif">कह दिया मैंने और उसकी प्रतिक्रिया को परखता रहा। पिछले जितने समय से उसे जानता था उसे लगा था कि वह बुरी तरह चिढ़ेगी , चीखेगी और कहेगी कि इसमें क्या शक है ! </span><br />
<span face=""arial" , "helvetica" , sans-serif">मगर नहीं! एक सेकण्ड के लिए उसके चेहरे का रंग बदला और फिर से वही स्निग्ध मुस्कराहट लौट आई थी।</span><br />
<span face=""arial" , "helvetica" , sans-serif">बात चल रही थी उसके पति की . अपनी धुन में डूबी हुई सी वह बता रही थी उसके पति के बारे में . वह मितभाषी है , ईमानदार है , दिल बहुत बड़ा है उनका … </span><br />
<span face=""arial" , "helvetica" , sans-serif">मैं उसे चिढ़ाना चाहता था या फिर उसका भ्रम दूर करना चाहता था पता नहीं क्यों . मैं देर तक सोचता रहा था उसके जाने के बाद कि आखिर क्यों। … </span><br />
<span face=""arial" , "helvetica" , sans-serif">मैं जवाब नहीं जानता था या जो जानता था उसे झुठलाना चाहता था। । पता नहीं , क्या , क्यों।</span><br />
<span face=""arial" , "helvetica" , sans-serif">अचानक हंसी आ गयी मुझे। </span><br />
<span face=""arial" , "helvetica" , sans-serif"><br /></span><span face=""arial" , "helvetica" , sans-serif">उस दिन पूछ लिया था था मैंने. आखिर तुम अपनी जिंदगी से चाहती क्या हो।</span><br />
<span face=""arial" , "helvetica" , sans-serif">पता नहीं!</span><br />
<span face=""arial" , "helvetica" , sans-serif">तुम जिंदगी से खुश हो!</span><br />
<span face=""arial" , "helvetica" , sans-serif">पता नहीं!</span><br />
<span face=""arial" , "helvetica" , sans-serif">तुम नाराज हो!</span><br />
<span face=""arial" , "helvetica" , sans-serif">पता नहीं!</span><br />
<span face=""arial" , "helvetica" , sans-serif"><br /></span><span face=""arial" , "helvetica" , sans-serif">मुझे झुंझलाहट होने लगी थी। तुम्हे कुछ पता भी होता है !</span><br />
<span face=""arial" , "helvetica" , sans-serif">अभी मैं इस समय यहाँ तुम्हारे साथ हूँ , तुम रखते हो न सब पता… </span><br />
<span face=""arial" , "helvetica" , sans-serif">और उसकी खिलखिलाहट में मेरी झुंझलाहट जाने कहाँ ग़ुम हो गयी।</span><br />
<span face=""arial" , "helvetica" , sans-serif">मैं चिढ़ता हूँ खुद पर उस पर- गुस्सा हो तो खिन्न दिखना चाहिये मगर नहीं, उसे तो मुस्कुराना या कहकहे ही लगाना है हमेशा। </span><br />
<span face=""arial" , "helvetica" , sans-serif">और आज मैं था जो हर बात पर कहता था.… पता नहीं !</span><br />
<span face=""arial" , "helvetica" , sans-serif">इतनी देर से बात कर रहा हूँ उसके बारे में। </span><br />
<span face=""arial" , "helvetica" , sans-serif">वह कौन! कौन थी वह !कहाँ से आई थी ! कौन थी वह मेरी !</span><br />
<span face=""arial" , "helvetica" , sans-serif">इस अनजान शहर में चला आया था सबकुछ छोड़कर , या कहूँ छूट गया था …</span><br />
<span face=""arial" , "helvetica" , sans-serif"><br /></span><span face=""arial" , "helvetica" , sans-serif">अपने बारे में क्या लिखूं , उसकी ही बात करता हूँ. इस नए शहर की वसंत ऋतु की एक दोपहर रही होगी . उस बाग़ की एक बेंच पर बैठा यूँ ही कर रहा था जिंदगी का हिसाब- किताब . पता नहीं चला था कब सामने आ बैठी थी वह बेंच से थोड़ी दूर . पार्क की दूब पर बैठी तिनके तोड़ कर दांत में कुरेदती जैसे कुछ फंसा था उसके दांत में ! </span><br />
<span face=""arial" , "helvetica" , sans-serif">नहीं , कुछ अटका हुआ जेहन में जैसे कुतरती जाती थी।</span><br />
<span face=""arial" , "helvetica" , sans-serif"><br /></span><span face=""arial" , "helvetica" , sans-serif">मेरी नजर कैसे पड़ी उस पर . शायद वहां खेलते दो बच्चों की बॉल उसके सर पर जा लगी थी . बच्चे डरे सहमे उसके पास जा खड़े हुए थे . उसने हलकी सी मुस्कराहट के साथ बॉल उठाई और दम लगा कर दूर फेंक दी। बच्चे हुलस कर बॉल के पीछे भागे और वह फिर उदास सी दूब कुतरती रही दांतों में जैसे कि जिंदगी की मुश्किलात को कुतर देना चाहती हो।</span><br />
<span face=""arial" , "helvetica" , sans-serif"><br /></span><span face=""arial" , "helvetica" , sans-serif">क्या सूझा मुझे मैं अपनी जिंदगी के हिसाब किताब बंद कर उसकी ओर देखने लगा। एक अनचीन्ही सी मुस्कराहट लिए बैठी रहती है रोज उसी स्थान पर कभी मेरे आने से पहले , कभी आने की बाद से। कभी किसी को देख मुस्कुरा देती मगर कुछ कहती नहीं . कभी हाथ में पकडे काले क्लच के बटन को खोलती बंद करती , कभी घडी में समय देखती , कभी अँगुलियों पर कुछ गिनती। … एक सप्ताह हो गया था मुझे उसे इसी प्रकार देखते। अपनी आँखों के सामने पड़ने वाले दृश्य से बिना जाने कब हमसे रिश्ता बना लेते हैं . जाने कब हमें उनकी आदत हो जाती है। रोज देखते हुए उसे मुझे भी उत्सुकता होने लगी थी . कौन है यह स्त्री ! किसी से बातचीत नहीं बस कभी अपने में खोयी तो कभी दूसरों को निहारती चुपचाप एक निश्चित समय तक ,. उसके बाद उठकर धीमे क़दमों से चल देती।</span><br />
<span face=""arial" , "helvetica" , sans-serif"><br /></span><span face=""arial" , "helvetica" , sans-serif">अपनी शांति को दरकिनार रख मेरा मन करने लगा था कुछ बातचीत करने को ,. किसी से भी पास से गुजरते चने या आईसस्क्रीम वाले को रोक उससे जोर से बातें करता , मगर वह निस्पृह सी दूसरी और निगाह किये जाने क्या तलाशती लगी मुझे। बात करना चाहता था मैं उस ख़ामोशी से जो उस हरी दूब के मखमली लॉन से इस बेंच के दरमियान पसरी रहती थी. संकोच भी था कहीं वह मुझे असभ्य न समझ बैठे।</span><br />
<span face=""arial" , "helvetica" , sans-serif"><br /></span><span face=""arial" , "helvetica" , sans-serif">मौका मिल गया था उस दिन बातचीत का जब फिर से एक बॉल आ टकराई थी उसके क्लच से होते हुए मेरी बेच तक !</span><br />
<span face=""arial" , "helvetica" , sans-serif">मैंने मुस्कुराकर उसे नमस्कार कहा- रोज देखता हूँ आपको यहाँ !</span><br />
<span face=""arial" , "helvetica" , sans-serif">हूँ - उसके शब्दों के रूखेपन में टोकने पर टरका दी जाने वाली की नाराजगी ने मुझे आगे कुछ कहने से रोक लिया !</span><br />
<span face=""arial" , "helvetica" , sans-serif"> भीतर कही जिद जोर मारने लगी . शायद मेरे भीतर का पुरुष जानवर क्यों न कहूँ . एक स्त्री की उपेक्षा को बर्दाश्त नहीं कर पा रहा था। कहीं भीतर मेरे सम्मान को चोट तो नहीं लगी यह देखकर कि मुस्कराहट का जवाब भी मुस्कुराहट से नहीं दिया गया। अब मेरी जिद मेरी ख़ामोशी को पीछे धकेलते वाचालता में तब्दील होती जाती थी। उससे बेखबर होने का दिखावा करता मैं कभी बॉल खेलने वाले बच्चों से कभी कुल्फी या चना वालों से जोर से बातें करता . बिना बात कहकहे लगाता मगर इतने दिनों बाद भी उन आँखों में पहचान या होठों पर मुस्कराहट नहीं उभरी। </span><br />
<span face=""arial" , "helvetica" , sans-serif">मैं समझ नहीं पाता था , क्यों चाहता था मैं ऐसा। ऐसा कुछ ख़ास तो नहीं था उस स्त्री में . उसके सामान्य कद जैसा ही सामान्य पहनावे में लिपटा .... किसी भी स्त्री को देखकर ही प्रभावित हो जाने वाला या उनके आगे पीछे चक्कर काटने जैसा चरित्र मेरा नहीं था. अपने सैनिक जीवन के औपचारिक माहौल में जमने वाली अनौपरिक बैठकों में खूबसूरत ग्लैमरस तेजतर्रार पार्टी की शान बनी तितलियाँ कम नहीं देखी थी मैंने , देखने से लेकर मित्रता , साथ घूमना और वह सब भी जो सामान्य जीवन में अनैतिक माना जा सकता था … शायद एक सामान्य सी स्त्री द्वारा उपेक्षित किये जाने ने ही मुझे कही भीतर नाराज किया था। जिस व्यक्ति को आप रोज देखते हो दिखते हो ! बात न करे पहचान आगे न बढ़ाये मगर सामने पड़ने पर मुस्कुराया तो जा सकता है !</span><br />
<span face=""arial" , "helvetica" , sans-serif"><br /></span><span face=""arial" , "helvetica" , sans-serif">उसे मुस्कुराता देखने की मेरी नाकाम कोशिशें मुझे चिढ़ाती जाती थी। अपने व्यवहार की तबदीली पर हैरान मैं स्वयं पर झुंझलाता था और एक दिन जब यह झुंझलाहट हद से बढ़ी तो मैं पास से गुजरते कुल्फी वाले को जबरन रोककर उसे सुनाने की गरज से जोर से बोल पड़ा , जब लोगो को किसी से बात नहीं करनी होती , किसी से घुलना मिलना पसंद नहीं होता तो घर से बाहर ही क्यों निकलते हैं। सार्वजानिक स्थानों पर आने की क्या आवश्यकता है , अपना कमरा बंद कर पड़े रहे न घर में !</span><br />
<span face=""arial" , "helvetica" , sans-serif">इस बार पलटकर देखा उसने। जाने कैसी सख्त निगाहें थी - सार्वजानिक स्थान किसी की बपौती नहीं , और लोग हर किसी से बातें करने के लिए यहाँ आते भी नहीं।</span><br />
<span face=""arial" , "helvetica" , sans-serif">मेरा तीर निशाने पर लगा था . गुस्से से तिलमिलाती ही सही कुछ कहा तो उसने ! </span><br />
<span face=""arial" , "helvetica" , sans-serif"><br /></span><span face=""arial" , "helvetica" , sans-serif">उस शाम से लेकर अब तक जाने कितनी शामें थी हम रोज ही आते मुस्कुराते बातें करते . वह बताती अपने बारे में , अपने पति , अपने बच्चों के बारे में , और मैं सुनता , कभी कुछ पूछ भी लेता … </span><br />
<span face=""arial" , "helvetica" , sans-serif">जाने कब बीच की अनौपचारिकता की दीवार ढही मुझे या शायद उसे भी पता नहीं चला नहीं होगा जब भी मैं उस दिन की तल्खी की बात सोचता हूँ।</span><br />
<span face=""arial" , "helvetica" , sans-serif"><br /></span><span face=""arial" , "helvetica" , sans-serif">आज वह गुस्से में तिलमिलाई नहीं मगर उसके शब्दों में पर्याप्त तीखापन था - हंसी आ रही है मुझे कि एक पुरुष मुझे यानि एक स्त्री को यह बता रहा है!</span><br />
<span face=""arial" , "helvetica" , sans-serif">उसकी आँखों में अभी भी वही पहले से सख्ती जैसे कह रही हो मुझे कि हम स्त्रियां बेहतर जानती हैं कि तुम कुत्ते ही होते हो मगर अगले ही पल फुर्ती से लौटी उसी स्निग्ध मुस्कराहट ने अपने शब्दों पर पर्याप्त बल देकर कहा - नहीं , वे ऐसे नहीं है ! सब ऐसे नहीं होते !</span><br />
<span face=""arial" , "helvetica" , sans-serif">मत मानो अभी . एक दिन तुम मानोगी तब मुझे याद करोगी।</span><br />
<span face=""arial" , "helvetica" , sans-serif">तुम्हे याद तो मैं यूँ ही कर लूंगी . कुत्तों के बहाने क्यों !</span><br />
<span face=""arial" , "helvetica" , sans-serif">उसकी तिरछी नजरों के साथ खिलखिलाहट का अंदाज बात वहीं समाप्त कर देने जैसा था ! मगर बात समाप्त नहीं हुई थी वहां।</span><br />
<span face=""arial" , "helvetica" , sans-serif">मुझे लगता था कहीं भीतर से आती उसकी आवाज - तुम सब कुत्ते ही होते हो , सब एक जैसे। गोश्त चूस लेने के बाद हड्डियां चुभलते रहने वाले कुत्ते , तुम्हारी भौंक बस हड्डी मुंह में रहने तक ही बंद रह सकती है। </span><br />
<span face=""arial" , "helvetica" , sans-serif">मैं काँप रहा था इस अनकही को सुनते . उसने तो कुछ कहा नहीं था। कहीं मेरे मन की ही बात तो मेरे कानों में नहीं उड़ेली जा रही थी उसके अनकहे शब्दों में। अपने आप को हमसे बेहतर और कौन जान सकता था! </span><br />
<span face=""arial" , "helvetica" , sans-serif">अपनी बेरहमी और बेशर्मी से घबराया मैं उसी बाग़ के दूसरे कोने पर लगे फूलों और बच्चों को देख मुस्कुरा दिया. अपने भीतर के पशु को छिपाते सांत्वना देता मनुष्य को !</span><br />
<br />
<span face=""arial" , "helvetica" , sans-serif">मुझमे अभी बाकी है जिंदगी . रहेगी भी ! यकीन दिलाता स्वयं को। वह थी ही ऐसी . बुरी तरह कुरेदती अपने शब्दों से भीतर को बाहर खड़ा कर देती जैसे कि आईने में अपना अक्स नजर आ रहा हो।</span><br />
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<br />
<br />
उस दिन जब वह लॉन की दूब को दांतों से कुरेदती ही तो मिली थी मुझे यहाँ , अपनी व्यग्रता को ही कुरेदती थी जैसे। बाद के दिनों में मुझे बताया उसने। मध्य आयु के स्त्री पुरुषों में जैसे परिवर्तन होते हैं वैसी ही बेचैनियां लिए बढ़ती उम्र ...रिश्तों का ठहरापन ...मुट्ठी से फिसली उम्र के बीच कुछ भी अपने मन का न पा सकने की निराशा .,जाने क्या -क्या !<br />
<br />
उस दिन फिर जल्दी -जल्दी करते भी तवे पर पराठे जल गए थे और उसका पति गुस्से में खाना खाए बिना ऑफिस निकल गया था ...नल से पानी भांडे भरे बिना ही जा चुका था ...बच्चों की डायरी में क्लास में पिछड़ते जाने का नोट !<br />
वह देखती थी आस- पास स्त्रियों को सुबह जल्दी उठकर झाड़ू बुहारू लगाते , पूजा -पाठ करते , खाना बनाते , बच्चों को तैयार करते ख़ुशी -ख़ुशी और सबसे फारिग होकर कभी बाजार तो कभी पास पड़ोस में गप्प गोष्ठियां करते। बड़ी ख़ुशी से अपनी गोपनीय बातें उजागर करते जैसे कि आज धूप में कुछ कार्य कर रही थी तो लाड़ में भरा पति दूध में ढेर सारे ड्राई ट्स घोल लाया उसके लिए ... कोई पिछली रात की बात खुसर फुसर में इस तरह करते कि दूसरी महिलाएं झट कान लगा कर पूछ ले दुबारा। कोई पति की शिकायत इस तरह करती मिल जाती जैसे कि प्रशंसा कर रही हो ... हमारे ये तो कुछ काम ही नहीं कराते घर का या की इन्हे तो कुछ पता ही नहीं रसोई में कौन सी चीज कहाँ रखी है ...कोई बताती छिपा कर रखे गए पैसों से सोने के गहने / खरीददारी जिससे वह अपने उनको चौंका देगी। सास की पदवी पा चुकी कुछ स्त्रियां अपने दुःख का पुलिंदा खोले बैठी होती। उसका कभी इस गपगोष्ठी में शामिल होना होता तो चुपचाप बस सुन लेती क्योंकि उसके पास या तो ऐसा कुछ सुनाने को होता नहीं या फिर रिश्तों की गोपनीयता उजागर करना उसे अच्छा लगता भी नहीं। मंगोड़ियां , पापड़ बनाती हुई स्त्रियां , तो कभी लहंगा , ब्लाउज सिलती ये स्त्रियां खुश लगती थी अपनी जिंदगी से, बहुत खुश !<br />
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किसने कौन सी किताब पढ़ी ...कौन सी फिल्म देखी... नया क्या सीखा सुन लेने को ही तरसती ! ऐसा नहीं था कि उन गोष्ठियों में स्त्रियां पढ़ी लिखी नहीं थी। अधिकांश संतोषजनक डिग्रियां प्राप्त थी , कुछेक कामकाजी भी मगर उनकी बातचीत का दायरा वहीँ तक सिमित था। जल्दी ही वह ऊब जाती , अलबत्ता उसके पास समय भी नहीं होता था अधिक देर इनका हिस्सा बनने का ....<br />
<br />
आम स्त्रियों से भिन्न शौक/मिजाज रखने वाली निम्न अथवा उच्च मध्यमवर्गीय स्त्रियों के मन का एक कोना किस तरह सूखा अनछुआ सा रहता है .उससे नहीं मिलता तो शायद कभी जान भी नहीं पाता। उसकी बातों ने , उसके चुप रह जाने ने , उसके चिल्ला पड़ने में , उसके हंसने ने , उसके मुस्कुराने ने मुझे बताया , समझाया। बस उसके आंसूं नहीं देखे मैंने . भरा गला और चेहरे की मुस्कराहट के साथ कुछ नमी जरूर थी कोरों पर मगर उसे आंसू नहीं कहा जा सकता था।<br />
<br />
उसका नाम क्या था , क्या फर्क पड़ता है , भीड़ में शामिल भीड़ से अलग दिखने वाली कोई भी स्त्री हो सकती है वह. मध्यवय की मध्यमवर्गीय स्त्री जो अपने नाम का अपने होने का अर्थ ढूंढ रही हो वही स्त्री हो सकती है , हो सकती थी।<br />
<br />
उस दिन जब मैं पहली बार उससे मिला था उस पार्क की बेंच पर बैठा उसे देखता दूर तक फ़ैली दूब से तिनका तोड़ दांत में फंसाते जैसे कि जिंदगी की तमाम नीरसता , व्यग्रता , बेचैनियों को खुरचती हो जैसे !<br />
<br />
उस दिन बस मुस्कुराकर नमस्कार को नाराजगी से अनदेखा करने वाली स्त्री कभी इतनी घुली मिली होगी मुझसे कि मैं उसके वय और परिवेश की स्त्रियों की मानसिक स्थिति का अंदाजा भी लगा सकूंगा सोचा नहीं था मैंने।<br />
उस दिन उसकी नाराजगी पर मुस्कुराते हुए मैंने कहा था ,<br />
शुक्र है आप बोली तो …<br />
मैं अजनबियों से बात नहीं करती! त्योरियां अभी चढ़ी ही हुई थी।<br />
मगर हम अजनबी नहीं है , कितने समय से तो एक दूसरे को देख रहे हैं यहाँ !<br />
क्या मतलब , मैं यहाँ किसी को देखने -दिखने नहीं आती।<br />
जी , आप तो यहाँ लॉन की दूब कुतरने आती हैं। मैंने लॉन के एक हिस्से से उखड़ी हुई दूब की ओर इशारा किया।<br />
इस बार वह कुछ झेंपी सी थोड़ी अधिक ही मुस्कुराई। पहली बार उसके चेहरे की ओर ध्यान से देखा मैंने , गेंहुए रंग पर कुछ गोल सा चेहरा, घनी पलकों वाली सम्मोहित करती सी बड़ी काली आँखें , मुस्कुराते गालों पर पड़े हुए भंवर... एक सामान्य चेहरे मोहरे से कुछ अधिक आकर्षक . बहुत खूबसूरत नहीं कहूँगा क्योंकि अपने इस जीवन काल में बहुत खूबसूरत लड़कियां देखी मैंने , लम्बे अंडाकार चेहरे वाली दूध सी गोरी लड़कियां , संतरी फांकों से गुलाबी होठों वाली पहाड़ी लड़कियां तो लम्बी पतली तरासी हुई अँगुलियों से गालों पर उतर आई लटें संवारती सैंडिलों को खटखटाती आधुनिकाएं भी। वह इतनी खूबसूरत नहीं थी ! मगर उसकी छोटे बच्चों जैसी भोली कोमल मुस्कराहट बहुत प्यारी थी। बेध्यानी में मैं एक बारगी उस मुस्कराहट में अटक सा गया , मगर जब उसने भोंहे तरेर कर आँखें सिकोड़ी तब अपनी बेहूदगी पर लज्जित होता दूसरी ओर देखने लगा।<br />
<br />
उस दिन बातचीत का वह सिरा पकड़ने के बाद हम अब तक बातों के पालने बुनने लगे थे। अपनी शिक्षा , बच्चों की बातें , शरारतें , अपने शौक , राजनीति , खेल , फ़िल्में जाने कितनी दुनिया जहां की बातें करते हम। कई बार मैं खुल कर हँसता उसकी बेवकूफियों भरी बातों पर , कभी चिढ़ता भी तो कभी सरल सहज सी बातों में उसकी दार्शनिकता ढूंढ लेने पर अचंभित भी होता। सामान्य से दिखने वाले लोग सामान्य से अधिक ही चौंकाते हैं कई बार। हालाँकि आम स्त्रियों की तरह ही उसे गुलाबी रंग बहुत पसंद था , गीत- संगीत भी , फूलों और बच्चों से भी उसका प्यार वैसा ही था जैसा की स्त्रियों को होता है, मगर कहीं कुछ अलग था, अलग लगता था, बस बता नहीं सकता क्या। .... यही कहूँगा पता नहीं !<br />
<br />
तो आज जब मैंने कहा कि हम सब कुत्ते हैं ! तब भी वह मुस्कुराई मगर मैं जान गया था कि उसने क्या कहा था।<br />
<br />
तुम लड़कियां अजीब होती हो , सोचती कुछ हो , कहती कुछ हो और करती कुछ उससे अलग ही हो !<br />
<br />
खुद का पता है ! तुम सब एक जैसे होते हो तुम्हारा शब्द इस्तेमाल नहीं करुँगी मगर ! वैसे तुम्हारी जानकारी के लिए मैं बता दूँ कि मैं लड़की नहीं हूँ .अपने पति के दो प्यारे बच्चों की अम्मा हूँ! अपने मातृत्व के गर्व से गर्दन टेढ़ी कर वह इतरा- सी जाती।<br />
क्यों ! क्या अम्माएं लड़कियां नहीं होती ! सीधे अम्मा ही जन्म लेती हैं !<br />
तुम्हे कैसे पता यह सब , तुम्हारी तो शादी नहीं हुई न ! वह तीखी नजर से देखती!<br />
पता चल जाता है ! मैं चिढ़ाता उसे !<br />
कैसे पता चल जाता है , बताओं न … उसे अपने शब्दों के द्विअर्थी होने का भान ही नहीं होता मगर जब मैं शरारत से मुस्कुराता तो खिसिया सी जाती … तुमसे तो बात करना ही बेकार है , दिमाग में भूसे की तरह बस एक ही चीज भरी होती है।<br />
अच्छा ! कौन सी एक चीज !<br />
वह इस तरह दांत पीसती मानो कच्चा ही चबा जाएगी।<br />
<br />
सब जानता था मैं उसके बारे में ! उसका छोटा सा घर ... प्यार करने वाला पति ...स्कूल में पढ़ने वाले बच्चे मगर अपने बारे में कभी कुछ कहा नहीं मैंने।<br />
एक दिन जिद पर अड़ ही गयी ...<br />
तुम बहुत आत्मकेंद्रित हो . कभी अपने परिवार और बच्चों के बारे में बात ही नहीं करते।<br />
मैं क्या कहता … कई बार पूछने पर एक दिन झूठ बोल दिया मैंने। मेरी शादी नहीं हुई अब तक !<br />
उसे हैरानी जरूर हुई थी मगर वह इसे सच मान बैठी थी।<br />
<br />
क्यों नहीं की शादी अब तक तुमने ! किसी ने धोखा दिया क्या !<br />
क्या बताता कि मुझे धोखा किसी और ने नहीं स्वयं मेरी किस्मत ने दिया था।<br />
<br />
क्यों करोगे तुम लोग शादी ! तुम्हारी आवारगी पर बंधन जो लग जाएगा इसलिए ही न .... मगर इस बंधन से तुम लोगो को क्या फर्क पड़ता है . घर में उसे बिठाकर बाहर तुम्हारी मटरगश्तियाँ तो उसी प्रकार चलती हैं . घर में तुम लोगों को सती सावित्री , शांतचित्त , सुघड़ गौ सी स्त्री चाहिए मगर घर से बाहर तुम उनकी तारीफों में मरे जाते हो जो स्मार्ट , तेजतर्रार , महफ़िलों की शान लगती हो।<br />
ओह अच्छा ! तुम्हारा पति भी करता है यही सब !<br />
शटअप , वो ऐसे नहीं है . बहुत मेहनत करते हैं हमारी छोटी सी गृहस्थी की गाडी खींचने को !<br />
अच्छा , तो तुम कैसे जानती हो पुरुषों के बारे में यह सब ....<br />
लो इसमें जान लेने का क्या है , दिखता है न हर तरफ !<br />
मैं गोल घुमाता बात बदल देता , वह कई बार कोशिश तो करती कि मेरे जीवन का कोई सिरा पकड़ सके। मगर सैनिक जीवन के अभ्यास ने ही शायद इतनी दृढ़ता दी थी कि मैं अपने गम भुलाकर दूसरों को हंसा सकता था।<br />
मैं उसे हँसते देखना चाहता था हमेशा , क्यों पता नहीं ! और सिर्फ उसे ही नहीं ., मैं सभी को खुश देखना चाहता था हमेशा। खुशियों की कितनी छोटी सी उम्र देखी थी मैंने ! मैं जानता था उनकी अहमियत और हैरान हुआ करता था जब लोगो को छोटे मामूली मसलों पर टन भर मुंह लटकाये देखता था।<br />
उससे भी शायद मेरी इसलिए ही अधिक बनती थी कि वह मुस्कुरा सकती थी फूलों को खिलते देख , बच्चों की हंसी के साथ खिलखिला सकती थी , कितनी ही बार चहकते देखा मैंने उसे जब वह किसी की छोटी सी भी मदद कर पाती , कभी रसोई में अपने नए प्रयोग पर ही खुश हो लेती।<br />
एक दो बार ही अनमना सा देखा मैंने उसे - दो छोटे बच्चों को खेलते देख मुग्ध निहारते कुछ उदास सी ! मैंने लक्ष्य किया उसकी उदासी को तो बोल पडी , मुझे बच्चों की याद आ रही है ! हर दिन मुझे हैरान करने की उसकी यह हरकत थी। रोज घर से गायब रहना एक घंटे के लिए , इस पार्क में यूँ ही बैठे , अब तक जान नहीं पाया था मैं।<br />
तो घर चली जाओ , यहाँ क्यों बैठी हो।<br />
नहीं , अभी नहीं जाना है मुझे घर। बच्चों को कुछ देर अकेले भी रहना चाहिए न !<br />
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<div style="-webkit-text-stroke-width: 0px; color: black; font-family: "Times New Roman"; font-style: normal; font-variant: normal; font-weight: normal; letter-spacing: normal; line-height: normal; margin: 0px; orphans: auto; text-align: left; text-indent: 0px; text-transform: none; white-space: normal; widows: 1; word-spacing: 0px;">
इस रहस्य की गुत्थी मुझसे सुलझती न थी. एक दो बार लेकर भी आई थी वह उन्हें साथ ही ., दो छोटे से बहुत ही प्यारे बच्चे थे उसके .,मोनू और स्वीटी। पहले कुछ दिनों में जितनी चुप उदास -सी दिखी ... वह स्त्री स्वयं वही नहीं थी।<br />
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उससे बतियाते मैं जानने लगा था कि वह अपने पति और बच्चों के साथ अकेले रहती थी। उसके सास ससुर इतने नाराज थे कि एक ही शहर में रहने के बावजूद उससे कभी मिलने नहीं आते ...बच्चों के जन्म से लेकर उनके स्वास्थ्य खराब होने पर भी। बताया नहीं था उसने बस , उसकी बातों से जाना।<br />
एक दिन पूछ लिया था मैंने -<br />
तुम्हारा प्रेम विवाह हुआ है क्या !<br />
हां, प्रेम विवाह के बाद हुआ है।<br />
प्रेम विवाह के बाद प्रेम!<br />
बुद्धू , प्रेम मुझे विवाह के बाद हुआ !!<br />
अच्छा , उससे पहले किसी से प्रेम नहीं हुआ ! सच बताओ , तुम्हे विवाह से पहले कभी प्रेम नहीं हुआ।<br />
वह कुछ देर खामोश रही।<br />
प्रेम क्या होता है आखिर ! दो व्यक्ति एक साथ रहने और साथ जीने में ख़ुशी महसूस करते है , इसके अतिरिक्त प्रेम क्या होता है !<br />
मैं उस प्रेम की बात कर रहा हूँ जब कुछ अच्छा नही लगता ... घबराहट होती है !भूख- प्यास मिट जाती है ... पढने में मन नही लगता ... रात में नींद नहीं आती दिन में सपने देखने लगते हैं लोग !<br />
वह प्यार होता है। मुझे तो लगता था कि ये लक्षण ब्लड प्रेशर के होते हैं या अनिमिक होने के !<br />
इस उम्र में तुम यह कह सकती हो , मगर मैं उस उम्र की बात कर रहा हूँ जब यह सब होता है ! क्या तुम्हे कभी कोई अच्छा नहीं लगा। तुम भी अच्छी खासी खूबसूरत हो ...तुम्हे भी तो किसी ने पसंद जरुर किया होगा .<br />
अच्छा क्यों नहीं लगा। हम अपने जीवन में बहुत लोगो से मिलते हैं जो हमें अच्छे लगते हैं. हम उनसे और वो हमसे आकर्षित होते हैं. सब हमारे जीवन में शामिल नहीं होते . इससे प्रेम का क्या सम्बन्ध !<br />
अभी तुमने कहा न दो व्यक्ति एक साथ रहने जीने में ख़ुशी महसूस करें , वही प्रेम है !<br />
<br />
अचकचा गई वह। शब्दों के जाल में उलझा दिया था मैंने। उलझन भरी नजरों से थोडा नाराजगी से कहा उसने , मुझे नहीं पता ये सब ! मुझे इस तरह का कोई प्रेम नहीं हुआ बस। मैं उसे ही प्रेम मानती हूँ जो जिम्मेदारी बन जाता है।<br />
वह कुछ जल्दी में थी उस दिन। जल्दी जाना था उसे। उसके पति शहर से बाहर जा रहे थे कुछ दिन के लिए . उनके सामान की पैकिंग करनी थी और भी घर के कुछ काम भी। मुझे हैरानी हुई कि उसका पति उसकी कजिन के विवाह में अकेला ही जा रहा था।<br />
कमाल है ! कजिन तुम्हारी है और पति तुम्हारा जा रहा है शादी में। तुम क्यों नहीं जा रही।<br />
मैं नहीं जा सकती। कम से कम एक सप्ताह लगेगा . बच्चों की पढाई का नुकसान होगा। वह कुछ उदास सी थी।<br />
ऐसा भी क्या कि बच्चों को कुछ दिन की छुट्टी नहीं दिला सकती।<br />
एक्जाम होने वाले है उनके कुछ दिनों में ही।<br />
हाँ , मगर इसमें क्या हुआ ! तुम अपने सास ससुर के पास छोड़ सकती हो बच्चों को।<br />
नहीं छोड़ सकती , वे नहीं आते हमारे घर !<br />
मैंने उसकी ओर गौर से देखा तो वह एकदम से गड़बड़ा गयी .<br />
मेरा मतलब है कि बच्चे कभी रहे नहीं है अकेले इसलिए नहीं छोड़ सकती उनको कहीं।<br />
वह कुछ नहीं बोली। मगर मैं चाहता था कुछ कहे वह ! क्यों नहीं जाना चाहती है वह , क्यों नहीं जा सकती है !!<br />
बस नहीं जा सकती , काफी है तुम्हारे लिए।<br />
मुझे पता चल गया क्यों नहीं जाना चाहती हो तुम। उसके जाने के बाद एक सप्ताह पार्क में मुझसे मिलने ज्यादा देर आ सकोगी … उसे खीझा कर बुलवाने का हुनर मैं सीख गया था !<br />
खिझी बहुत अधिक वह मगर बोली कुछ और ही।<br />
मैं तुम्हारा सर फोड़ दूँगी।<br />
हा हा हा , मेरे सर तक तुम्हारा हाथ पहुचेगा भी !! मैं सीधा तन कर खडा हो गया। वह मेरे कंधे से भी छोटी थी।<br />
मुझे बात ही नहीं करनी है तुमसे और उस दिन वह नाराज होकर पैर पटकते चली गयी।<br />
<br />
वह सचमुच नाराज हो गयी थी। उस पूरे एक सप्ताह वह पार्क में आई ही नहीं . मैं पहली बार थोडा बेचैन हुआ। किससे पूछूं उसके बारे में। आस पास खेलते बच्चों से , या आइसक्रीम वाले से। मैं नहीं जानता था कहाँ रहती है वह . कभी मैंने पूछा नहीं . कभी उसने बताया भी नहीं। पहली बार मैंने सोचा ! कई बार उठ कर उन बच्चों के बीच गया मगर कदम फिर फिर कर लौट आते। क्या पूछूं बच्चों से , क्या कहेंगे बच्चे ! कौन थी वह जिसके बारे में मैं जानना चाह रहा था। पता नहीं कौन क्या सोचेगा . मैं चुप ही बैठा रहा मगर मुझे बेचैनी होती रही। इस बार मुझे खुद पर भी गुस्सा आ रहा था . मैंने उसे उदास देखा था कुछ परेशान भी और मैंने उसे चिढाना जारी रखा था . मुझे नहीं करना चाहिए था ऐसा .<br />
<br />
क्यों नहीं आई वह ! सब ठीक तो है या हो सकता है वह भी अपने पति और बच्चों के साथ चली गयी हो विवाह में। या कही मुझसे सचमुच नाराज तो नहीं हो गयी है। ईश्वर जानता था मैंने सिर्फ उसे खिझाने के लिए ही कहा था। जब कभी वह अनमनी नजर आती या अधिक चुप रहती नजर आती मैं जानबूझकर कुछ ऐसा कहता कि उसे गुस्सा आ जाये और चिल्लाते हुए लड़ पड़ती और लड़ते हुए उदासियाँ उस ज्वालामुखी चेहरे के डर के मारे दुबकी रहती . लड़ते हुए ही जाने कब मुस्कुराने भी लगती। मुझे उसे मुस्कुराते देखना बहुत अच्छा लगता था। मैं टटोलता हूँ खुद को , उसे ही क्यों , मुझे सबको मुस्कुराते देखना अच्छा लगता है।<br />
<br />
उस पूरे सप्ताह मुझे बहुत अकेलापन लगा। गलत है यह . मैं खुद को धिक्कारता था। मैं सब बन्धनों से छूट चूका हूँ , मुझे किसी को याद नहीं करना ., याद नहीं आना है। मगर क्या सचमुच छूटा जा सकता था !!<br />
मैं याद करता था उस मनहूस दोपहर को जिसने मेरी जिंदगी का रुख बदल दिया था। हलकी सर्दी के दिन उस पार्क की बेंच पर धूप का टुकड़ा मुझे आकर सहलाता रहा . मैं याद करता रहा जो मैं भूल जाना चाहता था , मगर भूला नहीं था।<br />
सैनिकों के जीवन में छुट्टियाँ उनकी पूरी एक उम्र होती है। कब जाने कौन सी छुट्टी उनके जीवन की आखिरी हो जाए , उस छुट्टी के बाद कभी लौट नहीं पाए जीवन। हर जवान जी लेना चाहता है उन पलों को यादगार लम्हों की तरह। अचानक घर जाकर निशा को चौंका देना चाहा था मैंने . मगर उससे पहले ढेर सारी खरीददारी करनी थी मुझे . लाल किनारे वाली सफ़ेद साडी बंगला साहित्य को सनक तक पसंद करने वाली निशा . बहुत भाता था उसे उसी बंगला स्टाईल में साडी पहनना , उसके लम्बे बालों और बड़ी आँखों के बीच चेहरे की बड़ी बिंदी उसे ठेठ बंगाली लुक देती थी . कई बार यकीन करना मुश्किल हो जाता कि वह बंगाल से नहीं थी , बंगाली नहीं थी . "आमी तुमाको भालो वासी " दुकानदार ने चौंक कर देखा था मेरी ओर . सेल्सगर्ल द्वारा खोल कर दिखाई जाने वाली साडी में जाने कब निशा आ खड़ी हुई थी . सेल्सगर्ल ने भी पूछा, कुछ कहा आपने सर!,<br />
हाँ हाँ वो .... इस साडी को पैक कर दो . मैं घबरा गया था . क्या सोचा होगा उन लोगों ने . कैसी चुभती अर्थपूर्ण निगाहें थी दुकानदार की मगर सेल्सगर्ल बहुत प्यारी संजीदा सी लड़की थी.<br />
वह समझ गयी थी ,"सर , मैम पर बहुत जचेगी यह साडी , अच्छी पसंद है आपकी !"<br />
घर परिवार से दूर रहने वाले जाने कितने पथिक घर की उड़ान भरने से पहले यहाँ भटकते आ जाते होंगे . माँ , बहन, पत्नी, प्रेयसी के लिए कुछ उपहार में खरीदते उनकी आँखों को पढना सीख जाती है ये बालाएं . कई बार उनसे सलाह भी ले लेते हैं जैसे अपनी पसंद से दे दीजिये बहन को क्या अच्छा लगेगा ... क्या ले जाना चाहिए माँ के लिए , प्रेयसी को कौन सा रंग सुहाएगा . अनजान दुनिया के कुछ पल के साथी जाने पहचाने अपनों के लिए किस अपनेपन से जुट जाते हैं . ना , सिर्फ व्यापार या मजबूरी नहीं . उनके चेहरे की नम आत्मीयता बेगानों में भी संवेदनाओं के बचे होने की पूरी गारंटी देती हैं . और जब अपनी नन्ही परी तृषा के लिए परियों वाली ड्रेस और गुडिया सिंड्रेला लेते तो जैसे वात्सल्य का समन्दर उछाले भरता उनकी ममता को सहलाते रहा .<br />
मेरी नन्ही परी , आ रहा हूँ मैं ! फोन पर अपनी तुतलाती जुबान में जाने क्या सुनाती रहती थी . उसकी माँ से ही जान पाता था कि कभी वह लोरी सुना रही होती है तो कभी मम्मा की शिकायत . उस दिन उसकी प्यारी शरारतें बताते सुनते हम दोनों के गले भर आये थे . कागज़ पेन लेकर बैठी उसकी तृषा अपने पिता को ख़त लिख रही थी . उसकी माँ का सिखाया गीत गाते.</div><div><br />
पापा , जल्दी आ जाना . अच्छी सी गुडिया लाना .</div><div><br /></div><div>क्रमश:</div>
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वाणी गीतhttp://www.blogger.com/profile/01846470925557893834noreply@blogger.com5tag:blogger.com,1999:blog-7445694132447968411.post-74522210877704509522014-04-22T09:45:00.001-07:002021-06-26T01:18:39.141-07:00रोशनी है कि धुआँ..... (2)<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<span style="background-color: white; color: #222222; font-family: arial; font-size: x-small;">सामान्य मध्यमवर्ग परिवार की तेजस्वी ने अवरोधों के बावजूद </span><span style="background-color: white; color: #222222; font-family: arial; font-size: x-small;">पत्रकारिता में रूचि बरकरार </span><span style="background-color: white; color: #222222; font-family: arial; font-size: x-small;"> रखते हुए मिडिया हाउस में अपना कार्य जारी रखा। </span><span style="background-color: white; color: #222222; font-family: arial; font-size: x-small;">शुरूआती </span><span style="background-color: white; color: #222222; font-family: arial; font-size: x-small;">गलतफहमी और संशय से </span><span style="background-color: white; color: #222222; font-family: arial; font-size: x-small;"> कार्य में व्यवधान भी कम नहीं रहे </span><span style="background-color: white; font-family: arial; font-size: x-small;"><span style="color: #222222;"> ,</span><b><span style="color: orange;"> <a href="http://vanigyan.blogspot.in/2014/01/4.html" target="_blank"> इन सबसे उबर कर </a></span></b><span style="color: #222222;">तेजस्वी अब आगे बढ़ रही है …… </span></span><br />
<span style="background-color: white; color: #222222; font-family: arial;"><br /></span><span style="background-color: white; color: #222222; font-family: arial;">तेजस्वी</span><span style="background-color: white; color: #222222; font-family: arial;"> के जादुई पिटारे नुमा बैग से कई चीजें निकलती जा रही थी , साडी , कुरता- पायजामा , कड़े , पर्स , सैंडिल , पत्रिकाएं। साइड की पॉकेट से निकले प्लास्टिक के पाउच में मूंगफली के साथ नमक , मिर्च, अमचूर , काला नमक का मिला जुला चूर्ण , एक और थैली में कुछ पेड़े भी थे , दूध को अच्छी तरह औंटा कर बनाये , कुछ भूरे लाल से पेड़े भी। </span><br />
<div style="color: #222222; font-family: arial;">
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तुम्हे याद है माँ ! उस गाँव के छोटे बस स्टैंड पर तुम जरुर ख़रीदा करती थी। </div>
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हाँ , कैसे भूलूंगी। रानी को भी बहुत पसंद थे , हॉस्टल जाते या लौटते अक्सर खरीद लेते थे। आस पास की अन्य दुकानों से अलग बड़ी साफ़ सुथरी सी छोटी दूकान पर मूंगफली बेचता वह छोटा सा लड़का जिसने कहा था , बहुत अच्छा पेड़ा है , तनी चख कर तो देखीं दीदी लोग , कही और से किनबे नहीं करेंगे। एक बार उसके कहने से लिए हुए पेड़े हर बार की जरुरत हो गये थे और मूंगफली का साथ तो बस के सफ़र भर चलता रहता।<br />
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माँ की यह आदत शिक्षा पूरी होने से , विवाह और उसके बाद बच्चों के बड़े होने तक भी बनी रही थी. उस बस स्टैंड से गुजरते <span style="background-color: white;">तेजस्वी</span> को याद आया था । वह जानती है माँ के भीतर बसी बैठी उस लड़की को जिसे प्रसन्न करने के लिए बड़े महंगे तोहफों की जरुरत नहीं होती , और उसने शहर से खरीदी साडी , बैग , पुस्तकों के साथ इस गाँव से पेड़े और मूंगफली <span style="background-color: white;">भी खरीदी , खास नमक मिर्च के चूर्ण के साथ !</span></div>
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लगभग एक वर्ष बाद लौटी थी <span style="background-color: white;">तेजस्वी</span> अपने शहर। वायब्रेंट मीडिया हॉउस अपना काम आगे बढ़ाते हुए विस्तारण प्रक्रिया में कुछ अन्य शहरों में ऑफिस खोलना चाह्ती थी। आलिया को जोनल हेड बना कर भेजा जाना था। आलिया को <span style="background-color: white;">तेजस्वी </span>की मनःस्थिति का आभास था इसलिए उसने उसे साथ काम करने का प्रस्ताव दिया। माँ को समझाना इतना आसान नहीं होता यदि वह स्वय उनका जन्मस्थान नहीं होता। शहर से सटे हुए गाँव में ही उनका अपना घर था , माँ का घर , भाई -बहनों का घर , खेत खलिहान। शिक्षा के लिए गाँव से शहर पढ़ने आये भाई अब वहीँ सैटल हो गए थे। माँ को तसल्ली थी , मामा , मौसी , नानी का साथ रहेगा।<br />
बीते एक वर्ष में वे भी उसके पास जाकर रह आयी थी , दो कमरों के उसके फ़्लैट में सब सामान जुटा कर। भाई भाभी ने ऐतराज भी जताया कि क्या हमारे साथ नहीं रह सकती , इसका वजन हो जाएगा। मगर व्यवहारकुशल माँ रिश्तों की बारीकियों से अनजान नहीं थी। आखिर हार कर भाई ने अपने घर के पास ही एक फ़्लैट का एक हिस्से में उसके रहने का इतंजाम कर दिया। माँ निश्चित थी , परिवार पास भी था और उनपर बोझ भी नहीं !<br />
आलिया के साथ <span style="background-color: white;">तेजस्वी</span> नए माहौल में कार्य करते हुए पुराने बुरे अनुभवों को भूल चुकी थी। शहर की विभिन्न समस्याओं और सामाजिक सरोकारों से जुड़े उसके कार्य और लेख उसकी पहचान बन गए थे। सरकारी हॉस्टलों में कामकाजी महिलाओं की परेशानियों , चाइल्ड शेल्टर में शोषण के शिकार नासमझ बच्चों , सरकारी विद्यालयों में शिक्षकों की अनुपस्थिति , मिड डे मील में घोटाले के साथ ही अपनी तनख्वाह का कुछ हिस्सा किसी और को देकर अपने स्थान पर पढ़ाने भेजने जैसी कई सनसनीखेज रिपोर्ट पेश कर उसने अपने नाम और पेशे दोनों का ही एक रुतबा हासिल कर लिया था। घटनाओं और समस्याओं की तह तक जाकर उनका विश्लेषण और निष्पक्ष निर्भीक विचारों की गूँज उसके अपने शहर तक भी कम नहीं थी। नाम और सम्मान ओज की वृद्धि करते ही हैं , आत्मविश्वास भी बढ़ जाता है , अब <span style="background-color: white;">तेजस्वी</span> पूर्णतः आत्मनिर्भर आत्मविश्वासी हो चली थी। उसके अपने शहर में उसकी जरुरत को महसूस करते हुए प्रमोशन के साथ उसकी नियुक्ति हेड ऑफिस में कर दी गयी और अपने पुराने ऑफिस में कार्य सँभालने हेतु ही पुनः लौटी थी अपने ही शहर में। </div>
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फ्लैट की सीढियाँ चढ़ते उतरते एक बार फिर मिसेज वालिया से टकराई। बहुत प्यार से गले ही लगा लिया उन्होंने , कैसी हो , बहुत नाम कमा लिया है तुमने तो और सर पर हाथ फेरते हुए आशीर्वादों की झड़ी लगा दी। थोड़ी हैरानी हुई <span style="background-color: white;">तेजस्वी</span> को क्योंकि अब उनकी आवाज़ में तंज़ नहीं था , चेहरे पर पहली सी चमक भी नहीं थी। घर आना कहते हुए जल्दी ही विदा भी हो ली।<br />
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<span style="background-color: white;">तेजस्वी</span> ने उनके इस असामान्य व्यवहार की चर्चा माँ से की तो माँ भी कुछ उदास हो गयी ," परेशान है पिछले कुछ समय से। सीमा पीछले 6 महीने से मायके में ही है , शायद उसके ससुराल में कोई समस्या है। खुल कर बताया नहीं उन्होंने और ज्यादा पूछना जख्मों पर नमक छिड़कने जैसा लगता है , यही सोचकर ज्यादा जोर देकर पूछा भी नहीं। तुम चली जाना सीमा से मिलने , किसी से ज्यादा मिलती -जुलती नहीं। हंसती खिलखिलाती लड़की बिलकुल मुरझा गयी है। शायद तुम्हे कुछ बताये , तुमसे मिलकर अच्छा लगेगा उसे !</div>
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ओह ! हाँ , जरुर मिलूंगी सीमा से !<br />
और जल्दी ही <span style="background-color: white;">तेजस्वी</span> को मौका भी मिल ही गया सीमा से मिलने का। बिल्डिंग में गाडी पार्क करते सीमा नजर आ ही गई। बहुत थकी हुई लग रही थी।<br />
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कैसी हो सीमा , <span style="background-color: white;">तेजस्वी</span> ने उसके कंधे पर हाथ रखा तो चौंकते हुए उसका चेहरा पीला पड़ गया। </div>
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अच्छी हूँ , तुम कैसी हो। माँ ने बताया कि तुम वापस यही आ गयी हो , अच्छा लगा ! </div>
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दोनों साथ सीढियाँ चढ़ते हुए बाते करती जाती थी। </div>
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उसके फ्लैट की बालकनी में मिसेज वालिया ने भी देखा दोनों को। तेजी से दरवाजे के पास आते <span style="background-color: white;">तेजस्वी</span> को भी भीतर बुलाने लगी ," आओ बेटा , चाय पीकर जाना। थकी मांदी लौटी हो दोनों साथ। </div>
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सीमा की समस्या भी जान लेने की मंशा से उसने कहा , ठीक है आंटी , आप बनाये चाय। मैं माँ को बताकर आती हूँ !</div>
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वापस लौटने तक चाय तैयार थी। सीमा उसे अपने कमरे में ले आई। एक अजीब सी उदासी ,सन्नाटा पसरा था <span style="background-color: white;">दोनों के बीच</span>। सीमा के तन पर कोई सुहाग चिन्ह <span style="background-color: white;">भी </span>नहीं था , बस चुप सी बैठी रही दोनों। </div>
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ख़ामोशी तोड़ते हुए <span style="background-color: white;">तेजस्वी</span> ने ही बात प्रारम्भ की , क्या कर रही हो आजकल , कुछ कमजोर भी हो गयी हो। </div>
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कुछ ख़ास नहीं , प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी में लगी हूँ। अभी कोचिंग से ही आ रही थी। </div>
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और कैसे है सब ससुराल में , हमारे जीजाजी , तुम्हारी सास ? थोडा झिझकते हुए उसने पूछा। </div>
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अच्छे ही होंगे ! एक गहरी स्वांस लेती हुई सीमा की आवाज जैसे गहरे कुएं से आई !</div>
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मैं पिछले छह महीने से यही हूँ !</div>
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क्यों ? सब ठीक तो है , ससुराल में पढ़ाई नहीं हो पाती होगी।<br />
कह तो दिया उसने , मगर साथ ही उसे स्मरण हुआ कि विवाह से पहले गदगद होते मिसेज वालिया ने बताया था कि उसकी सास ने कहा है कि बेटी जैसे मायके में पढ़ती है ,वैसी ही यहाँ भी रहेगी। बेटे का साथ इसका भी टिफिन बना दिया करुँगी!<br />
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सीमा ने कुछ कहा नहीं। एक फीकी - सी मुस्कान उसके चेहरे पर आकर तेजी से विलुप्त हो गयी।<br />
<b>कई बार मन की उथलपुथल को व्यक्त करने में शब्दों की आवश्यकता नहीं होती। बस किसी के साथ यूँ ही खामोश गुजारे दो लम्हे भी दुख को आधा बाँट लेते हैं। बल्कि कई बार दुःख की तीव्रता से घबराये लोग भाग निकलना चाहते हैं अपनों से , अपनों की आँखों में उठने वाले सवालों से और अपनों से बचते-बचाते अपने गमो का पिटारा किसी अजनबी के सामने खोल आते हैं।</b><br />
<b><br /></b><span style="background-color: white;">तेजस्वी</span> समझ सकती थी सीमा की मनःस्थिति को , विश्वास की धरती के पैरों के नीचे से खिसकने की पीड़ा को। <b>चोट खाया विस्मित मन छटपटाता है मन ही मन , हमसे गलती हुई कैसे किसी को समझने में।</b> उसने सीमा का हाथ अपने हाथ में ले <span style="background-color: white;">लिया </span> था। सीमा के <span style="background-color: white;">सख्त </span> होते चेहरे पर कुछ बूँदें लुढक गयी आंसुओं की , जैसे चट्टान की ओट में रुका हुआ कोई सोता फूट पड़ने को तैयार हो।<br />
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<a href="http://vanigyan.blogspot.in/2014/02/5.html" target="_blank"> <span style="background-color: white;"><span style="color: #cc0000;">मध्यमवर्ग परिवार की तेजस्वी अपने संघर्ष और मेहनत की बदौलत मिडिया में कर्मठ व्यक्तित्व के रूप में अपनी पहचान बना चुकी है। नाम और यश प्राप्त कर अपने माता पिता और शहर का गौरव बनकर पुनः अपने शहर लौटी तो कुछ और चुनौतियाँ और संघर्ष उसकी बाट जोहते मिले .... </span></span></a></div>
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धीमी सिसकियाँ आह भरे तेज रुदन में बदलते देर नहीं लगी . तेजस्वी पास बैठी बस पीठ सहलाती रही , उसने सीमा को चुप करने का प्रयास भी नहीं किया . <b>भीतर जमे दर्द को तेज हिचकोलों की जरुरत थी बहकर निकल जाने को वरना जाने कब तक दबा बैठा धीमे रिसता धमनियों को सख्त करता रहता.</b> मिसेज वालिया एक बार कमरे में आई भी मगर तेजस्वी ने चुप रहने का इशारा करते हुए बाहर जाने को कहा . वापस पानी के गिलास और चाय के साथ लौटी , तब तक सीमा का गुबार भी कुछ शांत हो गया था . तेजस्वी ने पानी का गिलास उठाकर दिया उसे , धीमी चुस्कियों में पानी पीकर रखते सीमा का चेहरा और धड़कन भी सामान्य हो चुकी थी . तेजस्विनी की ओर देख उसने धीमे से सौरी कहा , दुपट्टे से आंसू पोंछते आँखों के किनारे और नाक भी सुर्ख लाल सी हो उठी थी . चाय की चुस्कियों के बीच संयत होती सीमा ने विवाह के बाद के सुनहरे दिनों के बदरंग होते पलों की दास्तान बयान की तो तेजस्वी हैरान हो गयी .</div>
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विवाह के बाद ससुराल में सबने उसे हाथो- हाथ लिया था , सभी रस्में बहुत उल्लास और शालीनता से निभाई गयी थी . चूँकि सास और ससुर से सगाई और विवाह की तैयारियों के दौरान कई बार मिल चुकी थी , इसलिए उनके बीच नए घर में उसे कुछ अजनबीपन नहीं लग रहा था.वह भी अपने आप को खुशकिस्मत समझ रही थी इस परिवार का सदस्य बन कर . मगर सौरभ से उसका अधिक परिचय नहीं हो पाया था . देखने दिखाने की रस्म के समय भी उसके माता- पिता ही साथ थे , मगर संकोचवश सीमा ने अकेले में मिलने की इच्छा जताना उचित नहीं समझा वही सौरभ ने कहा दिया कि माँ पिता जी को पसंद है , इसलिए मुझे भी पसंद है . अलग से बात करने की कोशिश भी नहीं की गयी .सगाई की रस्म के समय भी दोनों के बीच औपचारिक बात चीत ही हो पाई , एक दो बार उसकी रिश्ते की छोटी बहन या सहेलियों ने फोन मिलाकर बात करने की कोशिश की तो कभी उधर से सौरभ स्वयं तो कभी उसका नंबर व्यस्त आता मिला. शक सुबह की गुन्जईश इसलिए नहीं रही कि उसके सास ससुर अक्सर फोन पर बाते करते या मिलने आते . उसके ससुर कई बार अकेले भी मिलने चले आते. सुसंस्कृत मृदु व्यव्हार युक्त अच्छे परिवार के गुणों से प्रभावित होकर इस ओर ध्यान ही नहीं दिया गया कि सौरभ कभी सीमा से स्वयं बात करने का इच्छुक नहीं रहा .</div>
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<b>तेजस्वी के मन में ख्याल आया कि भारतीय पारम्परिक विवाह की कितनी अजीब परम्परा है कि जिसके साथ पूरा जीवन बिताना है बस वही अजनबी रहे . कही पढ़ा हुआ भी याद आया उसे कि अजनबी लड़कों से बात न करो , मगर शादी कर लो</b> . स्मित मुस्कराहट उसके चेहरे पर आकर लौट गयी , वह गंभीरता से सीमा की बातें सुनने लगी .</div>
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हालाँकि विवाह की रस्मों के दौरान उसकी भोली प्यारी मुस्कान और हलकी फुलकी छेड़छाड़ ने सीमा को गुदगुदाए रखा , सुदर्शन हंसमुख सा पति , हर पल ख्याल रखने वाला परिवार और सबसे बढ़कर उसके हर पल की चिंता रखने वाले उसके शवसुर . सीमा का मन अपने भाग्य पर इतराने को करता क्योंकि सामान्य हिंद्स्तानी कन्याओं की ही तरह विवाह और अच्छे परिवार से इतर कुछ अपने लिए उसने न सोचा था , न ही उसे प्रेरित किया गया था . शिक्षा का मकसद तो विवाह के लिए अच्छा लड़का मिलने पर ही पूर्ण मान लिया गया था , उनकी इच्छा हो तो आगे पढ़ायें ,नौकरी करवाएं वर्ना घर गृहस्थी संभाले ! हालाँकि सीमा के सास ससुर का वादा था उसकी शिक्षा पूरी करवाने का . पगफेरे पर मायके जाकर एक दिन रह भी आई सीमा , बेटी का प्रफुल्लित चेहरा मिसेज वालिया के चेहरे की रंगत को बढ़ा गया था , बड़ी ख़ुशी और उत्साह के साथ बेटी के ससुराल से आये तोहफे , जेवर , कपडे आदि दिखाती फूली न समाती थी .</div>
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विवाह की सभी रस्मों के बाद मेहमान लौटने लगे . विवाह की गहमागहमी और रिश्तेदारों से गुलजार घर कुछ सूना सा होने लगा , सौरभ को भी अपनी नौकरी के लिए जाना पड़ा , एक सप्ताह की ड्यूटी के बाद पुनः छुट्टी लेकर आने का वादा कर जाने की तैयारी करता रहा , मगर सीमा ने महसूस किया इन दिनों में कि कई बार वह अकेले में बैठा घंटे तक कुछ सोचता ही रहता था या कभी लेटा रहता चुपचाप बस छत को निहारते , उस समय सासू माँ उसे किसी बहाने से अपने पास बुला लेती कि उसे आराम कर लेने दिया जाए , शादी व्याह के काम काज में बहुत थक गया है , तब वे सीमा को अपने पास बिठाकर उससे ढेरों बाते करती वह स्कूल में कैसी थी , बचपन में क्या करती थे , उसकी पढाई के बारे में . सीमा सोचती रहती कि कितने अच्छे हैं सब लोग उसे बिलकुल अकेला नहीं रहने देते .</div>
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श्वसुर हमेशा उसके आस- पास ही मंडराते रहते . सौरभ के चले जाने के बाद तो घर उसे बहुत सूना सा लगा कुछ पल के लिए मगर श्वसुर उसका बहुत ध्यान रखते , उसके लिए नाश्ते की प्लेट , मिठाई का प्याला लिए उसके कमरे में ही चले आते , तेरी सास को करने दे कुछ काम , हम दोनों खायेंगे साथ . कभी उसके कमरे में टीवी ऑन कर बैठ जाते , साथ पिक्चर देखते हैं , सीमा को थोडा संकोच होता , कई बार वह उठकर सास के पास चली जाती मगर वे उन्हें वापस अपने कमरे में भेज देती कि अभी तो वह नई बहू है , घर के कामकाज के लिये परेशां होने की जरुरत नहीं . ज्यादा कुछ कहते उसे डर लगता कि कही वे बुरा न मान जाए .</div>
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एक दो दिन में उसके माता पिता मिलने आये और दामाद के आने तक अपने साथ मायके ले जाने की अनुमति मांग बैठे , कुछ दिनों में उसकी क्लासेज भी शुरू होने वाली थी ,. सीमा के सास श्वसुर ने आदर सत्कार से उनकी मेहमानवाजी की . साथ ही यह भी कह बैठे कि आप तो हमारे घर की रौनक ले जाना चाहते हो , आपके पास रह ली इतने वर्षों , अब यही रहने दो . मगर मिसेज वालिया के बहुत इसरार करने पर आखिर एक सप्ताह के लिए सीमा को मायके भेजने के लिए राजी हुए . मायके लौटी सीमा अपनी आवभगत में डूबी सौरभ के फोन का इन्तजार करती . एक दो बार उसके माता -पिता ने कहा भी कि दामाद जी का फोन आये तो उनसे बात करवा देना, उनसे कभी अच्छी तरह बात ही नहीं हो पाई . मगर वह कभी फोन नहीं करता . सीमा ही मिला लेती कभी उसे फ़ोन तो बहुत कम ही बात कर पाता . सीमा को संकोच होता कि क्या कहे वह माता -पिता को , कई बार बहाना लगा लेती कि उन्होंने फोन किया था , आप पड़ोस में थी , आप सो रहे थे , आप घर पर नहीं थे . आखिर एक दिन उसकी सास का फोन आने पर मिसेज वालिया ने कह ही दिया कि दामाद जी से तो कभी बात ही नहीं हो पाती , हमेशा जल्दी में फोन करते हैं . उसकी सास ने कह बैठी , बेचारा बहुत व्यस्त है , ऑफिस की नई जिम्मेदारी , और वहां कोई और है भी नहीं सब काम उसे ही करना पड़ता है , स्वभाव से ही संकोची है !</div>
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उसी शाम फोन आया सौरभ का सीमा के पास , सीमा से औपचारिक बातचीत के बाद उसने उसके माता- पिता से भी बात की , माफ़ी मांगते हुए कि व्यस्तता के कारण वह अब तक उनसे बात नहीं कर सकता था ! एक सप्ताह में उसके सास- ससुर एक साथ और अकेले ससुर दो बार चक्कर काट गए थे कि हमारा तो मन ही नहीं लगता इसके बिना. मिसेज वालिया बेटी के भाग्य पर ख़ुशी से फूली न समाती . सौरभ के लौटने पर ही सीमा भी लौटी ससुराल नवदाम्पत्य के मद में सिहरन भरी सकुचाहट में शरमाई सी .</div>
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मगर इस बार घर की दीवारों में अजब- सी ख़ामोशी सूनापन- सा था , इस समय घर में सिर्फ चार प्राणी होने के कारण ही नीरवता का अहसास हुआ , यही सोचा सीमा ने . सास- श्वसुर को अपने दफ्तर के लिए विदा करती घर में सौरभ के साथ अकेले रहने से रोमांचित होती रही मगर उसका उत्साह अलसाये से पड़े चुपचाप छत निहारते सौरभ को देख विदा हो लिया .</div>
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वह घबरा गयी , आपका स्वास्थ्य तो ठीक है , हाथ से सर छू कर देखा उसने मगर तापमान सामान्य देख उसे राहत मिली . दिन भर बिस्तर पर लेते उसकी बातों का हाँ हूँ में जवाब देता देख सीमा ने सफ़र और कार्य की थकान को ही कारण समझा . विवाह की रस्मों के तुरंत बाद नए दफ्तर की जिम्मेदारी , वह तो कुछ दिन मायके में बेफिक्री में बिता आई थी मगर सौरभ को आराम मिला ही नहीं ,सोचते हुए उसने सौरभ को डिस्टर्ब नहीं किया ., शाम को कुछ समय बाहर गया सौरभ , लौटकर थोड़ी देर उसका मूड अच्छा रहा , सबने साथ खाना खाया .सौरभ अपने कमरे में जाकर लेट गया . सीमा रसोई का काम निपटाकर आई तो उसने सौरभ को नींद की आगोश में डूबा पाया . सास श्वसुर अपने कमरे में चले गए वह देर रात तक टीवी देखती सो गई . मगर जब अगले कई दिनों सौरभ का वही रूटीन रहा तो सीमा के मन में शंका होने लगी . उसे समझ नहीं आया कि वह क्या कहे , क्या करे . माँ का फोन आता तो शुरू में सब ठीक होने की बात कह बहाना बना देती , बताती तो <b>तब जब उसे इस अजीबोगरीब व्यवहार पर कुछ समझ में आता और जब उसे समझ आया तो उसके क़दमों के नीचे की जमीन ही गुम हो गयी जैसे</b> . सौरभ नशे का आदी था, नशे में दिन भर पड़े रहना और शाम को बाहर नशे का इंतजाम करने जाना उसकी दिनचर्या थी .वह स्तब्ध खामोश हो गयी थी . कैसे करे वह उसकी इस लत का सामना , किसे कहे , किसे बताये . सास को बताना चाहा तो मगर वह शायद पहले से ही जानती थी . प्रकट में सिर्फ यही कहा उन्होंने कि पढाई इतनी मुश्किल होती है कि बच्चे दबाव को सहन नहीं कर पाते , इसलिए कभी कर लेते हैं नशा . इस तर्क ने उसे क्षुब्ध कर दिया , वह भी तो यही पढाई कर रही है , उसे तो कभी जरुरत महसूस नहीं हुई किसी नशे की . यहाँ परिवार समाज का दबाव है तो यह हाल है , नौकरी पर क्या करता होगा ! यह ख्याल उसे परेशान करता रहा . दूसरी ओर उसके कॉलेज में नए सेमेस्टर की क्लासेज भी शुरू हो गयी थी , सास से इजाजत मांगनी चाही तो टाल देती , अभी नयी शादी है , अभी से क्या कॉलेज पढाई , साथ समय बिताओ , एक दूसरे को समझो जब तक छुट्टी पर है . <b>समझती क्या ख़ाक वह जब शब्दों , मन अथवा स्पर्श का आदान प्रदान होता तब तो</b> . मन मार कर सीमा उसकी पोस्टिंग पर जाने का इन्तजार करने लगी . आखिर पंद्रह दिन की छुट्टी बिताकर जब वह पुनः लौट गया तो सीमा कॉलेज जाने की तैयारी में लग गयी , कॉलेज में पढाई और साथियों के बीच उसका मन फिर भी रमा रहता मगर घर लौट कर वही घुटन उसे तोड़ जाती , मायके भी हो आती बीच में, सबके साथ हंसती मुस्कुराती मगर उसने सौरभ के व्यवहार के बारे में कभी किसी से बात नहीं की .</div>
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श्वसुर का व्यवहार उसके प्रति अभी भी अत्यंत प्रेमपूर्ण था . एक दोपहर जब वह कॉलेज से घर लौटी तो श्वसुर घर पर ही मिले , सास दफ्तर में ही थी . वह इस समय उन्हें घर पर देखकर चौंकी जरुर ,</div>
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सीमा के पूछने पर कहा उन्होंने , कुछ नहीं, थोडा सर में दर्द था , आराम कर लूं यही सोचकर घर लौट आया. वह चाय का कप तैयार कर ले आई थी . मुड़ी ही थी कि पीछे से आवाज लगा कर उन्होंने बाम की डिब्बी लाने को कहा . बाम ले आई तो सर पर मल देने का इसरार कर बैठे . कई बार पिता के सर में दर्द होने पर भी लगाया ही था बाम , ममता से भरी उसने धीमे बाम मलना शुरू किया , थोड़ी देर बाद उन्होंने सीमा के हाथ की अंगुलियाँ जोर से थाम ली . घबरा गई सीमा , भौंचक धीमे से हाथ छुड़ा कर वह कमरे से बाहर आ गयी.</div>
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<b><a href="http://vanigyan.blogspot.in/2014/04/6.html" target="_blank">अपने नाम को सार्थक करती तेजस्वी लौटी अपने शहर , उसकी सहेली सीमा की जिंदगी में आये तूफ़ान से रूबरू हो रही है , झिझकते , सिसकते , रोते सीमा सुना रही है अपनी दास्तान ....</a></b></div>
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तेजस्वी के जेहन में कौंधी माँ की शंका जो उन्होंने सीमा की सगाई के समय व्यक्त की थी ," तुम्हे सीमा के ससुर का स्वभाव कैसा लगा ". सीमा कहते हुए कुछ देर के लिए रुकी थी और तेजस्वी सोच रही थी ये माताएं सचमुच अंतर्ज्ञानी होती है . बचपन में उनसे छिप कर की जाने वाली शरारतें भी वे झट से ताड़ लेती थी , किचन में से आवाज लगा लेती , तुम लोग सोफे पर क्यों उछल रहे हो , दूध का वेशिन में उड़ेल दिया न . बच्चे हर बार हैरान हो जाते , माँ , आप एक साथ क्या- क्या कर लेती हो , आपको सब कैसे पता चल जाता है . ममता से भरी माँ मुस्कुराती , बच्चों के जन्म के समय ईश्वर माँ की पीठ पर भी आँख उगा देते हैं और चार अदृश्य हाथ भी देते हैं . कुछ भी शरारत करते उन्हें याद रहता कि माँ की पीठ पर लगी आँखें उन्हें देख रही है .</div>
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सीमा की आवाज जैसे किसी अंधे कुंए से आ रही थी . उसे ससुराल में अजीब सा भय लगने लगा था हालाँकि वह अपने आप को समझाती कि कही उसका भ्रम तो नहीं रहा , कही उनके स्नेह को उसने गलत अर्थ तो नहीं दिया. यदि ऐसा हुआ तो कितना बड़ा पाप अपने सर पर ले रही है वह , हर समय कशमकश अथवा अपराधबोध में घिरी रहती .. एक दिन बेडरूम से अटैच्ड बाथरूम से बाहर निकल बेध्यानी में साड़ी पहनते जब उसकी नजर दरवाजे पर गयी तो उढ़के दरवाजे के पास एक साया सा नजर आया . वह धीमे चलते कमरे से निकल कर किचन तक आई तो फ्रिज में ठन्डे पानी की बोतल निकलते उसके ससुर सास से चाय बनाने की फरमाईश करते नजर आये . वह घबराई पसीने से भरी उलटे पैरों कमरे तक पहुंची और अनुमान लगाती रही कि उसके कमरे के सामने से होकर रसोई तक जाने में कितना समय लगता लगेगा!</div>
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एक बार फिर उसने डरते हुए भी स्वयम को धिक्कारा , नहीं , इस तरह की शंका फिजूल है . मगर मन में बैठे भय ने कमरे में रहते उसे दरवाजे की सांकल बंद रखने को मजबूर कर दिया , यदि दरवाजा खुला रहता तो हर समय सावधान रहने की उसकी कोशिश न उसे सोने देती , न ही किसी काम में मन लगा पाती . अपने मन की शंका को अपने साये तक से भी छिपा कर रखना और अपनी संभावित गलत दृष्टि के अपराधबोध और चिंता में डूबे उसका स्वास्थ्य गिरता जाता था . आँखों के नीचे काले घेरे होने लगे . सीमा अपनी स्थिति का बयान किसी से नही कर सकती थी . घर में काम करते हर समय घबराए ,चौकस रहते उससे काम में गलतियाँ होती जाती , कभी कप गिलास टूट जांते, रसोई से डायनिंग टेबल तक लाते खाने के डोंगे गिर जाते , डोर बेल बजने पर हर प्रकार से निश्चिन्त होने पर ही खोलने की उसकी आदत , घर में अकेले न रहने का इसरार , सास अब उससे नाराज रहने लगी थी .</div>
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छुट्टियों में कुछ दिनों के लिए सौरभ के घर आने से उसे कुछ राहत मिली क्योंकि वह ज्यादा समय घर में ही बिताता था. इस बार उसके व्यवहार में कुछ परिवर्तन भी था , देर से सही , कुछ खुशियाँ उसके हिस्से में आई तो . मगर जब छुट्टियों के बाद वह वापस काम पर जाने लगा तो सीमा ने उसके अच्छे मूड को ध्यान में रख कर अपनी पढाई मायके में रहकर पूरी करने की इच्छा प्रकट कर दी .</div>
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सौरभ इस पर सहमत नहीं था . उसके जाने के बाद मम्मी पापा के अकेले रह जाने की चिंता के साथ ही उनके बुरे मान जाने का भय भी था , फिर भी कुछ दिनों के अंतराल पर मायके आने जाने और रहने की स्वीकृति देते हुए उसने अपने माता पिता को भी सूचित किया . सास यह सुनकर थोड़ी नाराज हुई , क्या तकलीफ है यहाँ इसे , अपना कमरा , अपना घर , कोई पाबंदी नहीं . लोग सवाल भी करेंगे , मगर सौरभ ने नई ब्याहता पत्नी के बिगड़ते स्वास्थ्य और अनुरोध की लाज रखते हुए माँ को मना ही लिया . सौरभ के जाने के बाद कुछ दिनों के लिए सीमा मायके रह आई . दाम्पत्य प्रेम की आभा, दुश्चिंताओं से मुक्ति और आराम , उसके चेहरे पर पुरानी रंगत लौट आने लगी थी .</div>
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एक सप्ताह बात पुनः लौटी ससुराल तो सास ,ससुर दोनों ही चहक उठे .</div>
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सुनती हो , इसकी नजर उतार देना , और खूबसूरत हो आई हमारी बहू तो , उसके ससुर अपनी पत्नी को सम्बोधित कर रहे थे. सास स्नेह से मुस्कुराई मगर सीमा के चेहरे पर भय और सकुचाहट एक साथ उजागर हो आई .</div>
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दुश्चिंता और शक एक बार मन में घर कर जाए तो .व्यक्ति की सोच घडी की सूई की उलटी दिशा में चल देती है , हर कथन अथवा कार्य अपने विपरीत अर्थ में भाषित हो मानसिक कष्ट देता प्रतीत होता है . कही दोष उसकी सोच का ही हो , सीमा स्वयं को यह समझा साहस बटोर लाती .</div>
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एक बरसात के दिन सीमा कॉलेज से लौटी . रेनकोट और हेलमेट ने उसे पूरा गीला होने से तो बचा लिया था मगर फुहार ने मन का मौसम सीला कर दिया था . अपनी मस्ती में गुनगुनाते अपने कमरे की ओर बढ़ते उसके कदम ठिठक से गए .</div>
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आज फिर उसके श्वसुर घर पर ही थे . झिझकते हुए उसने पूछ ही लिया , आप अभी घर पर कैसे . ऑफिस के काम से शहर से बाहर जाना है , पैकिंग के लिए जल्दी आना पड़ा . तुम थोड़ी देर आराम कर लो , फिर मदद कर देना .</div>
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मदद के नाम से सीमा की सिट्टी पिट्टी गुम थी . वह कमरे में गयी और तेजी से दरवाजा बंद कर लिया . गीले कपडे तक बदलने की इच्छा नहीं हुई उसकी . घबराई सी बैठी थी वह कि कब वे उसे पुकार ले , क्या कहकर वह कमरे से बाहर आने से मना करेगी , यही सोचती डरती सिमटी बैठी रही . कुछ देर में अपने दरवाजे पर खटखट की आवाज़ से तीव्र हुई उसकी धडकनों के कारण पैरों तक ने जैसे उसका साथ छोड़ दिया . उसने दबे पाँव दरवाजे और खिड़की की सांकल अच्छी तरह चेक की और आँखें बंद कर लेटने का नाटक करने लगी . एक दो बार की खटखट के बाद दरवाजे पर आहट बंद हो गयी और सोने का नाटक करते जाने उसकी आँख कब लग गयी, उसे पता ही नहीं चला .</div>
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नींद खुलने पर उसने देखा खिड़की से बाहर ,शाम का धुंधलका छाने लगा था . ओह , कितनी देर सोती ही रह गयी , साथ ही उसे अपना भय भी फिर से याद आने लगा .</div>
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नींद भी क्या अजब शै है. बड़े से बड़ा दुःख और भय नींद में महसूस नहीं होते , ऐसे समय में नींद आ जाना राहत देता है तन मन दोनों को , दुःख के हाथो कलेजे फटने से रह जाते है उनके जिन्हें नींद आ सकती हो , चिंता , आशंकाओ से घिरे भी नींद आ ही जाती है , मानव प्रजाति के लिए प्रकृति की यह महत्वपूर्ण देन है .</div>
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धीमे से द्वार खोल देखा उसने , किचन से खटर पटर आती आवाज ने उसे आश्वस्त किया कि सासू माँ लौट आई थी घर . कॉलेज से आकर भूखे ही सो गयी थी , भूख भी सताने लगी थी अब उसे , वह रसोई की ओर बढ़ गयी . सास के चेहरे पर नाराजगी साफ़ झलक रही थी , ऐसे भी क्या घोड़े बेच कर सोना आता है तुम्हे , घर में कोई आये कोई जाए , किसी से कोई मतलब नहीं . पापा ने कहा भी था मदद करने को मगर तुम अनसुनी कर जाकर सो गयी , ये क्या तरीका है . क्या कर रही थी तुम इतनी देर !</div>
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मुझे अकेले घर में डर लगता है .</div>
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अकेले कहाँ थी तुम , तुम्हारे ससुर थे न घर में . और अपने घर में किससे डर लगता है ! तुम्हे अपने मायके में डर नहीं लगता था कभी !</div>
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वह आगे कुछ न कह सकी , बस पैर से जमीन कुरेदती सी चुपचाप खड़ी रही . उन्होंने सीमा से यह पूछना भी उचित नहीं समझा कि उसने खाना खाया या नहीं . पेट में कुलबुलाते चूहों की अनदेखी कर वह रसोई में सास का हाथ बंटाने लगी . मगर अच्छा यह रहा कि दो तीन दिन के लिए उसे भय से राहत मिल गयी थी .</div>
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सप्ताहांत का दिन उसके लिए मनहूस होने वाला था, उसने सोचा नहीं होगा . कॉलेज से लौटी ड्राइंगरूम में टीवी देखते सोफे पर ही लेटी सीमा को नींद आ गयी थी . मेनगेट का दरवाजा कब खुला , कौन अन्दर दाखिल हुआ उसे कुछ खबर ही नहीं रही . गालों पर कुछ सरसराहट से चौंक कर उसकी नींद खुली तो स्तब्ध सीमा को कुछ सोचने में भी वक्त लगा . सोफे पर उसके करीब कोई बैठा था जिसकी गोद में उसका सर था. घबराकर तेजी से उठते हुए वह स्वयं से बहुत नाराज थी , इतनी निश्चिंतता से वह सो कैसे सकती थी . स्थिति समझ में आते ही अपना आपा खोकर उसकी चीख निकल पड़ी , आप यहाँ क्या कर रहे हैं , दरवाजा बंद था, भीतर कैसे आये .</div>
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चाबी थी मेरे पास , बेल की आवाज पर किसी ने दरवाजा नहीं खोला तो लॉक खोलकर अन्दर आ गया , मगर तुम इतना घबरा क्यों गयी . तुम्हे सोते देख उठाना उचित नहीं समझा . तुम आराम करो .</div>
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अपना बैग उठाकर वे अन्दर चले गए. मगर सीमा के लिए अब इस स्थिति में उस घर में अकेले रहना संभव नहीं था . हर समय भय के साये में रहना उसे मानसिक रूप से थका रहा था . उसी शाम सौरभ भी लौटा . मगर सीमा को समझ नहीं आ रहा था कि किस प्रकार वह अपना भय सौरभ के आगे प्रकट करे . यदि उनसे उस पर विश्वास नहीं किया , यदि उसका भय भी बेबुनियाद रहा , भ्रम रहा हो तो वह स्वयं से कैसे नजरें मिलाएगी . मन को मजबूत कर उसने सिर्फ सौरभ से अपने मायके में या उसके साथ ही जाने की बात की तो सौरभ का सौम्य दिखने वाला चेहरा गुस्से से तमतमा उठा .</div>
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क्या मतलब है तुम्हारा , क्यों जाना है तुम्हे मायके रहने या मेरे साथ . यही रहना होगा तुम्हे मेरे मम्मी पापा के साथ . क्या परेशानी है तुम्हे यहाँ ! सौरभ के तेज चीखने की आवाज सुन उसके माता पिता भी वहीँ आ गए थे . एकांत में कही अपनी बात पर तेज चीख कर हंगामा करते देख सीमा अपमान और ग्लानि से भर उठी .</div>
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क्या बात है सौरभ , इतना क्यों चीख रहे हो , क्या हुआ .</div>
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कुछ नहीं माँ , ये अपने मायके रहना चाहती है या मेरे साथ .</div>
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सौरभ की माँ को बुरा लगाना स्वाभाविक था . थोड़ी नाराजगी भरे शब्दों में वे बोली , घर में कुल तीन प्राणी है , काम का कोई दबाव नहीं है , कॉलेज जाने की छूट है , पूछो इससे ये फिर भी ये ऐसा चाहती है .</div>
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हाँ , बताओ क्या परेशानी है तुम्हे यहाँ . क्या कहती सीमा.</div>
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परेशानी कुछ नहीं है , मैं आपके साथ रहना चाहती हूँ.</div>
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सौरभ की माँ दुःख और क्षोभ में भर उठी , इतने चाव से बहू लेकर आये थे , मगर पता नहीं था कि उसे हमारी आवश्यकता नहीं , वह हमारे साथ नहीं रहना चाहेगी . कुछ महीनो की ही गृहस्थी हुई है अभी और इनके अलग रहने के ख्वाब जाग उठे हैं . उनकी आँखों से बहते आंसूं ने सीमा को अपराधबोध से भर दिया . विवाह से पहले सौरभ के माता- पिता के व्यवहार से प्रभावित सीमा ने कभी कल्पना भी नहीं की थी कि उसे इन परिस्थितियों का सामना करना होगा . अपने छोटे से घर में अपने पति और उसके माता -पिता के साथ रह उनकी खुशियों और दुखों को जीना और साझा करना ही ध्येय समझा था उसने . मगर अब हर समय इस भय के साये में सौरभ के बिना उसका उस घर में रहना असंभव था . सौरभ के मना करने के बावजूद उसके जाने के बाद अपना बैग उठाकर वह मायके चली आई थी . सौरभ को यह पता चला तो वह सीमा को फ़ोन कर उसने अपनी नाराजगी प्रकट की और कभी घर वापस न लौटने का फरमान सुना दिया था .</div>
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उधर सौरभ बहुराष्ट्रीय कम्पनी में कार्य करने के प्रयास में अंततः दुबई में नौकरी मिल गयी थी . दुबई जाने की तैयारियों के लिए हालंकि वह कुछ दिन के लिए अपने शहर आया मगर सीमा से मिलने या उसको बुलाने की कोई कोशिश नहीं की . सीमा को इस खबर का पता उसके किसी मित्र से तब पता चला जब वह दुबई जा चुका था .</div>
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सौरभ के बिना उसे ससुराल जाना मंजूर नहीं था और उसके दुबई चले जाने के बाद वैसे भी उसके रास्ते बंद हो चुके थे . मिसेज वालिया ने सीमा को समझाने की बहुत कोशिश की कि उसे ससुराल में रहना चाहिए , अपने सास ससुर के साथ , मगर सीमा के लिए नहीं जाने का कारण बताना इतना आसान नहीं था . बेटी की जिद के आगे मजबूर उन्होंने एक दो बार उसके सास ससुर से मिलकर बात करने की कोशिश की , मगर वे इसे पति -पत्नी के बीच का मामला बताकर दूर हो गए . अब जो भी बातचीत हो सकती थी , वह सौरभ के दुबई से लौटने पर ही संभव थी . सौरभ के लौटने का इन्तजार करते सीमा ने अपनी पढाई पर पूरा ध्यान केन्द्रित किया , फाइनल सेमेस्टर की तैयारी में उसने रात दिन एक कर दिए .</div>
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<b>(मध्यम वर्ग में पली बढ़ी तेजस्वी अपने तेज के दम पर ही आगे बढती आयी है , कार्यालय की मुसीबतों से लड़ कर विजयी होते इस बार उसने लडाई लड़ी अपनी सखी के लिए , साथ ही उस स्त्री के लिएभी , जिसने बेटी के रूप में लड़कियों को ताना या निपटा दी जाने वाली जिम्मेदारी ही समझा था . )</b><br />
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मिसेज वालिया ने बेटी के दिन पर दिन पीले पड़ते चेहरे और खाना खाने की इच्छा नहीं होने को बिगड़ते रिश्ते के कारण तनाव और पढाई के साथ कॉलेज की भागदौड़ ही समझा था , मगर एक दिन जब कॉलेज से लौट कर बेहद थकान के साथ सीमा ने खाया पीया सब उलट दिया तो उन्हें चिंता होने लगी थी उसके स्वास्थ्य की भी . लेडी डॉक्टर ने बधाई के साथ जो सूचना दी , उसने एकबारगी उन्हें खुश भी किया था , शायद आने वाले बच्चे की ख़ुशी में परिवार के मतभेद सुलझ सके , मगर सीमा और अधिक चिंतित हो गयी थी . मिसेज वालिया यह खुशखबरी लेकर सीमा के ससुराल पहुंची तो उनके आश्चर्य का ठिकाना नहीं था , सौरभ घर पर ही मौजूद था , वह दुबई से अपनी नौकरी छोड़ कर आ चूका था . उसके माता पिता ने बहुत अधिक प्रसन्नता न जाहिर करते हुए भी वे सीमा को अपने घर छोड़ जाने की ख्वाहिश प्रकट की , मगर सौरभ ने इस पर कुछ नहीं कहा और वहां से उठकर चला गया . उसी शाम सीमा के फोन पर सौरभ का फोन आया तो जो थोड़ी बहुत उम्मीद बची थी , वह भी टूट गयी . नशे में फोन पर ही भारी गालीगगलौज करते हुए उसके चरित्र पर अंगुली उठाते सौरभ का यह रूप इससे पहले सीमा ने नहीं देखा था . सौरभ का यह रुख देखते सीमा तय नहीं कर पा रही थी कि वह आगे क्या करेगी , उसकी पढाई , करिअर , जीवन सब अधरझूल में था . अँधेरे आंसुओं में डूबते एक रात पेट में उठे भीषण दर्द ने उसे अस्पताल पहुंचा दिया , आने वाली जिंदगी ने खुद अपना रास्ता तलाश कर लिया था , उसने मुक्त कर दिया सीमा को. यह खबर जब सीमा के के ससुराल पहुंची तो तीनो प्राणी चीख पुकार उठे कि उनके खानदान के वारिस को जानबूझकर इस दुनिया में आने नहीं दिया गया . सीमा और उसके माता पिता हैरान थे कि कल तक जिस बच्चे को स्वीकार ही नहीं किया जा रहा था , वह इतना अजीज हो गया आज कि उसके न होने का कारण भी सीमा के मत्थे ही मंड दिया गया . मगर सीमा के लिए मुश्किलें यही समाप्त नहीं होने वाली थी , हॉस्पिटल से घर पहुँचते उसके सामने कानूनी नोटिस था जिसके अनुसार वह घर के कीमती जेवर और रुपयों के साथ लापता थी . उस नोटिस का जवाब देने के लिए वकील से मिलने जुलने का दौर चल रहा था इन दिनों !गहरी सांस लेकर सीमा ने अपनी कहानी समाप्त की . उत्पीडन और शोषण के अनेकानेक केस से रूबरू होने के बाद भी तेजस्वी को इस मामले में कुछ कहना सूझा नहीं . खिड़की से बाहर देखा उसने , बाहर घिरता अँधेरा उसके दिल में घर करने लगा था जैसे मगर अपनी सखी से सब कहकर सीमा का मन हल्का हो गया था . अब वह बहुत संयमित लग रही थी .<br />
चलती हूँ अब , बहुत रात हो गई सी दिखती है .<br />
सॉरी , यार . तुम दिन भर से थकी मांदी लौटी थी , अपना दुखड़ा रोने में मैंने यह ध्यान ही नहीं रखा .<br />
कोई बात नहीं , मुझे अच्छा लगा कि मैं तुम्हारे लिए इतनी विश्वसनीय हूँ कि तुम बेहिचक सब कह सकी . चिंता मत करो , सब ठीक ही होगा . अपनी परीक्षा की तैयारी अच्छी तरह करो , कुछ मदद चाहती हो तो भी कहना .<br />
अवश्य ही , खाना खा लो बेटा. मिसेज वालिया उसे बड़े स्नेह से कह रही थी . उनके शब्दों की आर्द्रता ने छुआ तेजस्वी के मन का कोई कोना , बीत कुछ वर्षों की कडवाहट जो उसने कभी जाहिर नहीं की थी , घुल कर बह गयी जैसे उसमे .<br />
नहीं आंटी , माँ इन्तजार करती होंगी . आप सीमा का ख्याल रखिये . मैं अभी चलती हूँ ....स्नेह से भरी तेजस्वी ने जवाब दिया और दरवाजा खोल कर बाहर निकल आई . माँ-पिता और भाई बहन खाने पर लिए उसका ही इन्तजार कर रहे थे . माँ ने कुछ पुछा नहीं , सिर्फ खाना परोसती रही . तेजस्वी को माँ की यह बात भी बहुत पसंद आती है कि वे चुप रखकर सुनने का इन्तजार करती है . खाने के बाद बालकनी में बैठी माँ बेटी देर रात सीमा की परेशानियों पर विचार करती रही , क्या हल निकलेगा इसका !!<br />
अगला दिन बहुत व्यस्त था तेजस्वी की लिए , सीमा के माता पिता के साथ वह भी वकील बत्रा से मिलने चली गयी थी. उन्होंने सीमा को कोर्ट में प्रताड़ना का केस दर्ज करवाने की सलाह दी मगर वह इसके लिए तैयार नहीं थी . उसके मन में हलकी सी उम्मीद थी कि वह सौरभ से मिलकर बात करेगी तो शायद बात संभल जाए . आखिर तेजस्वी के प्रयासों के फलस्वरूप मध्यस्थ की सहायता से सीमा के कॉलेज में सौरभ का आना तय हुआ क्योंकि वह उसके घर आने के लिए बिलकुल तैयार नहीं था . सौरभ सीमा से मिलने कॉलेज पहुंचा तब भी नशे में ही धुत था . सीमा ने अपना पक्ष समझाने की बहुत कोशिश की , मगर सौरभ टस से मस ने हुआ. सीमा का हाथ पकड़कर ग्राउंड में ले आया और चीखने चिल्लाने लगा , कॉलेज के अन्य साथियों ने भरसक प्रयास कर उसे चुप कराया और उसकी गाडी में ले जाकर बैठाया . सुलह की यह आखिरी कोशिश नाकाम हो गयी थी , मगर पास ही मौजूद तेजस्वी के कैमरे में उसकी हरकतें कैद हो चुकी थी . तेजस्वी ने जब यह मिसेज वालिया और उनके परिवार को दिखाया तो वे समझ गए कि अब सुलह की कोई गुन्जाइश नहीं रही हालाँकि वे यह भी जानते थी कि कोर्ट में सीमा के चरित्र हनन की कोशिशों को सामना करना इतना आसान नहीं था . तेजस्वी ने अपने कैमरे की गवाही के साथ ही सौरभ की नशे की आदतों , बुरे व्यवहार एक मजबूत पक्ष अवश्य खड़ा कर लिया था . तेजस्वी ने सीमा को कुछ बताये बिना ही उसके सास ससुर से अपने सुबूतों के साथ संपर्क किया तब वे समझ चुके थे कि अब सीमा को कोर्ट में बुलाना उनके लिए मुसीबत हो सकता है . वे हाथ जोड़ कर माफ़ी मांगने लगे और सीमा को वापस ससुराल बुला लेने की बात भी कर उठे . तेजस्वी जानती थी कि उसके लिए इस तनावपूर्ण तकलीफदेह व्यवहार को भूला पाना संभव नहीं होगा मगर वह सीमा से मिलकर ही आखिरी फैसला करना चाहती थी . सीमा ने सौरभ के साथ आगे जीवन बिताने में असमर्थता प्रकट की . आखिर तय यह हुआ कि आपसी सहमति के आधार पर तलाक लिया जाएगा , और सीमा के विवाह में होने वाला खर्च , दहेज़ में दिया गया सामान सहित उसका स्त्रीधन उसे वापस दिया जाएगा . भरण पोषण के लिए सौरभ से रकम लेने में सीमा की कोई रूचि नहीं थी .<br />
तेजस्वी को सीमा के लिए दुःख अवश्य था कि मात्र 24 वर्ष की उम्र में उसने क्या नहीं देखा , मगर फिर भी उसके मुश्किल समय में मददगार होने का आत्मसंतोष भी था.<br />
मिसेज वालिया को समय ने सबक दिया है कि बेटी का विवाह हो जाना ही कोई बड़ी उपलब्धि नहीं है , उनके सामने सपनों , महत्वाकांक्षाओं का विस्तृत संसार है , उनका साथ देना और उत्साह बढ़ाना है . जब तब तेजस्वी की सहायता से गदगद हुई जाती बलईंयाँ लेती हैं , बेटी हो तो तेजस्वी जैसी !<br />
सीमा के जीवन में भी धीरे- धीरे खुशियाँ लौट आएँगी . कडवे दुखद समय को भूलने में कुछ समय तो लगेगा ही . समय ने उसे सिखाया है बहुत कुछ ....<br />
तेजस्वी ने जो बाहर की दुनिया में सीखा , सीमा को घर की चाहरदिवारियों ने ही सिखाया . चुनौतियाँ , कठिनाई , कहीं भी कम नहीं !<br />
अब मिसेज वालिया नहीं करती किसी पर कटाक्ष , यही कहती नजर आती है - बेटी है तो क्या . पढाओ- लिखाओ . अपने पैरों पर खड़ा करो . जीने दो उन्हें अपनी जिंदगी , शादी /विवाह भी समय पर हो ही जायेंगे !!</div><div><br />
तेजस्वी की एक और यात्रा पूर्ण हुई हालाँकि चुनौतियों का सफ़र सतत है . उसे अभी अपने जीवन के अनगिनत सोपान इसी दृढ़ता और साहस के साथ तय करने हैं !!<br />
धुंए के पार रोशनी है . विश्वास और दृढ़ता कायम रहे तो धुंध को चीर कर रोशनी की लकीर पहुँचती ही है !!</div>
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वाणी गीतhttp://www.blogger.com/profile/01846470925557893834noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-7445694132447968411.post-36787066234702136792014-04-22T09:36:00.001-07:002014-04-22T09:36:18.608-07:00रोशनी है कि धुआँ…(1) <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<span style="background-color: white; color: #222222; font-family: arial;">करीने से सजा कर रखे गए लाल बड़े अक्षरों से लिखा नाम <b>" वायब्रेंट </b></span><span style="background-color: white; color: #222222; font-family: arial;"><b>मिडिया </b></span><span style="background-color: white; color: #222222; font-family: arial;"><b>हाऊस</b></span><span style="background-color: white; color: #222222; font-family: arial; font-size: x-small;"> </span><span style="background-color: white; color: #222222; font-family: arial;"><b> " </b>. शीशे की पारदर्शी दीवारों से झांकती अन्तःसज्जा … राह चलते कितनी बार कदम रुके होंगे , कितनी बार चीते की खाल जैसे चित्रकारी से सजी अपनी स्कूटी को रोका होगा </span><span style="background-color: white; color: #37404e; font-family: 'lucida grande', tahoma, verdana, arial, sans-serif; line-height: 17.98611068725586px;">उसने</span><span style="background-color: white; color: #37404e; font-family: 'lucida grande', tahoma, verdana, arial, sans-serif; font-size: x-small; line-height: 17.98611068725586px;"> </span><span style="background-color: white; color: #222222; font-family: arial;"> !</span><br />
<span style="background-color: white; color: #222222; font-family: arial;"><br /></span>
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<div style="color: #222222; font-family: arial;">
कब से संजों रखा था सपना उसने किसी दिन इस ऑफिस में बतौर संपादक नहीं तो , पत्रकार या कर्मचारी के रूप में ही सही . बड़े घोटालों के खुलासे , सफेदपोशों के काले कारनामे , अन्याय के विरुद्ध डट कर खड़े रहना , जाने कब ख़बरों ही ख़बरों में वह इस हाउस से जुड़ गयी थी और जब अपने लिए करियर चुनने का अवसर आया तब उसने यही अपनाया। </div>
<div style="color: #222222; font-family: arial;">
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<div style="color: #222222; font-family: arial;">
घर में सबने टोका , बहुत मुश्किल है यह लड़कियों के लिए , क्यों पड़ती हो झंझट में। पत्रकारिता में क्या है , लिखो घर सजाने के बारे में , परिवारों को एकजुट रखने के बारे में , अच्छा खाना बनाने की टिप्स , सौंदर्य और ग्लैमर की दुनिया के बारे में जानकारी देना , कविता , कहानियां भी लिखती हो , क्या यह काफी नहीं है ....<br />
<span style="background-color: white; color: #37404e; font-family: 'lucida grande', tahoma, verdana, arial, sans-serif; line-height: 17.98611068725586px;">कोई समझाता </span>विस्तृत आकाश है तुम्हारे सामने , तुम्हे पत्रकार ही क्यों बनना है ! कितना खतरा है इसमें और तुम लड़की जात , कैसे करोगी सामना !</div>
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<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
</div>
<b>परिजनों की चिंता स्वाभाविक थी। </b></div>
<div style="color: #222222; font-family: arial;">
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जैसे और लड़कियां कर रही हैं , तुमने नहीं देखा मेघा , निष्ठा को। कितना आत्मविश्वास है उसमे। कितनी बेबाकी से भ्रष्ट राजीनीति , अफसरशाही , कालाबाजारी , घोटालों पर लिखती है , आज लड़कियां कहाँ नहीं हैं , क्या नहीं कर रही हैं , पुलिस ,सेना ,गुप्तचर विभाग , वकालत और जाने क्या क्या , क्या उनका परिवार नहीं है , तुम नाहक फ़िक्र क्यों करती हो।<br />
<b>माँ के गले में बांहे डाल उसे आश्वस्त करने की कोशिश करती।</b></div>
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मीडिया हाउस में ऊर्जावान पत्रकारों की नयी भर्तियों के बारे में जैसे ही पता चला , वह मिली उत्कल से . उत्कल और तेजस्वी पडोसी और सहपाठी होने के कारण अच्छे मित्र भी थे। बारिश के पानी में साथ कुलांचे भरने , नाव बहाने से से लेकर स्कूल के पास सटे मूंगफली और मूली के खेतों में सेंधमारी तक के कार्य उन्होंने एक साथ ही किये थे। माध्यमिक विद्यालय तक आते दोनों के विद्यालय बदल गए . उत्कल के पिता कई प्रमोशन पा कर अपने विभाग के उच्चाधिकारी बन चुके थे , हर प्रमोशन के साथ ही उनका रहन -सहन उच्च से उच्चतर होता गया , उत्कल की माँ सोने से <span style="background-color: white;">लदती </span> गयी , गैरेज में <span style="background-color: white;">खड़े </span><span style="background-color: white;">दुपहिया का स्थान महंगे </span><span style="background-color: white;"> </span><span style="background-color: white;">चौपहिया ने ले लिए ,</span>गाड़ियां महँगी होती गयी और इसी अदला बदली में उत्कल सरकारी विद्यालय से प्रमोट होकर सबसे <span style="background-color: white;">शहर के सबसे प्रतिष्ठित </span> अंग्रेजी माध्यम के विद्यालय का विद्यार्थी हो गया। तेजस्वी और उसके परिवार के साथ उसके व्यवहार में कोई परिवर्तन नहीं हुआ , हालाँकि उत्कल के माता- पिता जब तब अपने रुतबे का शंख बजाये बिना नहीं रहते।<br />
इंजीनियरिंग की पढ़ाई पूरी कर उत्कल शहर के ही जाने माने संस्थान से जुड़ चूका था , तेजस्वी अपनी पढ़ाई पूरी कर विभिन्न प्रतियोगी परीक्षाओं का सामना करते हुए अपने सपने को पाल रही थी। उत्कल भी विभिन्न प्रतियोगी परीक्षाओं के साथ ही उसके सपने पूर्ण करने में अपनी सलाह और प्रेरणा देना नहीं भूलता। उत्कल ने ही मीडिया हॉउस की चीफ एडिटर का पता देते हुए उसे सलाह दी कि आवेदन करने से पहले वह पहले एक बार उससे मिल ले। उसके बाद ही अपना आवेदन दाखिल करे। </div>
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परिचय से लेकर साक्षात्कार तक उसका आत्मविश्वास कई बार डगमगाया। बॉब कट हेअर स्टायल और मिनी स्कर्ट वाली फॉर्मल आउटफिटमें टाइटफिटेड माला ने उसे ऊपर से नीचे आँख भर देखा तो वह एक बार सकपका गयी। उसने भी खुद पर एक नजर डाली , सलवार कमीज पर लापरवाही से ओढ़ा स्टोल और रूखे बालों में गुंथी हुई <span style="background-color: white;">चोटी </span>। खुद को कोसा उसने , कम से कम बाल खुले ही रख लेती , मगर घबराहट को छिपाते हुए चेहरे पर आत्मविश्वासी मुस्कान लाने में कामयाब हो <span style="background-color: white; color: #37404e; font-family: 'lucida grande', tahoma, verdana, arial, sans-serif; line-height: 17.98611068725586px;">ही गई </span>।<br />
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बात यही ख़त्म नहीं हुई , धड़धड़ाती अंग्रेजी में पूछे गए माला के सवालों ने फिर से उसके दिल की धड़कने बढ़ा दी। अंग्रेजी ज्ञान बुरा नहीं था उसका , मगर हिंदी माध्यम से ली गयी शिक्षा पटर पटर अंग्रेजी बोलने पर अंकुश लगा देती। उसने धीमे शब्दों में अपना परिचय देते हुए अपने आने का मकसद बताया। </div>
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<b>ओहो , पत्रकार बनने आई हो</b> ,होठों को तिरछा कर भीषण हंसी को रोकते माला ने हिंदी में ही कहा । चोर नजरों से तेजस्वी ने देखा ,उसके पास ही खड़े एक कर्मचारी के होठों पर भी तीव्र मुस्कराहट थी। गले में लटके बैज पर नाम भी देखा उसने -<span style="background-color: white;">साहिल </span> मिश्रा !<br />
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तेजस्वी ने एक गहरी सांस ली और अपने सपने को याद किया।<br />
<b>जी हाँ ! वैदेही मैम कब और कहाँ मिलेंगी।</b> तन कर खड़े रहते उसने जवाब दिया.</div>
<div>
वैदेही के नाम से माला कुछ संयत हुई। कार्य के प्रति अपने समर्पण के साथ ही बेबाकी और साहस के लिए जाने जाने वाली अनुशासनप्रिय <span style="background-color: white; color: #37404e; font-family: 'lucida grande', tahoma, verdana, arial, sans-serif; line-height: 17.98611068725586px;">उपसम्पादक </span> वैदेही का अपना रुतबा था.<br />
माला से केबिन का पता लेकर चल पड़ी तेजस्वी वैदेही से मिलने । </div>
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<span style="color: #37404e; font-family: lucida grande, tahoma, verdana, arial, sans-serif;"><span style="line-height: 17.98611068725586px;">वैदेही उससे बड़े प्यार से मिली , उत्कल ने उसे तेजस्वी के बारे में बता दिया था। उसकी शैक्षणिक योग्यता के साथ ही उसके पसंदीदा विषय को भी जानना चाहा .</span></span></div>
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<span style="color: #37404e; font-family: lucida grande, tahoma, verdana, arial, sans-serif;"><span style="line-height: 17.98611068725586px;"><br /></span></span></div>
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<span style="background-color: white; color: #37404e; font-family: 'lucida grande', tahoma, verdana, arial, sans-serif; font-size: x-small; line-height: 17.98611068725586px;"> </span><span style="background-color: white; color: #37404e; font-family: 'lucida grande', tahoma, verdana, arial, sans-serif; line-height: 17.98611068725586px;"><b>तुम्हे </b></span><span style="color: #37404e; font-family: lucida grande, tahoma, verdana, arial, sans-serif;"><span style="line-height: 17.98611068725586px;"><b> किस विषय पर लिखना अधिक पसंद है.</b></span></span></div>
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<span style="color: #37404e; font-family: lucida grande, tahoma, verdana, arial, sans-serif;"><span style="line-height: 17.98611068725586px;"><br /></span></span></div>
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<span style="color: #37404e; font-family: lucida grande, tahoma, verdana, arial, sans-serif;"><span style="line-height: 17.98611068725586px;"><b>देश की सामाजिक , राजनैतिक और </b></span></span><span style="background-color: white;"><b>प्रशासनिक </b></span><span style="color: #37404e; font-family: lucida grande, tahoma, verdana, arial, sans-serif;"><span style="line-height: 17.98611068725586px;"><b> व्यवस्था पर चिंतन और बेबाक लेखन मुझे बहुत पसंद है। </b></span></span><br />
<span style="color: #37404e; font-family: lucida grande, tahoma, verdana, arial, sans-serif;"><span style="line-height: 17.98611068725586px;"><b><br /></b></span></span></div>
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<span style="color: #37404e; font-family: lucida grande, tahoma, verdana, arial, sans-serif;"><span style="line-height: 17.98611068725586px;"><b>स्त्री सशक्तिकरण अथवा स्त्रियों से ही जुड़े अन्य मुद्दों में तुम्हारी रूचि नहीं है ? </b></span></span><span style="color: #37404e; font-family: 'lucida grande', tahoma, verdana, arial, sans-serif; line-height: 17.98611068725586px;">वैदेही का चौंकना </span><span style="color: #37404e; font-family: 'lucida grande', tahoma, verdana, arial, sans-serif; line-height: 17.98611068725586px;">लाज़िमी था !</span></div>
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<span style="color: #37404e; font-family: 'lucida grande', tahoma, verdana, arial, sans-serif; line-height: 17.98611068725586px;"><br /></span></div>
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<span style="color: #37404e; font-family: lucida grande, tahoma, verdana, arial, sans-serif;"><span style="line-height: 17.98611068725586px;"><b>सामाजिक व्यवस्था मतलब नारी नहीं हुआ !</b></span></span></div>
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<span style="color: #37404e; font-family: lucida grande, tahoma, verdana, arial, sans-serif;"><span style="line-height: 17.98611068725586px;"><br /></span></span></div>
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<span style="color: #37404e; font-family: lucida grande, tahoma, verdana, arial, sans-serif;"><span style="line-height: 17.98611068725586px;"><b>हम्म्म्म …मगर जैसी हमारी सामाजिक व्यवस्था है , उसमे स्त्री एक कमजोर पक्ष मानी जाती है. उसे विशेष संरक्षण , सहानुभूति , देखभाल की आवश्यकता है।</b></span></span></div>
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<span style="color: #37404e; font-family: lucida grande, tahoma, verdana, arial, sans-serif;"><span style="line-height: 17.98611068725586px;"><br /></span></span></div>
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<span style="color: #37404e; font-family: lucida grande, tahoma, verdana, arial, sans-serif;"><span style="line-height: 17.98611068725586px;"><b>मैं समाज के प्रत्येक अंग के चिंतन ,विकास और संरक्षण पर ध्यान देना और दिलाना चाहूंगी। </b></span></span></div>
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<span style="color: #37404e; font-family: lucida grande, tahoma, verdana, arial, sans-serif;"><span style="line-height: 17.98611068725586px;">तेजस्वी को अपनी चोंच से अंडे का खोल फोड़ कर बाहर आने वाली चिड़िया की कहानी याद थी. </span></span></div>
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<span style="color: #37404e; font-family: lucida grande, tahoma, verdana, arial, sans-serif;"><span style="line-height: 17.98611068725586px;"><br /></span></span></div>
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<span style="color: #37404e; font-family: lucida grande, tahoma, verdana, arial, sans-serif;"><span style="line-height: 17.98611068725586px;">वैदेही ने उसे आवेदन और चयन की कार्यविधि समझाई। </span></span></div>
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<span style="color: #37404e; font-family: lucida grande, tahoma, verdana, arial, sans-serif;"><span style="line-height: 17.98611068725586px;"><br /></span></span></div>
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तेजस्वी मानती <span style="background-color: white; color: #37404e; font-family: 'lucida grande', tahoma, verdana, arial, sans-serif; line-height: 17.98611068725586px;">रही </span>है कि खूबसूरती देखने वाले की आँखों में होती है , यह सिर्फ इंसान पर ही लागू होता है . घर <span style="background-color: white; color: #37404e; font-family: 'lucida grande', tahoma, verdana, arial, sans-serif; line-height: 17.98611068725586px;">में </span> उसकी भाई बहन से कई बार कहा सुनी हो जाती. उसकी टेबल को कोई हाथ ना लगाये , जो चीज जहाँ से ली वहीं रखे . कई बार माँ <span style="background-color: white; color: #37404e; font-family: 'lucida grande', tahoma, verdana, arial, sans-serif; line-height: 17.98611068725586px;">समझाती भी उसे -</span> थोडा इग्नोर भी किया करो ,मगर उसे घर , स्टडी टेबल , ऑफिस सब व्यवस्थित ही चाहिए।<br />
जब उसे सुन्दर रंगों और शीशे से घिरे व्यवस्थित केबिन से सजा धजा ऑफिस अपने कार्यक्षेत्र के लिए मिला तो उसकी प्रसन्नता का ठिकाना ही नहीं था। <span style="background-color: white; color: #37404e; font-family: 'lucida grande', tahoma, verdana, arial, sans-serif; line-height: 17.98611068725586px;">उसका सपना सच होने जा रहा था !</span><br />
<span style="background-color: white; color: #222222; font-family: arial;">खूबसूरत </span><span style="background-color: white; color: #222222; font-family: arial;"> स्वप्निल </span><span style="background-color: white; color: #222222; font-family: arial;"> सुबह में माँ की आवाज़ से नींद टूटी तेजस्वी की , क्या समय है आज ऑफिस जाने का। </span><br />
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"ओह ! माँ ,सपनों में जाने कहाँ दौड़ती -उड़ती -फिरती रही रात भर <span style="background-color: white;">मैं </span> "<br />
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चादर एक तरफ फेंक पैर में चप्पलें फंसाती <span style="background-color: white;">सी </span> बाथरूम की और भागी। नहा धोकर तैयार हुई तो माँ नाश्ते के साथ दही बताशा चम्मच में भरे खड़ी थी।<br />
<br />
घर से निकलते पिता की स्नेहिल ऑंखें सिर्फ इतना ही कह पाई "अपना ध्यान रखना "! </div>
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<span style="background-color: white;">वहीँ </span>माँ की सैकड़ों हिदायतें , ध्यान से जाना , हेलमेट जरुर लगा लेना , मोबाइल चेक करती रहना ....</div>
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तेजस्वी सोच कर मुस्कुराती है जब फोन इतने आसानी से उपलब्ध नहीं थे , माओं का गुजारा कैसे होता होगा , कही पहुँचों तो कॉल करो , रवाना हो रहे हो तो कॉल करो , और यदि किसी कारणवश फोन नहीं पाये तो घर पहुँचते जाने कितने दोस्तों के पास फोन पहुँच जाए। कई बार झुंझलाती है तेजस्वी कि क्या है ये माँ , घर ही तो आ रही थी , सब दोस्त हँसते हैं मुझ पर , मैत्रेयी तो अधिक ही। उसके घर से कभी फोन नहीं आता , न वह करती है। </div>
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माँ कहती है <span style="background-color: white;">मन ही मन </span>कभी गुस्से से , कभी खिन्न हो कर तो कभी हँसते हुए - माँ बनोगे तो जानोगे।<br />
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एक दिन बहुत हंसती <span style="background-color: white;">हुई </span> लौटी घर " पता है माँ , आज मैत्रेयी की मम्मी का दो बार फोन आया" . </div>
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क्यों ? </div>
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शुक्रवार की शाम घर लौटते उसका छोटा- सा एक्सीडेंट हो गया था, आंटी इतना डर गई कि <span style="background-color: white;">दिन भर </span> फोन कर हालचाल लेती रही। </div>
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अब समझ आया न , क्यों चिंता रहती है हमें।<br />
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उसके बाद एक परिवर्तन आया तेजस्वी में , देर होने की सम्भावना में माँ को फ़ोन जरुर कर देती। </div>
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<span style="background-color: white;">वाईब्रेंट </span><span style="background-color: white;"> </span>मीडिआ <span style="background-color: white;">हाउस</span> में उसका पहला दिन उत्साह भरा था। सबसे पहला काम उसे आलिया के साथ करना था। हंसमुख स्वाभाव की आलिया से मिलकर उसे बहुत अच्छा लगा। दरम्याना कद , कंधे तक बाल , आँखों पर ऐनक उसे उम्र के अनुसार परिपक्व बनाती मगर चेहरे पर शरारती मुस्कान और बच्चों सी खिलखिलाहट , उसके लिए अपने मातहतों <span style="background-color: white;"> </span>से जुड़ने में कोई बाधा नहीं <span style="background-color: white;">पहुंचाती </span>। </div>
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आलियां ने प्यार भरी मुस्कराहट से तेजस्वी का स्वागत किया और एक सादा कागज़ और पेन उसके सामने रख दिया .<br />
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तुम्हारा बायोडाटा देखा , तुम शेरो -शायरी कवितायेँ आदि लिखती हो , कुछ लिखो इस पर।<br />
<br />
कुछ ज्यादा नहीं लिखती हूँ , बस यूँ ही कभी कभी डायरी में , कभी किसी को सुनाई भी , सहेलियों ने छीनकर पढ़ ली बस।<br />
<br />
<span style="background-color: white;">सकुचा गयी तेजस्वी. </span>कभी किसी झोंक में डायरी में लिखना <span style="background-color: white;">अलग </span>बात मगर यूँ <span style="background-color: white;">अचानक </span><span style="background-color: white;">लिखने का इसरार </span> दे तो <span style="background-color: white;">ठिठकन</span><span style="background-color: white;"> </span> स्वाभाविक <span style="background-color: white;">ही </span> लगती है . </div>
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कोई बात नहीं , कुछ भी लिखो , जो तुम्हारा दिल करे !</div>
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सुबह की खिलती मुस्कुराती धूप में </div>
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फूलों पर शबनम के कतरे </div>
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गोया कि चाँदनी ने </div>
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रात भर आंसू बहाये हों। </div>
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मैं ग़र गुल हूँ तो वह नहीं </div>
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जो सदाबहार है </div>
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मुझे तो चंद लम्हों में मुरझाना है </div>
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मैं ग़र खार हूँ तो वह नहीं </div>
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जो ग़ुलों का हिफ़ाज़ती है </div>
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मैं वह ख़ार हूँ जो हरदम </div>
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आँखों में खटका हूँ !</div>
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अपनी डायरी के पहले पन्ने पर लिखी अपनी यही पंक्तियाँ उसे याद आई। </div>
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कागज़ पर लिखे अक्षर पढ़ते हुए आलिया ने चश्मे के पीछे गहरी आँखों से देखा उसे !</div>
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पढ़कर भी सुना दो अब !</div>
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ग़र , ग़ुल , ख़ार जैसे शब्दों पर उसके पढ़ने पर बुरी तरह चौंकी आलिया। </div>
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उसका बायो डाटा फिर से पढ़ा।<br />
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संस्कृत तुम्हारा अतिरिक्त विषय रहा है। फिर तुमने यह ज़बान कहाँ सीखी , इतना साफ़ लहज़ा तो यह विषय पढ़ने वाले भी नहीं बोल पाते कई बार। अचंभित भी थी आलिया !<br />
<br /></div>
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पता नहीं , बस ग़ज़ल सुनने का शौक रहा है ,शायद वहीं !<br />
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हम्म्म .... मगर फिर भी। अब भी अचरज में थी आलिया। </div>
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<span style="background-color: white;">हर व्यक्ति </span><span style="background-color: white;">के </span><span style="background-color: white;">जीवन में बहुत </span><span style="background-color: white;">कुछ बेवजह भी </span><span style="background-color: white;">होता है। </span>जीवन सफ़र में कुछ सामान्य पल , विषय और लोग यूँ भी चौंकाते हैं। </div>
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स्त्रियों से जुड़ी न्यूज़ चैनल्स की बाईट्स , अख़बारों के समाचारों के संकलन का निर्देश देते हुए आलिया ने उसे पत्रकारों के लिए जरुरी दिशा निर्देश पुस्तिका भी थमा दी। </div>
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इसे भी ध्यान से पढ़ना , तुम्हे काम करने और समझने में आसानी होगी। </div>
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तेजस्वी कुछ अलग करना चाहती थी , उसे कुछ मायूसी हुई। उसने वैदेही को भी अपने पसंदीदा विषय का संकेत दे दिया था। जो भी हो , मगर उसे कार्य तो यही करना था <span style="background-color: white;">और उससे </span> पहले उसे ट्रेनी की वर्कशॉप ज्वाइन करनी थी।<br />
वर्कशॉप में मिडिया हॉउस के वरिष्ठ उपसंपादकों और तकनीकी जानकारों ने सूचनाओं को समाचारों में बदलने की बारीकिया और कंप्यूटर से जुडी बहुत तकनीकी जानकारियां साझा की। </div>
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<b>याद</b> रखिये, पत्रकारों का कार्य निष्पक्ष होकर सूचनाएं एकत्रित करना और उन्हें आगे बढ़ाना है . उन्हें गलत या सही साबित नहीं करना है, वह कार्य पाठकों अथवा दर्शकों को अपने विवेक अनुसार करने देना है। सूचनाओं को एकांगी अथवा पूर्वाग्रही न होने देने के लिए भावनाओं और संवदनाओं पर काबू रखना है। </div>
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वरिष्ठ उपसम्पादक नरोत्तम धौलिया अपने समापन आख्यान में सम्बोधित कर रहे थे। </div>
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आंदोलनों , लाठी चार्ज , दुर्घटनाओं , बम विस्फोटों और विभिन्न आपदाओं के चित्र तेजस्वी की आँखों के सामने से गुजर गए। यह ख्याल उसे कई बार आता रहा था कि उन स्थानों पर उपस्थित रिपोर्टर्स के लिए कितना मुश्किल रहा होगा , किस प्रकार उन्होंने अपने जज्बातों पर काबू पाया होगा। उसे हॉस्पिटल में मरीजों से घिरे चिकित्सकों , नर्सों का भी ख्याल आता था , यदि वे अपनी भावनाओं को नियंत्रित ना कर सकें तो उनका कार्य कितना मुश्किल हो जाए। </div>
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वर्कशॉप में ही उसकी पहचान कुछ और नए ट्रेनियों से भी हुई , सिमरन , शौर्य ,मयंक , अमिता। समवयस्क होने के कारण वे सब जल्दी ही आपस में घुल मिल गये। अपनी डेस्क तक पहुँचते बेतकल्लुफी इतनी हो गयी कि आपस का परिचय आप से तुम और तू तक पहुच गया। तेजस्वी ने डेस्क पर पहुचते ही सबसे पहले कंप्यूटर <span style="background-color: white;">डेस्क और आस पास का जायजा लिया। एक लाईन में बने पार्टीशन वाले </span><span style="background-color: white;">केबिन में अपने कम्यूटर पर झुके मुस्तैद साथियों को आस पास की खबर नहीं थी </span><span style="background-color: white;">। उसके साथी भी अपनी डेस्क में समा </span><span style="background-color: white;"> चुके </span><span style="background-color: white;"> थे। </span><span style="background-color: white;"> </span><span style="background-color: white;">तेजस्वी ने भी स्वयं को अपने </span><span style="background-color: white;">कार्य पर ध्यान </span><span style="background-color: white;">केंद्रित किया </span><span style="background-color: white;"> </span>अख़बारों और न्यूज़ चैनल की रिपोर्ट खंगालने लगी। </div>
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<span style="color: #434343; font-family: arial, helvetica; line-height: 20px;">इंदिरा नूई अमेरिका की प्रतिष्ठित पत्रिका फॉर्च्यून के 500 मुख्य कार्यकारी अधिकारियों की सूची में शामिल 18 महिलाओं में जगह बनाने में कामयाब रही हैं। </span><span style="background-color: white;">वान्या </span><span style="color: #434343; font-family: arial, helvetica; line-height: 20px;"> मिश्रा मिस इंडिया वार्ड चुनी गयी। प्रथम पृष्ठ के मुख्य समाचारों में </span><span style="color: #434343; font-family: arial, helvetica; line-height: 20px;">स्त्रियों की कामयाबी से उत्साहित तेजस्वी तेजी से ख़बरें पलटने लगी। </span></div>
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कूड़े के ढेर से नवजात बच्ची का शव बरामद किया गया , छह वर्ष की बच्ची घायल अवस्था में मिली , हॉस्टल में छात्रा के गर्भवती होने की खबर पर वार्डन तलब , महिला <span style="background-color: white;">ने </span>तीन बच्चों सहित कुएं में कूद कर जान दे दी. </div>
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क्या आम स्त्रियों से जुडी कोई अच्छी खबर नहीं मिलेगी उसे , वह इन जीवित या मृत लड़कियों या स्त्रियों से समाचारों में ही मिल रही थी , इनसे वास्तविकता में आमने -सामने मिलना कैसा रहेगा ,तेजस्वी को लगने लगा था कि उसका काम इतना आसान नहीं रहने वाला है। </div>
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यह तो चुनौतियों की दस्तक मात्र ही थी।<br />
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घर पहुचते शाम गहरा गयी थी। फ्लैट की सीढियाँ चढ़ते <span style="background-color: white;">मिसेज वालिया </span> टकरा गयी , नाटे कद की सांवली रंगत वाली <span style="background-color: white;">मिसेज वालिया </span>सरकारी विद्यालाय में हेडमिस्ट्रेस थी। मगर कॉलोनी के सम्बन्ध में उनकी जानकारी किसी पत्रकार या जासूस से कम नहीं थी। किसकी लड़की किसके साथ कब आई , कौन सी पड़ोसन ने बालकनी में कपडे सुखाते किस पडोसी की खिड़की की ओर झाँका , किस पडोसी का दूसरे पडोसी से अबोला है। अपनी काम वाली बाई की बदौलत उन्हें सबकी खबर रहती थी। सूचनाएँ निकलवाते समय उनकी उदारता चरम पर होती थी , और बाई भी इसका पूरा फायदा उठाती। उनका शहर अभी इतना बड़ा महानगर नहीं था कि लोग आसपास रहने वालों से अनजान रहे। </div>
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" वो छोटी बेबी की छींटदार सलवार कमीज तार से उतारते समय उलझ गयी थी , आपकी साडी का तार खीच गया था " फुर्सत में उनको सुधार कर फिर से उपयोग में लेने की धुन चटपटी ख़बरों के चटखारों में जाने कहां बिला जाती और वे जल्दी - जल्दी सर हिलाते हुए हामी भर लेती।<br />
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तेजस्वी कई बार माँ से चर्चा करती , पढ़ीलिखी कामकाजी स्त्रियों को भी बातों के चटखारे लेने की आदत नहीं छूटती। जाने कितनी बार माँ को ताना दिया होगा उन्होंने , आपका अच्छा है , दिन भर घर में रहती हैं , हमें तो समय ही नहीं मिलता आसपास की खबर रखने का , आपका तो अच्छा टाईम पास हो जाता है , हमें कहाँ फुर्सत, कहते हुए भी दो -चार पड़ोसनों का हाल बताये बिना नहीं खिसकती।<br />
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तेजस्वी भुनभुनाती है माँ पर , कभी मैं इन्हे खरी खोटी न सुना दूं , घरेलू स्त्री होने का मतलब सिर्फ टाईम पास करना नहीं है , मिसेज आहूजा को कॉलोनी की ताजा खबर तो खूब होगी , देश दुनिया की कोई खबर मालूम करने की कोशिश भी की है कभी , कभी अखबार हाथ में उठाकर देखा भी होगा , कभी किसी गरीब बच्चे को पढ़ाने की कोशिश की है , क्या मुकाबला करेंगी मेरी माँ से , बड़ी आई। पता नहीं स्कूल में बच्चो को क्या पढ़ाती होंगी। हुंह !<br />
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माँ हंस देती है , छोडो भी , क्यूँ उलझना !</div>
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अभिवादन का इन्तजार किये बिना ही <span style="background-color: white;">मिसेज वालिया </span> पूछ बैठी "कैसी हो तेजस्वी !"</div>
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शिष्टाचार वश तेजस्वी को रुकना ही पड़ा " अच्छी हूँ आंटी , आप कैसे हो ? सीमा कैसी है , बहुत दिनों से मिलना नहीं हुआ ". </div>
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हाँ , तुम भी पता नहीं कहाँ व्यस्त रहती हो , अब जाकर घर पहुंची हो। 22 मार्च को सीमा की शादी तय कर दी है , लड़का दिल्ली का रहने वाला है , बहुत पैसे वाले हैं। सीमा को देखते ही पसंद कर लिया। </div>
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ओह , अच्छा। बहुत बधाई आपको , मगर मार्च में सीमा के फायनल ईअर की परीक्षाएं भी तो है। </div>
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होती रहेगी परीक्षा तो , अच्छा लड़का मिला तो कर दी शादी तय , वर्ना आगे जाकर बहुत मुश्किल हो जाती है।<br />
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चलती हूँ आंटी , बहुत थक गयी हूँ। कल मिलती हूँ सीमा से ! कहते हुए तेजस्वी तेजी से अपने फ़्लैट की <span style="background-color: white;">ओर </span>लपक ली। </div>
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<span style="background-color: white; color: #37404e; font-family: 'lucida grande', tahoma, verdana, arial, sans-serif; line-height: 17.98611068725586px;"><br /></span></div>
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<span style="background-color: white; font-size: x-small;"><br /></span>कैसा रहा आज का दिन। माँ उसका रास्ता ही देख रही थी। </div>
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बहुत अच्छा , थकान हो रही है लेकिन अब। </div>
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फ्रेश होकर थोड़ी देर आराम कर लो , खाना बन रहा है. साथ ही खायेंगे . </div>
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होती रहेंगी परीक्षाएं … हाथ -मुंह धोकर फ्रेश होने से काउच पर चैन से पसरते शब्द उसके कानों में गूंजते रहे। माँ छोटी बहन मनस्वी के साथ टेबिल पर खाना लगाकर सबको बुला रही थी। चार लोगो के छोटे से परिवार में रात खाना एक साथ ही करने का एक अलिखित नियम सा था। भाई मयूर और उसके पिता भी पहुँच चुके थे डाइनिंग टेबिल तक। </div>
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माँ , लोग बेटियों को क्यों पढ़ाते हैं , बस एक अच्छा रिश्ता मिल जाए , सिर्फ इसलिए ही। तेजस्वी के दिन भर के अनुभव के बारे में कोई उससे पूछे, उससे पहले ही वह अपने सवाल के साथ तैयार थी। </div>
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मकसद यही हो , जरुरी नहीं। मगर अच्छा रिश्ता हो जाए , यह तो सभी माता- पिता चाहते होंगे।<br />
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उसने सीमा के बारे में बताया , सीमा बीटेक के आखिरी वर्ष में थी। </div>
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मुझे पता है , लड़के ने भी अभी बीटेक किया है , कैम्पस सलेक्शन हो चुका है। लड़के के माता -पिता दोनों ही सरकारी सेवा में हैं , उसकी बड़ी बहन विदेश में सैटल है। उन्हें सीमा के आगे पढ़ने में भी कोई समस्या नहीं है। इस रिश्ते में कोई समस्या मुझे नजर नहीं आती। </div>
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मगर माँ , सीमा की परीक्षाएं हैं , शादी के कुछ दिन बाद ही। </div>
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मुहूर्त नहीं था आगे का , लड़के की बहन भी अभी ही आ सकती थी विदेश से। उनके नजरिये से भी देखो। </div>
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खाने के समय हम क्यों उलझ रहे हैं दूसरों की जिंदगियों से। तुम बताओ , सब ठीक रहा आज। पिता ने हस्तक्षेप करते हुए बात को बहस में बदलने से रोका . खाना खाते हुए वे दिन भर के कार्यकलापों पर बातचीत करते रहे। </div>
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<span style="background-color: white;">दिन पर दिन गुजरते रहे। आलिया के साथ उसके साथियों की मीटिंग होती , लक्ष्य निर्धारित होते </span><span style="background-color: white;"> . </span><span style="background-color: white;"> स्त्रियों की शिक्षा व सुरक्षा से सम्बधित योजनाओं और कानून की जानकारी एकत्रित करने के लिए स्त्रियों से जुड़े कई समाजसेवी संगठनों से मिलना , विभिन्न </span><span style="background-color: white;">आंकड़े एकत्रित करना , </span><span style="background-color: white;">साक्षात्कार लेना </span><span style="background-color: white;"> ,रिपोर्ट तैयार करना , उनको आलेख अथवा समाचार में बदलना , कार्य के ढेर में ढेर होते </span><span style="background-color: white;">तेजस्वी </span><span style="background-color: white;">अपने कार्य में प्रवीण होती जा रही थी। </span></div>
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<br /></div>
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<span style="background-color: white; color: #222222; font-family: arial;">अपने कार्य के प्रति समर्पित तेजस्वी </span><span style="background-color: white; color: #222222; font-family: arial;"> </span><span style="background-color: white; color: #222222; font-family: arial;">अपने अन्य साथियों के मुकाबले विनम्र और </span><span style="background-color: white; color: #222222; font-family: arial;">हंसमुख होने के कारण सभी से घुली मिली रहती। आलिया का उस पर यकीन बढ़ता जाता था। एक दिन आलिया ने उसे केबिन में बुलाकर शक्ति </span><span style="background-color: white; color: #222222; font-family: arial;"> सदन की रिपोर्ट तैयार करने के लिए कहा। शक्ति सदन के फाउंडर ,</span><span style="background-color: white; color: #222222; font-family: arial;">सदस्यों , प्रताड़ित </span><span style="background-color: white; color: #222222; font-family: arial;">स्त्रियों की कानूनी </span><span style="background-color: white; color: #222222; font-family: arial;">सहायता करने , उन्हें आवास उपलब्ध कराने , आर्थिक मदद हेतु कार्य की व्यवस्था , कार्य निष्पादन मूल्यांकन करने तथा उनसे सम्बंधित विभिन्न आंकड़े जुटाने थे. इस कार्य के विस्तार और समय के तकादे के मद्देनजर आलियां ने तेजस्वी को </span><span style="background-color: white; color: #222222; font-family: arial;">एक और साथी को इस प्रोजेक्ट से जोड़ लेने के निर्देश भी दिए। </span><br />
<span style="background-color: white; color: #222222; font-family: arial;"><br /></span></div>
<div>
<span style="background-color: white; color: #222222; font-family: arial;">सिमरन प्रशिक्षण अवधि में </span><span style="background-color: white; color: #222222; font-family: arial;">उसकी साथी थी। </span><span style="background-color: white; color: #222222; font-family: arial;"> उनकी अच्छी </span><span style="background-color: white; color: #222222; font-family: arial;">मित्रता भी</span><span style="background-color: white; color: #222222; font-family: arial;"> </span><span style="background-color: white; color: #222222; font-family: arial;"> हो </span><span style="background-color: white; color: #222222; font-family: arial;">चली </span><span style="background-color: white; color: #222222; font-family: arial;"> थी. </span><span style="background-color: white; color: #222222; font-family: arial;">तेजस्वी ने इस कार्य के लिए सिमरन के नाम की सिफारिश की। </span><span style="background-color: white; color: #222222; font-family: arial;">एक ही साथ कार्य करते दोनों आपस के अनुभव बांटती। </span><span style="background-color: white; color: #222222; font-family: arial;">जब -तब </span><span style="background-color: white; color: #222222; font-family: arial;">सिमरन</span><span style="background-color: white; color: #222222; font-family: arial;"> उसके पास आ कर बैठ जाती और </span><span style="background-color: white; color: #222222; font-family: arial;">विभिन्न </span><span style="background-color: white; color: #222222; font-family: arial;">विभागों के हर व्यक्ति से जुडी ख़बरें सुनाती रहती। पता नहीं वह इतनी सूचनाएं कहाँ से जुटाती थी। काम के बीच सर </span><span style="background-color: white; color: #222222; font-family: arial;">जुड़ाए खुसर- पुसर करते , देख दूसरे साथी बहुत चिढ़ते कि आखिर ये यहाँ क्या करने आई हैं </span><span style="background-color: white; color: #222222; font-family: arial;">मगर </span><span style="background-color: white; color: #222222; font-family: arial;">सिमरन </span><span style="background-color: white; color: #222222; font-family: arial;">पर कुछ असर न होता। </span><br />
<span style="background-color: white; color: #222222; font-family: arial;">कार्य के बीच चर्चा , विमर्श </span><span style="background-color: white; color: #222222; font-family: arial;">के दौरान जब भी </span><span style="background-color: white; color: #222222; font-family: arial;">वे लोग अन्य साथियों के साथ होते , </span><span style="background-color: white; color: #222222; font-family: arial;">सिमरन</span><span style="background-color: white; color: #222222; font-family: arial;"> तेजस्वी की प्रशंसा ही करती नजर आती। </span><span style="background-color: white; color: #222222; font-family: arial;"> तुम कितनी सुन्दर हो , तुम लिखती कितना अच्छा हो , .</span><span style="background-color: white; color: #222222; font-family: arial;">कितनी मेहनती </span><span style="background-color: white; color: #222222; font-family: arial;"> हो। </span><span style="background-color: white; color: #222222; font-family: arial;">तेजस्वी विनम्रता से अपनी प्रशंसा सुनते हुए थोडा </span><span style="background-color: white; color: #222222; font-family: arial;">सकुचाती . </span><span style="background-color: white; color: #222222; font-family: arial;"> </span><span style="background-color: white; color: #222222; font-family: arial;">वह कई बार दबी जुबान में उसे मना </span><span style="background-color: white; color: #222222; font-family: arial;"> भी </span><span style="background-color: white; color: #222222; font-family: arial;">करती। </span><br />
<span style="background-color: white; color: #222222; font-family: arial;"><br /></span><span style="color: #222222; font-family: arial;">अब सिमरन और तेजस्वी को अपने इस कार्य की रिपोर्ट वायब्रेंट मिडिया हाउस की विभागीय प्रभारी </span><span style="color: #222222; font-family: arial;">सुचित्रा</span><span style="color: #222222; font-family: arial;"> को देनी थी। स्त्रियों से जुड़े सभी विषयों को </span><span style="color: #222222; font-family: arial;">सुचित्रा</span><span style="color: #222222; font-family: arial;"> ही देखती थी। </span><span style="color: #222222; font-family: arial;">आलिया </span><span style="color: #222222; font-family: arial;"> से बिलकुल विपरीत </span><span style="color: #222222; font-family: arial;">सुचित्रा </span><span style="color: #222222; font-family: arial;">अत्यंत सख्त मिजाज थी। </span><span style="color: #222222; font-family: arial;">अपने विषय में निष्णात</span><span style="color: #222222; font-family: arial;"> सुमित्रा को </span><span style="color: #222222; font-family: arial;"> स्त्री इनसायक्लोपीडीया भी कहा जाता था। </span><span style="color: #222222; font-family: arial;">तेजस्वी नोट करती कि उनके चेहरे पर एक मुस्कराहट भी अतिरिक्त नहीं होती थी , बल्कि शायद उसने उन्हें कभी मुस्कुराते हुए भी नहीं देखा था। स्त्रियों से जुडी शिकायतों में वे हमेशा स्त्री के पक्ष में ही रहती। </span><span style="color: #222222; font-family: arial;">इस मामले में उन्हें जरा भी लापरवाही पसंद नहीं थी। </span><span style="color: #222222; font-family: arial;">यदि किसी भी रिपोर्ट में स्त्री पर आरोप सही साबित होने की स्थिति में होता , तब वे उस पर गहन छानबीन करती ,कई फेरबदल करवाती , यहाँ तक कि कई बार रिपोर्ट ख़ारिज ही कर देती।</span><br />
<span style="color: #222222; font-family: arial;"><br /></span>
<br />
<div>
कानून की अवधारणा की तर्ज पर ही उनका अजेंडा था कि कई दोषी स्त्रियां बच निकलें तो कोई बात नहीं , मगर एक भी निर्दोष स्त्री उपेक्षा अथवा गलतबयानी की शिकार न हो। उनके स्त्रियों से जुड़े मामलों पर अतिवादी रुख तथा तीव्र प्रतिक्रिया से आतंकित पुरुष साथी घबराये से रहते। उनके सौंपे गए कार्य जल्दी से निपटाकर भागने की कोशिश में रहते। पीठ पीछे लोग उन्हें हिटलर अथवा कुंठित स्त्री का खिताब देते नजर आते , यहाँ तक कि सिमरन भी अन्य साथियों के साथ मिलकर अक्सर सुचित्रा का उपहास करती हालाँकि उनके सामने कुछ कहने की हिम्मत किसी में भी नहीं होती थी। कभी -कभी इस छींटाकशी से तेजस्वी व्यथित भी होती। वह मानती थी कि उनके इस रूखे व्यवहार के पीछे कुछ तो गम्भीर वजह अवश्य रही होगी।<br />
<br /></div>
<div>
एक दिन अपने केबिन में उन्हें अकेला पाकर उनके सामने की कुर्सी पर डट गयी। </div>
<div>
सुचित्रा का रुखा सा प्रश्न था - कुछ काम था मुझसे !</div>
<div>
नहीं , बस यूँ ही। आपको अकेले देखा तो बात करने की इच्छा हुई।<br />
<br />
मन में सोच रही थी तेजस्वी कि सख्त मिजाज लोगों के आँखों पर चश्मा ना हो तो उनका सामना बड़ा मुश्किल हो जाता है।<br />
<br /></div>
<div>
क्यों , आज तुम्हे कोई काम नहीं है! </div>
<div>
थोडा ही बाकी है। क्या आप कभी हंसती मुस्कुराती नहीं है !<br />
उनके रूखेपन को नजरअंदाज करते हुए तेजस्वी ने कहा।<br />
<br /></div>
<div>
मैं ऑफिस काम करने के लिए आती हूँ , यह कोई मनोरंजन का स्थान नहीं है , जहाँ हंसी -मजाक कर दिल बहलाया जाए। </div>
<div>
नहीं … मतलब काम तो किया जाना चाहिए … मगर … बस ऐसे ही … आपको कभी हँसते नहीं देखा … बस इसलिए ही … अटकते ,झिझकते , डरते तेजस्वी ने कह ही दिया।<br />
<br /></div>
<div>
अपने काम से काम रखने की सलाह देने की मंशा रखते हुए सुचित्रा ने एक बार गम्भीर मुद्रा में उसकी ओर देखा। मगर तेजस्वी के भोले सहमे चेहरे और कागज-पेन को हाथ में पकड़कर भागने की मुद्रा में देख रोकते रुकते भी सुचित्रा के मुख पर हलकी-सी मुस्कान आ ही गयी। </div>
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<br /></div>
<div>
अरे बाबा , मैं हंसती भी हूँ और मुस्कुराती भी हूँ , मगर उचित कारणो से ही। बेवजह हंसी -दिल्लगी में मेरी कोई रूचि नहीं है। तुम्हारी रिपोर्ट कहाँ तक पहुंची , तुम्हे पता है न मुझे काम समय पर चाहिए।<br />
<br /></div>
<div>
जी , रिपोर्ट लगभग पूरी हो चुकी है , कुछ थोडा- सा कार्य ही अभी बाकी है।<br />
<br /></div>
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<span style="background-color: white;">सुचित्रा </span>के रूखे रौबीले व्यवहार से थोडा आहत होते हुए तेजस्वी को सुखद अनुभूति भी हुई। उसने <span style="background-color: white;">सुचित्रा</span> को मुस्कुराते हुए देखा और आँखों में छिपी कही स्नेह की छाया भी अवतरित हुई।<br />
<br /></div>
<div>
<b>विरोधाभास मूलतः इंसानी प्रवृति ही नहीं , प्रकृति में ही निहित है. बर्फ से ढकी चादर से ढका है गुनगुने पानी का अस्तित्व , नारियल के सख्त आवरण में है सफ़ेद झख मुलायम गिरी , कछुए के कड़े खोल में छिपा है एक नरम वजूद । </b> <span style="background-color: white;">सुचित्रा </span> और तेजस्वी भी इसी विरोधाभाषी व्यक्तित्व अथवा अनुभूति की प्रतीक दिख पड़ी।<br />
<br /></div>
<div>
अगले दिन तेजस्वी ऑफिस में पहुंची तो फिजां में तनाव साफ़ नजर आ रहा था। सुचित्रा आज समय से पहले ऑफिस में मौजूद थी। फक्क पड़े कुछ चेहरों को देखते डेस्क तक पहुची तेजस्वी तो सिमरन दोनों हाथ बांधे विचारमग्न मुद्रा में खड़ी नजर आई.<br />
<br /></div>
<div>
मैं यह ऑफिस छोड़ रही हूँ। </div>
<div>
क्यों , क्या हुआ , ऐसे अचानक , तेजस्वी परेशान थी। </div>
<div>
कारण तो तू सुचित्रा से ही पूछ लेना , बस तुझे विदा कहने को ही रुकी थी। मुझे जल्दी ही कहीं जाना है। तेजस्वी की किसी भी प्रतिक्रिया का इन्तजार किये बगैर ही सिमरन तीर की तरह दरवाजे से बाहर निकल गयी।<br />
<br />
अगले ही पल तेजस्वी सुचित्रा के केबिन में थी। </div>
<div>
मैम , सिमरन ऑफिस छोड़ कर जा रही है , ऐसा क्या हुआ। उसके चेहरे पर उलझन , खिन्नता , परेशानी स्पष्ट पढ़ी जा सकती थी। </div>
<div>
सुचित्रा ने अपनी उसी सख्त रौबदार मुद्रा में उसे बैठने का इशारा करते हुए एक कागज उसके सामने बढ़ा दिया। </div>
<div>
हलकी सी सिहरन के साथ कागज़ सँभालते तेजस्वी की आँखें तरल हो आई थी। वह कागज सिमरन के "सुकेत एक्टिविस्ट" होने की पुष्टि कर रहा था।<br />
<br /></div>
<div>
क्या तुम्हे पता नहीं है , इस ग्रुप से सम्बन्ध रखने वाले किसी व्यक्ति को हम अपने विभाग में नियुक्ति नहीं दे सकते हैं। यह एक्टिविस्ट ग्रुप हमारे प्रमुख प्रतिद्वंद्वी मिडिया कम्पनी का ही एक हिस्सा है।<br />
<br /></div>
<div>
मुझे इस सम्बन्ध में कोई जानकारी नहीं है, जैसा कि आप जानती है यह मेरा पहला कार्य ही है।<br />
<br /></div>
<div>
जिसे किसी प्रोजेक्ट में आप साथ लेते हैं , मित्र बनाते हैं , उसकी जानकारी तो आपको होनी चाहिए। सञ्चालन दृष्टि से दृश्य -श्रव्य माध्यम किसी भी तरह कॉर्पोरेट संस्था से भिन्न नहीं है, यहाँ भी उतनी ही सतर्कता आवश्यक है। तुम्हे इसका ध्यान रखना चाहिए था।<br />
<br /></div>
<div>
सुचित्रा के कमरे से निकलते तेजस्वी अनमयस्क सी थी। उसने फ़ोन मिलाया सिमरन को ," तूने अपने एक्टिविस्ट होने की बात मुझसे क्यूँ छिपाई। </div>
<div>
मैंने कुछ नहीं छिपाया , मुझे स्वयं ही नहीं पता कि कब उन्होंने मुझे सदस्य बना लिया . मैं मना कर पाती , इससे पहले ही मेरा नाम सार्वजानिक कर दिया गया। चल , मैं तुझसे बाद में बात करती हूँ। </div>
<div>
सिमरन ने बड़ी बेरुखी से अपनी बात समाप्त करते हुए फोन काट दिया।<br />
<br /></div>
<div>
तेजस्वी अचानक हुए इस घटनाक्रम से बुरी तरह परेशान थी। शक्ति सदन की उसकी रिपोर्ट भी अधूरी पड़ी थी , उससे सम्बधित सामग्री भी सिमरन के पास ही थी। उसका किसी भी काम में मन नहीं लग रहा था। बेखयाली में दो- तीन दिन गुजर गए , मगर उसका कार्य पूरा नहीं था। अनुशासन की पाबंद <span style="background-color: white;">सुचित्रा </span>समय में लापरवाही और छूट बर्दाश्त नहीं कर सकती थी, उसने तेजस्वी को इस प्रोजेक्ट से अलग कर दिया।<br />
अपने पहले बड़े प्रोजेक्ट को अधूरा छोड़ने की कसक तेजस्वी के चेहरे और कार्यशैली पर स्पष्ट नजर आती थी। मगर आलिया का व्यवहार अब भी उसके साथ स्नेहपूर्ण ही था। आलिया के निर्देशानुसार अब उसे भारतीय संस्कृति, परंपरा ,व्रत- त्योहार जैसे विषय पर कार्य प्रारम्भ करना था मगर तेजस्वी का उत्साह क्षीण हो चुका था।<br />
<span style="background-color: white;">कई बार </span><span style="background-color: white;"> स्वयं को समझाती तेजस्वी अपने कार्य में मन लगाने का भरपूर प्रयास करती। <b>समय अपनी रफ़्तार से </b></span><b><span style="background-color: white;">बीतता ही है , मनःस्थिति किस प्रकार </span><span style="background-color: white;"> की भी हो। </span></b><br />
<span style="background-color: white;"><br /></span> <span style="background-color: white;">कुछ समय बीते</span><span style="background-color: white; font-size: x-small;"> </span><span style="background-color: white; font-size: x-small;"> </span>एक दिन सुचित्रा के केबिन के आगे से गुजरते चिरपरिचित आवाज ने उसके क़दमों को रोक लिया। केबिन में झाँक कर देखा तो उसकी हैरानी और ख़ुशी का ठिकाना न था। <span style="background-color: white;">सुचित्रा</span> के सामने कुर्सी पर बैठी सिमरन बहुत बेतकल्लुफी से आपस में विमर्श कर रही थी। उसने दोनों को टोका नहीं और अपनी सीट पर लौट आई।<br />
उस दिन के बाद सिमरन से उसकी बात भी नहीं हो पाई थी। उसे पूरा यकीन था कि सिमरन तेजस्वी से मिलकर ही जायेगी , बल्कि तेजस्वी को गहन उत्सुकता थी कि नाराजगी में संस्थान छोड़ने वाली सिमरन को <span style="background-color: white;">सुचित्रा</span> से आखिर क्या काम रहा होगा। सिमरन का इन्तजार करते अपने काम से फारिग होकर नजरें उठाई तो अचानक ही सामने से अनजान बन कर गुजरती सिमरन पर उसकी नजर पड़ गई। उसने पीछे से पुकारा भी मगर जाने उसकी आवाज सिमरन के कान तक नहीं पहुंची अथवा उसने जानबूझकर नहीं सुना।<br />
<br />
तेजस्वी देर तक अजीबोगरीब व्यवहार पर सोचती रही मगर उसे कोई सिरा नजर नहीं आया। उसने सर झटक कर कई बार स्वयं को समझाया शायद जल्दी में रही होगी , कोई आवश्यक कार्य रहा होगा , सोचते उसका सिर भारी हो गया।<br />
<br />
इसी उधेड़बुन के बीच घर पहुंची तो माँ सजी- धजी सीमा की मेहंदी और महिला संगीत में जाने के लिए तैयार उसका इन्तजार कर रही थी। <span style="background-color: white; text-align: justify;">माँ ने पहले से ही उसके सलवार कमीज हैंगर पर लटका रखे थे। जल्दी तैयार हो जाओ ,हमें काफी देर हो चुकी है। खाने के समय कार्यक्रम में पहुंचना अच्छा नहीं लगता। </span><br />
<div style="color: black; font-family: 'Times New Roman'; text-align: justify;">
<span style="background-color: white; color: #222222; font-family: arial;"><br /></span></div>
<div style="text-align: justify;">
हाथ मुंह धोकर क्रीम और पीले रंग के अनारकली सूट पहने आईने के सामने बाल संवारती तेजस्वी पर मुग्ध दृष्टि डालते माँ ने थूथकारा डाला , नजर ने लगे !</div>
<div style="text-align: justify;">
<br /></div>
<div style="text-align: justify;">
दोनों कार्यक्रम में पहुंची तब तक महिला संगीत समाप्त ही होने को ही था। लाया डाक बाबू लाया रे संदेसवा , मेरे पिया जी को भाये न बिदेसवा पर एक लड़की मंच पर थिरक रही थी। </div>
<div style="text-align: justify;">
तेजस्वी और उसकी माँ ने सीमा के पास जाकर सीमा को बधाई दी।</div>
<div style="text-align: justify;">
भड़कीले लाल रंग के सलवार कमीज में लकदक मिसेज वालिया चहकती हुई तपाक से बोली ," हमने तो समय से अच्छा लड़का देखकर सगाई कर दी , अब आप भी तेजस्वी के लिए लड़का देखना शुरू कर दो। बराबर- सी ही तो हैं दोनों।<br />
माँ ने कुछ कहा नहीं , सिर्फ मुस्कुरा कर रह गयी। </div>
<div style="text-align: justify;">
<br /></div>
<div style="text-align: justify;">
संयोगवश सीमा का जन्मदिन भी था उसी दिन। मंच के पास ही केक काटने की तैयारी भी थी। सीमा और उसका भावी पति सौरभ मंच के सबसे आगे एक सुन्दर झूलनुमा बेंच पर साथ बैठे थे। उस मंच के सामने लगी बेंच पर पीछे की तरफ बैठ कर दोनों संगीत का आनंद ले रही थी। मिसेज वालिया चहकती हुई बता रही थी , सीमा के ससुर बहुत खुश हैं इस रिश्ते से , केक पर सजावट उन्होंने अपने हाथों से की है। कहने लगे कि मेरी बहू लाखों में एक है तो इसका तोहफा तो मैं ही सजाऊंगा। अभी थोड़ी देर पहले ही नृत्य के लिए बहू का हाथ पकड़कर स्टेज पर ले गए। पूरे परिवार ने साथ नृत्य किया। ख़ुशी में उनकी आँखें छलछला रही थी।<br />
<br /></div>
<div style="text-align: justify;">
संगीत के बाद केक काटा गया , वर- वधू को अंगूठी पहनाई गयी, मेवा -बताशे से गोद भरी गयी। पूरे कार्यक्रम में सीमा के स्वसुर का उत्साह देखते बनता था। बहू का हाथ पकड़कर केक कटवाने से लेकर अंगूठी पहनाने तक वे साये की तरह सीमा के आसपास ही मंडराते नजर आ रहे थे। महिलाओं की खुसुर- पुसुर चालू थी , बहुत खुशकिस्मत है सीमा।<br />
<br /></div>
<div style="text-align: justify;">
रोशनी , संगीत , उल्लासमय वातावरण , अच्छा भोजन , घर लौटते सीमा का मानसिक तनाव काफी कम हो चूका था, मगर माँ कुछ अनमनी -सी दिख रही थी।</div>
<div style="text-align: justify;">
</div>
<div style="text-align: justify;">
क्या हुआ माँ , तुम्हे कैसे लगे सीमा के ससुराल वाले। </div>
<div style="text-align: justify;">
कुछ नहीं। अच्छे हैं। शोरशराबे से थकान हो जाती है मुझे !</div>
<div style="text-align: justify;">
निकलते समय कॉफी पी लेनी थी। कोई नहीं , घर चल कर पी लेते हैं। </div>
<div style="color: black; font-family: 'Times New Roman';">
<div style="text-align: justify;">
<br /></div>
<div style="color: #222222; font-family: arial; text-align: justify;">
घर आकर माँ काफी देर तक सीमा के स्वसुर के अत्यंत उत्साही व्यहार पर सोचती रही , मगर किसी से कहा कुछ नहीं। </div>
<div style="color: #222222; font-family: arial; text-align: justify;">
गहराती रात में खिड़की के परदे सरकाकर बाहर चाँद निहारते तेजस्वी भी सोचती रही देर तक। <b>हर दिन एक अँधेरे में डूबता है और सवेरा फिर सूर्य की रोशनी में जगमगाता। यूँ तो अँधेरा किसे भाता है मगर चांदनी रात में अँधेरा भी कितना सम्मोहक होता है , रोशनी भी आँखों को चौंधियाए नहीं तभी भाती है वर्ना तो वेल्डिंग मशीने भी कितनी किरणे बिखेरती है , आँखों पर चश्मा न हो तो आँखे खराब। </b></div>
<div style="color: #222222; font-family: arial; text-align: justify;">
क्या -क्या सोचने लगी वह।</div>
<div style="color: #222222; font-family: arial; text-align: justify;">
लैंप की बत्ती बुझा सूर्य के संतुलित प्रकाश की सम्भावना लिए नींद पलकों पर भारी हो आई। </div>
<div style="color: #222222; font-family: arial; text-align: justify;">
<br /></div>
<div style="color: #222222; font-family: arial; text-align: justify;">
आलिया के केबिन में अनाथाश्रम , बालश्रम , बालश्रमिकों के शोषण आदि विषयों पर चर्चा करते हुए तेजस्वी की नजरे बार -बार टेबल पर रखी लाल फ़ोल्डर वाली फाईल पर टिक जाती। उसका हेडिंग जाना -पहचाना सा लग रहा था। चर्चा समाप्त होकर कमरे से बाहर निकलते आखिर उसने फाईल उठाकर पलट ही ली। वह शक्ति सदन की विस्तारित रिपोर्ट थी जिस पर प्रस्तुतकर्ता का नाम पढ़ा उसने - सिमरन बर्वे। तेजस्वी हतप्रभ उदास सी कमरे से बाहर निकल आयी। उसका प्रोजेक्ट किसी और नाम से पूर्ण हो चूका था।</div>
<div style="color: #222222; font-family: arial; text-align: justify;">
सिमरन ने भी काफी काम किया था इस पर , एक गहरी सांस लेकर तेजस्वी ने स्वयं को समझाया मगर <span style="color: #222222; font-family: arial;">मित्रता का यह नया रूप देखकर तेजस्वी चकित थी। सिमरन के साथ ही उसे सुचित्रा के व्यवहार पर भी अचम्भा हो आया था। स्वयं मन को टटोला उसने , दृढ महिला के रूप में उनकी छवि में क्या बचा रह गया था उसकी समझ से परे। उसे समझ आने लगा था कि घर से बाहर की दुनिया बहुत विचित्र है। माँ -पिता की समझाइशें इतनी व्यर्थ नहीं थी। </span><span style="color: #222222; font-family: arial;"> </span></div>
<div style="color: #222222; font-family: arial; text-align: justify;">
<span style="color: #222222; font-family: arial;"><br /></span></div>
<div style="color: #222222; font-family: arial; text-align: justify;">
वह सिमरन के साथ अपनी मित्रता के पलों को स्मरण करती रही। <span style="color: #222222; font-family: arial;">एक दिन उसके लिखे आलेख पर बहस करते अंग्रेजी में धाराप्रवाह अपने विचार प्रस्तुत कर रहे </span>मनीष को <span style="color: #222222; font-family: arial;"> सिमरन ने </span><span style="color: #222222; font-family: arial;"> उसे टोका था , क्यों अंग्रेजी झाड़ रहे हो , उससे क्या फायदा होगा , तुम्हे पता नहीं कि तेजस्वी हिंदी मीडियम से है। </span></div>
<div style="color: #222222; font-family: arial; text-align: justify;">
<span style="color: #222222; font-family: arial;">साथियों के होठों की दबी मुस्कान के साथ सिमरन का विजयी भाव उसे सब समझा तो रहा था , मगर आँखों पर बंधी </span>मित्रता की पट्टी ने <span style="color: #222222; font-family: arial;">उसे बतौर </span> मजाक अथवा टांग खिंचाई जैसे ही लिया था। जब -तब बहनजी कह देना भी वह इग्नोर ही करती आई थी। </div>
<div style="color: #222222; font-family: arial; text-align: justify;">
पीछे छोड़ आये कुछ और पन्ने भी उलटे उसने। उसने सोचा फिर से एक लेख पर मनीष की उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया पर भी सिमरन का व्यवहार अखरना चाहिए था उसे। एक साथ ही संस्कृत , हिंदी ,अंग्रेजी और उर्दू भाषा पर अपनी तीव्र पकड़ के साथ प्रखर प्रतिभाशाली मनीष अपने साथियों ही नहीं ,वायब्रेंट मीडिया हाउस से जुड़े पाठकों , दर्शकों में भी अत्यंत लोकप्रिय था। अपने कार्यक्षेत्र में प्रगति करते विद्वानों की प्रशंसा बहुत मायने रखती है , तेजस्वी फूली नहीं समा रही थी मगर सिमरन ने विशेष कुछ भी कहा नहीं था बल्कि स्वयं की अन्य उपलब्धियों के बारे में बात करते विषय ही बदल दिया था। </div>
<div style="color: #222222; font-family: arial; text-align: justify;">
<br /></div>
<div style="color: #222222; font-family: arial; text-align: justify;">
<span style="color: #222222; font-family: arial;">यह सब कुछ अखरा क्यों नहीं उसे , तो क्या मित्रता के रिश्तों में अब तक वह सिर्फ मूर्ख ही बनती आई थी, सोचते स्मृतियों के तार उलझते जाते थे. खैर तेजस्वी को अटकना नहीं था , आगे ही बढ़ना था। नाम तेजस्वी यूँ ही तो नहीं रख गया था। </span></div>
<div style="color: #222222; font-family: arial; text-align: justify;">
<span style="color: #222222; font-family: arial;"><br /></span></div>
<div style="color: #222222; font-family: arial; text-align: justify;">
बाल श्रमिकों की वर्त्तमान स्थितियों पर अपनी खोज पर कई हैरतअंगेज चौंकाने वाले तथ्य उसके सामने थे। बाल कल्याण के लिए निर्मित की जाने वाली सरकारी संस्थाओं के आंकड़े मानवता को शर्मसार करते नजर आते थे। बाल कल्याण के लिए निर्मित विभिन्न आश्रय स्थलों से भागने अथवा गायब होने वाले बच्चों की संख्या उसे विस्मित कर रही थी। दर दर भीख मांग कर गुजर करने वाले बच्चे इन सुविधाजनक आश्रय स्थलों पर टिकना क्यों नहीं चाहते , क्यों बार- बार भागने के प्रयास करते हैं , सम्मान पूर्वक मिलने वाला भोजन और आश्रय इन्हे क्यों नहीं सुहाता , घर पहुँचते , खाना खा कर विश्राम करते भी उसके दिमाग में प्रश्न अटके ही थे। </div>
<div style="color: #222222; font-family: arial; text-align: justify;">
<br /></div>
<div style="color: #222222; font-family: arial; text-align: justify;">
चींचीं के मधुर कलरव से नींद खुली उसकी , नारंगी आभा के साथ सूर्यदेव प्रकट हुआ ही चाहते थे , माँ बालकनी में पक्षियों के लिए अनाज और पानी रख कर आयी थी। बहुत बचपन से माँ को पक्षियों को दाना खिलाते देखा है उसने। दाना चुगने आती नन्ही चिड़िया , कबूतर , तोते उसे सदा लुभाते रहे थे। एक बार पिंजरे में पक्षी पालने के लिए वह कितना मचली थी , मगर माँ ने सख्ती से मना कर दिया था। तेजस्वी को समझाया था माँ ने कि पंछी तो उड़ते- फिरते ही लुभाते हैं , तुमने देखा नहीं उन्हें , वे यहाँ रखें पानी और दाने से ज्यादा इधर -उधर बिखरे हुए दाने या बहते पानी की ओर ही अधिक भागते हैं। घायल पक्षी के संरक्षण के लिए बेहतर स्थान उपलब्ध करवाना उचित है , मगर आकाश में उन्मुक्त उड़ते पक्षी को पिंजरे की कैद में रखना आमनवीय है। ये पक्षी मनुष्य से अधिक स्वतंत्रता प्रेमी होते हैं !<br />
<br /></div>
<div style="color: #222222; font-family: arial; text-align: justify;">
पक्षियों की चहचहाहट के बीच उसे आश्रम के बच्चों का ख्याल हो आया और अपना कार्य भी। उसे बाल विकास मंत्रालय से जुड़े आश्रयस्थलों और बाल भवन के अतिरिक्त कुछ स्वयंसेवी संस्थानों से भी जानकारी प्राप्त करनी थी। ऑफिस में मनीष व अन्य साथियों के साथ ग्रुप डिस्कशन के बाद उन्होंने अपनी खोज की रुपरेखा तय की और उत्साही कदम चल पड़े एक नयी मंजिल की राह पर । </div>
<div style="color: #222222; font-family: arial; text-align: justify;">
<br /></div>
<div style="color: #222222; font-family: arial; text-align: justify;">
<b><br /></b></div>
<div style="color: #222222; font-family: arial; text-align: justify;">
<b>क्रमशः </b></div>
<div style="color: #222222; font-family: arial; text-align: justify;">
<b>रुकावटें जीवन का सहज हिस्सा है, कई बार इंसान टूट जाता है , बिखर जाता है तो कई बार दृढ बनता है , मनीष और तेजस्वी को कितनी रुकावटे मिलती है , देखते हैं अगली किश्त में !</b></div>
</div>
<div style="color: black; font-family: 'Times New Roman'; text-align: justify;">
</div>
<div>
<br /></div>
<div>
</div>
</div>
</div>
</div>
</div>
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
</div>
</div>
वाणी गीतhttp://www.blogger.com/profile/01846470925557893834noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-7445694132447968411.post-4680804096554296312012-06-25T21:37:00.001-07:002012-06-25T23:21:54.053-07:00तंज़ करना आसान है , सहन करने के लिए ज़िगर चाहिए !<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<br />
<br />
<br />
<br />
<li class="comment" id="bc_0_67B" kind="b" style="background-color: #eee9dd; color: #222222; font-family: Georgia, Utopia, 'Palatino Linotype', Palatino, serif; font-size: 14px; line-height: 19px; margin: 0px 0px 16px; padding: 0.25em 0px 8px;"><div class="comment-block" id="c741404678302092904" style="margin-left: 48px; position: relative;">
<div class="comment-header" id="bc_0_67M" kind="m" style="margin: 0px 0px 8px;">
<a href="http://www.santoshtrivedi.com/2012/06/blog-post_23.html">http://www.santoshtrivedi.com/2012/06/blog-post_23.html</a>
</div>
<div class="comment-header" id="bc_0_67M" kind="m" style="margin: 0px 0px 8px;">
<br /></div>
<div class="comment-header" id="bc_0_67M" kind="m" style="margin: 0px 0px 8px;">
<div class="comment-block" id="c6908534411682876158" style="background-color: #fff9ee; line-height: 19px; margin-left: 48px; position: relative;">
<div class="comment-header" id="bc_0_63M" kind="m" style="margin: 0px 0px 8px;">
<cite class="user" style="font-style: normal; font-weight: bold;"><a href="http://www.blogger.com/profile/01846470925557893834" rel="nofollow" style="color: #993300; text-decoration: none;">वाणी गीत</a></cite><span class="icon user" style="font-weight: bold;"></span><span class="datetime secondary-text" style="margin-left: 6px;"><a href="http://www.santoshtrivedi.com/2012/06/blog-post_23.html?showComment=1340504819024#c6908534411682876158" rel="nofollow" style="color: #993300; text-decoration: none;">24 जून 2012 7:56 am</a></span></div>
<div class="comment-content" id="bc_0_63MC" style="margin-bottom: 8px; text-align: justify;">
दूसरों पर व्यंग्य कर हंसने में कौन बडाई है , स्वयं पर करे और दूसरों को हंसने दें तब कोई बात है !</div>
<span class="comment-actions secondary-text" id="bc_0_63MN" kind="m"><a href="http://www.santoshtrivedi.com/2012/06/blog-post_23.html?showComment=1340685264162" kind="i" o="r" style="color: #993300; padding-right: 5px; padding-top: 5px; text-decoration: none;" target="_self">प्रत्युत्तर दें</a><span class="item-control blog-admin pid-1893426151" style="display: inline;"><a href="http://www.blogger.com/delete-comment.g?blogID=3648196938872431745&postID=6908534411682876158" o="d" style="color: #993300; padding-right: 5px; padding-top: 5px; text-decoration: none;" target="_self">हटाएं</a></span></span></div>
<div class="comment-replies" id="bc_0_63BR" style="background-color: #fff9ee; line-height: 19px; margin-left: 36px; margin-top: 1em;">
<span id="bc_0_63b+seedCVulD" kind="d"></span><br />
<div class="comment-thread inline-thread" id="bc_0_61T" kind="t" style="background-color: #eee9dd; margin: 8px 0px; padding: 0.5em 1em;" t="0" u="0">
<span id="bc_0_63b+seedCVulD" kind="d"><span class="thread-toggle thread-expanded" id="bc_0_61TT" kind="g" style="cursor: pointer; display: inline-block;"><span class="thread-arrow" id="bc_0_61TA" style="background-attachment: scroll; background-color: transparent;"></span><span class="thread-count" id="bc_0_61TN"><a href="http://www.santoshtrivedi.com/2012/06/blog-post_23.html?showComment=1340685264162" style="color: #993300; text-decoration: none;" target="_self">उत्तर</a></span></span></span><br />
<div class="thread-dropContainer thread-expanded" id="bc_0_61TD">
<span id="bc_0_63b+seedCVulD" kind="d"><span class="thread-toggle thread-expanded" id="bc_0_61TT" kind="g" style="cursor: pointer; display: inline-block;"><span class="thread-count" id="bc_0_61TN"><span class="thread-drop"></span></span></span></span></div>
<span id="bc_0_63b+seedCVulD" kind="d"><span class="thread-toggle thread-expanded" id="bc_0_61TT" kind="g" style="cursor: pointer; display: inline-block;"><span class="thread-count" id="bc_0_61TN">
</span></span><br />
<ol class="thread-chrome thread-expanded" id="bc_0_61TC" style="list-style-type: none; padding: 0px;">
<li class="comment" id="bc_0_61B" kind="b" style="margin: 0px 0px 16px; padding: 16px 0px 8px;"><div class="avatar-image-container" style="float: left; margin: 0.2em 0px 0px; max-height: 36px; overflow: hidden; width: 36px;">
<img src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEi4EbWt55Zr0tjtBqbLS1tCfgTyMszXoxH05qwcOCFNGUv5dLCCa3fZaoIZ1LOFAiyJ98_davsvEo4iq-3MCWMTCJDye_VIA_m1o5xXhIYmCa-N9Ap5XrvtfiQDBrg4jtxB4elUg551ZEfP/s45/DSC00563.JPG" style="border: 1px solid rgb(238, 238, 238); max-width: 36px;" /></div>
<div class="comment-block" id="c3210689658533735153" style="margin-left: 48px; position: relative;">
<div class="comment-header" id="bc_0_61M" kind="m" style="margin: 0px 0px 8px;">
<cite class="user blog-author" style="font-style: normal; font-weight: bold;"><a href="http://www.blogger.com/profile/00663828204965018683" rel="nofollow" style="color: #993300; text-decoration: none;">संतोष त्रिवेदी</a></cite><span class="icon user blog-author"></span><span class="datetime secondary-text" style="margin-left: 6px;"><a href="http://www.santoshtrivedi.com/2012/06/blog-post_23.html?showComment=1340506061017#c3210689658533735153" rel="nofollow" style="color: #993300; text-decoration: none;">24 जून 2012 8:17 am</a></span></div>
<div class="comment-content" id="bc_0_61MC" style="margin-bottom: 8px; text-align: justify;">
वाणी जी,अगर आप ठीक से देखें तो हमने अपने ऊपर भी व्यंग्य किया है.<br />
<br />
...और जो व्यंग्यकार है उस पर तो व्यंग्य करने में और मजा है.केवल अपने पर ही व्यंग्य करना अच्छा हो तो यह विधा ही समाप्त हो जायेगी.आप दूसरों पर व्यंग्य करने के लिए स्वतंत्र हैं,मगर बिना किसी छल-कपट के !</div>
<span class="comment-actions secondary-text" id="bc_0_61MN" kind="m"></span></div>
<div class="comment-replies" id="bc_0_61BR" style="margin-left: 36px; margin-top: 1em;">
</div>
<div class="comment-replybox-single" id="bc_0_61B_box" style="margin-left: 48px; margin-top: 5px;">
</div>
</li>
<li class="comment" id="bc_0_62B" kind="b" style="border-bottom-width: 0px; margin: 0px 0px 16px; padding: 0.25em 0px 0px;"><div class="avatar-image-container" style="float: left; margin: 0.2em 0px 0px; max-height: 36px; overflow: hidden; width: 36px;">
<img src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhWKEUf0EbCRUiYORrU_5n4rl4hlRPMGnt_3pCSnV1txdrfllb1dFiQC4XfagF4NOuQZ703Pcl4GrLJqLyC-woE2lE-HAK3Qslg6LkEEEe02Ri3xSoxUKDYklxF5JYeSM2F6jQC7MRPPcU/s45/pic00759.jpg" style="border: 1px solid rgb(238, 238, 238); max-width: 36px;" /></div>
<div class="comment-block" id="c3977351490925576112" style="margin-left: 48px; position: relative;">
<div class="comment-header" id="bc_0_62M" kind="m" style="margin: 0px 0px 8px;">
<cite class="user" style="font-style: normal; font-weight: bold;"><a href="http://www.blogger.com/profile/01846470925557893834" rel="nofollow" style="color: #993300; text-decoration: none;">वाणी गीत</a></cite><span class="icon user" style="font-weight: bold;"></span><span class="datetime secondary-text" style="margin-left: 6px;"><a href="http://www.santoshtrivedi.com/2012/06/blog-post_23.html?showComment=1340526404164#c3977351490925576112" rel="nofollow" style="color: #993300; text-decoration: none;">24 जून 2012 1:56 pm</a></span></div>
<div class="comment-content" id="bc_0_62MC" style="margin-bottom: 8px; text-align: justify;">
इसको यूँ पढ़ लीजिये कि यदि कोई दूसरा हम पर करें , तो हम उसे भी ख़ुशी -ख़ुशी बर्दाश्त कर सकें!<br />
<br />
ये निर्धारित कौन करे कि कौन सी टिप्पणी/लेख बिना छल कपट के लिखा गया!!<br />
<br />
यह या पूर्व टिप्पणी व्यक्तिगत नहीं है , इसे अखिल ब्लॉगजगत के सम्बन्ध में देखिये !</div>
<div class="comment-content" id="bc_0_62MC" style="margin-bottom: 8px; text-align: justify;">
<br /></div>
</div>
</li>
</ol>
</span></div>
<span id="bc_0_63b+seedCVulD" kind="d">
</span></div>
<cite class="user" style="font-style: normal; font-weight: bold;"><a href="http://www.blogger.com/profile/04048005064130736717" rel="nofollow" style="color: #993300; text-decoration: none;">सुज्ञ</a></cite><span class="icon user" style="font-weight: bold;"></span><span class="datetime secondary-text" style="margin-left: 6px;"><a href="http://www.santoshtrivedi.com/2012/06/blog-post_23.html?showComment=1340553209467#c741404678302092904" rel="nofollow" style="color: #993300; text-decoration: none;">24 जून 2012 9:23 pm</a></span></div>
<div class="comment-content" id="bc_0_67MC" style="margin-bottom: 8px; text-align: justify;">
व्यंग्य विधा एक तरह से सुरक्षित सजगता प्रयोजन से होती है. विवेकवान व्यंग्यकार हमेशा विचारों विषय मन्तव्यो पर ही चोट करते है. किन्तु लोगों का ईगो अपने विचारों के साथ भी जडता से जुडाव लिए होता है, अक्सर विचारों पर व्यंग्य को व्यक्तिगत अपमान के अभिप्राय में ले लिया जाता है.</div>
<span class="comment-actions secondary-text" id="bc_0_67MN" kind="m"></span></div>
<div class="comment-replies" id="bc_0_67BR" style="margin-left: 36px; margin-top: 1em;">
</div>
<div class="comment-replybox-single" id="bc_0_67B_box" style="margin-left: 48px; margin-top: 5px;">
</div>
</li>
<li class="comment" id="bc_0_68B" kind="b" style="background-color: #eee9dd; color: #222222; font-family: Georgia, Utopia, 'Palatino Linotype', Palatino, serif; font-size: 14px; line-height: 19px; margin: 0px 0px 16px; padding: 0.25em 0px 8px;"><div class="avatar-image-container" style="float: left; margin: 0.2em 0px 0px; max-height: 36px; overflow: hidden; width: 36px;">
<img src="http://img2.blogblog.com/img/b36-rounded.png" style="border: 1px solid rgb(238, 238, 238); max-width: 36px;" /></div>
<div class="comment-block" id="c3556714407249746620" style="margin-left: 48px; position: relative;">
<div class="comment-header" id="bc_0_68M" kind="m" style="margin: 0px 0px 8px;">
<cite class="user" style="font-style: normal; font-weight: bold;"><a href="http://www.blogger.com/profile/17400896960704879428" rel="nofollow" style="color: #993300; text-decoration: none;">Er. Shilpa Mehta</a></cite><span class="icon user" style="font-weight: bold;"></span><span class="datetime secondary-text" style="margin-left: 6px;"><a href="http://www.santoshtrivedi.com/2012/06/blog-post_23.html?showComment=1340555441158#c3556714407249746620" rel="nofollow" style="color: #993300; text-decoration: none;">24 जून 2012 10:00 pm</a></span></div>
<div class="comment-content" id="bc_0_68MC" style="margin-bottom: 8px; text-align: justify;">
आदरणीय सुज्ञ जी - थिअरी में होता होगा ऐसा जैसा आप कह रहे हैं - किन्तु प्रेक्टिकली मैंने इस विधा को <b>बहुत ही कम इस तरह से प्रयुक्त होते देखा है | अक्सर (और अधिकतर) तो यह व्यंग करने वाले की मंशा व्यक्ति पर प्रहार ही होती देखि है, विचार पर या परिस्थिति पर नहीं |</b><br />
<br />
<b>मैं व्यंग्य के लक्ष्य की नहीं, बल्कि व्यंग्यकर्ता के मंतव्य की बात कर रही हूँ |</b> बात वहीँ आ जाती है फिर से - कि कर्म जो हो रहा है / किया जा रहा है, उसके classification के लिए उसके पीछे का मंतव्य ज्यादा महत्त्व रखता है - कर्म अपने आप में उतना अहम् नहीं है | गीता वाली लेखमाला के एक भाग में भी मैंने कहा था - यदि एक व्यक्ति सेना में है और अपनी बन्दूक से युद्ध के दौरान १०० दुश्मन सिपाहियों को मार दे - तो वह इनाम पाता है | किन्तु वही सैनिक छावनी में किसी बात पर क्रोधित हो कर उसी बन्दूक से एक भी इंसान को मार दे - तो वह फांसी के लिए नामित हो जाता है |<br />
<br />
तो बात यह नहीं की वार का लक्ष्य उस व्यंग्य को किस रूप में ले रहा है - बात असल में यह महत्त्व रखती है की व्यंग्यकार व्यंग्य कर किस उद्देश्य से रहा है ? परिस्थितियों को सुधारने के लिए ? सामने वाले के विचार उसे नहीं जंचते - तो अपनी असहमति दिखने और विचार परिवर्तन करवाने के उद्देश्य से ? सिर्फ मजाक, मस्ती, हंसी भर के लिए ? या उसे किसी बात से चोट लगी है और क्रोध के चलते ? या किसी से शत्रुता है उस शत्रुता के चलते ?<br />
<br />
हाँ - जिस पर व्यंग्य किया जा रहा हो - वह बहुत ही महान हो और पचा सके तो बात अलग है - किन्तु सार्वजनिक तौर पर व्यंग्य प्रहार से क्रोध आना बहुत ही साधारण सी बात है | आपके जैसे उच्च मानसिक स्तर वाले लोगों को न आता होगा क्रोध - मैं आप जैसे एक्सेप्शंस की बात नहीं कर रही, किन्तु आम जन की बात कर रही हूँ |</div>
<span class="comment-actions secondary-text" id="bc_0_68MN" kind="m"></span></div>
<div class="comment-replies" id="bc_0_68BR" style="margin-left: 36px; margin-top: 1em;">
</div>
<div class="comment-replybox-single" id="bc_0_68B_box" style="margin-left: 48px; margin-top: 5px;">
</div>
</li>
<li class="comment" id="bc_0_69B" kind="b" style="background-color: #eee9dd; color: #222222; font-family: Georgia, Utopia, 'Palatino Linotype', Palatino, serif; font-size: 14px; line-height: 19px; margin: 0px 0px 16px; padding: 0.25em 0px 8px;"><div class="avatar-image-container" style="float: left; margin: 0.2em 0px 0px; max-height: 36px; overflow: hidden; width: 36px;">
<img src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhWKEUf0EbCRUiYORrU_5n4rl4hlRPMGnt_3pCSnV1txdrfllb1dFiQC4XfagF4NOuQZ703Pcl4GrLJqLyC-woE2lE-HAK3Qslg6LkEEEe02Ri3xSoxUKDYklxF5JYeSM2F6jQC7MRPPcU/s45/pic00759.jpg" style="border: 1px solid rgb(238, 238, 238); max-width: 36px;" /></div>
<div class="comment-block" id="c9062601868522261373" style="margin-left: 48px; position: relative;">
<div class="comment-header" id="bc_0_69M" kind="m" style="margin: 0px 0px 8px;">
<cite class="user" style="font-style: normal; font-weight: bold;"><a href="http://www.blogger.com/profile/01846470925557893834" rel="nofollow" style="color: #993300; text-decoration: none;">वाणी गीत</a></cite><span class="icon user" style="font-weight: bold;"></span><span class="datetime secondary-text" style="margin-left: 6px;"><a href="http://www.santoshtrivedi.com/2012/06/blog-post_23.html?showComment=1340671199130#c9062601868522261373" rel="nofollow" style="color: #993300; text-decoration: none;">26 जून 2012 6:09 am</a></span></div>
<div class="comment-content" id="bc_0_69MC" style="margin-bottom: 8px; text-align: justify;">
लाख टके की बात !</div>
<span class="comment-actions secondary-text" id="bc_0_69MN" kind="m"><span class="item-control blog-admin pid-1893426151" style="display: inline;"><a href="http://www.blogger.com/delete-comment.g?blogID=3648196938872431745&postID=9062601868522261373" o="d" style="color: #993300; padding-right: 5px; padding-top: 5px; text-decoration: none;" target="_self">हटाएं</a></span></span></div>
<div class="comment-replies" id="bc_0_69BR" style="margin-left: 36px; margin-top: 1em;">
</div>
<div class="comment-replybox-single" id="bc_0_69B_box" style="margin-left: 48px; margin-top: 5px;">
</div>
</li>
<li class="comment" id="bc_0_70B" kind="b" style="background-color: #eee9dd; color: #222222; font-family: Georgia, Utopia, 'Palatino Linotype', Palatino, serif; font-size: 14px; line-height: 19px; margin: 0px 0px 16px; padding: 0.25em 0px 8px;"><div class="avatar-image-container" style="float: left; margin: 0.2em 0px 0px; max-height: 36px; overflow: hidden; width: 36px;">
<img src="http://img2.blogblog.com/img/b36-rounded.png" style="border: 1px solid rgb(238, 238, 238); max-width: 36px;" /></div>
<div class="comment-block" id="c349532054432282601" style="margin-left: 48px; position: relative;">
<div class="comment-header" id="bc_0_70M" kind="m" style="margin: 0px 0px 8px;">
<cite class="user" style="font-style: normal; font-weight: bold;"><a href="http://www.blogger.com/profile/17400896960704879428" rel="nofollow" style="color: #993300; text-decoration: none;">Er. Shilpa Mehta</a></cite><span class="icon user" style="font-weight: bold;"></span><span class="datetime secondary-text" style="margin-left: 6px;"><a href="http://www.santoshtrivedi.com/2012/06/blog-post_23.html?showComment=1340678898559#c349532054432282601" rel="nofollow" style="color: #993300; text-decoration: none;">26 जून 2012 8:18 am</a></span></div>
<div class="comment-content" id="bc_0_70MC" style="margin-bottom: 8px; text-align: justify;">
वाणी जी - आभार :)</div>
<span class="comment-actions secondary-text" id="bc_0_70MN" kind="m"></span></div>
<div class="comment-replies" id="bc_0_70BR" style="margin-left: 36px; margin-top: 1em;">
</div>
<div class="comment-replybox-single" id="bc_0_70B_box" style="margin-left: 48px; margin-top: 5px;">
</div>
</li>
<li class="comment" id="bc_0_71B" kind="b" style="background-color: #eee9dd; color: #222222; font-family: Georgia, Utopia, 'Palatino Linotype', Palatino, serif; font-size: 14px; line-height: 19px; margin: 0px 0px 16px; padding: 0.25em 0px 8px;"><div class="avatar-image-container" style="float: left; margin: 0.2em 0px 0px; max-height: 36px; overflow: hidden; width: 36px;">
<img src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEi4EbWt55Zr0tjtBqbLS1tCfgTyMszXoxH05qwcOCFNGUv5dLCCa3fZaoIZ1LOFAiyJ98_davsvEo4iq-3MCWMTCJDye_VIA_m1o5xXhIYmCa-N9Ap5XrvtfiQDBrg4jtxB4elUg551ZEfP/s45/DSC00563.JPG" style="border: 1px solid rgb(238, 238, 238); max-width: 36px;" /></div>
<div class="comment-block" id="c7358652223033932177" style="margin-left: 48px; position: relative;">
<div class="comment-header" id="bc_0_71M" kind="m" style="margin: 0px 0px 8px;">
<cite class="user blog-author" style="font-style: normal; font-weight: bold;"><a href="http://www.blogger.com/profile/00663828204965018683" rel="nofollow" style="color: #993300; text-decoration: none;">संतोष त्रिवेदी</a></cite><span class="icon user blog-author"></span><span class="datetime secondary-text" style="margin-left: 6px;"><a href="http://www.santoshtrivedi.com/2012/06/blog-post_23.html?showComment=1340681956182#c7358652223033932177" rel="nofollow" style="color: #993300; text-decoration: none;">26 जून 2012 9:09 am</a></span></div>
<div class="comment-content" id="bc_0_71MC" style="margin-bottom: 8px; text-align: justify;">
आदरणीय शिल्पाजी और वाणी जी,<br />
यह कतई हास्य-व्यंग्य है और इसे इसी रूप में लिया जाना चाहिए.मेरी कोई खुंदक यदि अनूप जी से है तो इस बारे में वे ही बता सकते हैं.हमारी और उनकी संवादहीनता की स्थिति भी नहीं है !<br />
<br />
...वे परले दर्जे के व्यंग्यकार हैं,ऐसे ही लिखते और टिपियाते रहते हैं.यह और बात है कि आपका व्यंग्य का हाजमा दुरुस्त नहीं है,खासकर शिल्पाजी के अनुसार !<br />
<br />
..अभी तक अनूप जी ने इसे सीरियसली नहीं लिया है,अगर आप ऐसा ही कहती रहीं तो वे भी सोचने लगेंगे कि क्या सचमुच ऐसा ही है !<br />
<br />
...मैं जहाँ तक जानता हूँ और जैसा उन्होंने कहा भी है कि इससे उनको मजा आया है.अब तो इसी बात का इंतज़ार है कि कब वे हमारी खटिया खड़ी करें और हमें फुल-मजा आए !</div>
<span class="comment-actions secondary-text" id="bc_0_71MN" kind="m"></span></div>
<div class="comment-replies" id="bc_0_71BR" style="margin-left: 36px; margin-top: 1em;">
</div>
<div class="comment-replybox-single" id="bc_0_71B_box" style="margin-left: 48px; margin-top: 5px;">
</div>
</li>
<li class="comment" id="bc_0_72B" kind="b" style="background-color: #eee9dd; color: #222222; font-family: Georgia, Utopia, 'Palatino Linotype', Palatino, serif; font-size: 14px; line-height: 19px; margin: 0px 0px 16px; padding: 0.25em 0px 8px;"><div class="avatar-image-container" style="float: left; margin: 0.2em 0px 0px; max-height: 36px; overflow: hidden; width: 36px;">
<img src="http://img2.blogblog.com/img/b36-rounded.png" style="border: 1px solid rgb(238, 238, 238); max-width: 36px;" /></div>
<div class="comment-block" id="c7172118352591379877" style="margin-left: 48px; position: relative;">
<div class="comment-header" id="bc_0_72M" kind="m" style="margin: 0px 0px 8px;">
<cite class="user" style="font-style: normal; font-weight: bold;"><a href="http://www.blogger.com/profile/17400896960704879428" rel="nofollow" style="color: #993300; text-decoration: none;">Er. Shilpa Mehta</a></cite><span class="icon user" style="font-weight: bold;"></span><span class="datetime secondary-text" style="margin-left: 6px;"><a href="http://www.santoshtrivedi.com/2012/06/blog-post_23.html?showComment=1340682163601#c7172118352591379877" rel="nofollow" style="color: #993300; text-decoration: none;">26 जून 2012 9:12 am</a></span></div>
<div class="comment-content" id="bc_0_72MC" style="margin-bottom: 8px; text-align: justify;">
ji</div>
<span class="comment-actions secondary-text" id="bc_0_72MN" kind="m"></span></div>
<div class="comment-replies" id="bc_0_72BR" style="margin-left: 36px; margin-top: 1em;">
</div>
<div class="comment-replybox-single" id="bc_0_72B_box" style="margin-left: 48px; margin-top: 5px;">
</div>
</li>
<li class="comment" id="bc_0_73B" kind="b" style="background-color: #eee9dd; color: #222222; font-family: Georgia, Utopia, 'Palatino Linotype', Palatino, serif; font-size: 14px; line-height: 19px; margin: 0px 0px 16px; padding: 0.25em 0px 8px;"><div class="avatar-image-container" style="float: left; margin: 0.2em 0px 0px; max-height: 36px; overflow: hidden; width: 36px;">
<img src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEi4EbWt55Zr0tjtBqbLS1tCfgTyMszXoxH05qwcOCFNGUv5dLCCa3fZaoIZ1LOFAiyJ98_davsvEo4iq-3MCWMTCJDye_VIA_m1o5xXhIYmCa-N9Ap5XrvtfiQDBrg4jtxB4elUg551ZEfP/s45/DSC00563.JPG" style="border: 1px solid rgb(238, 238, 238); max-width: 36px;" /></div>
<div class="comment-block" id="c5626973014550856209" style="margin-left: 48px; position: relative;">
<div class="comment-header" id="bc_0_73M" kind="m" style="margin: 0px 0px 8px;">
<cite class="user blog-author" style="font-style: normal; font-weight: bold;"><a href="http://www.blogger.com/profile/00663828204965018683" rel="nofollow" style="color: #993300; text-decoration: none;">संतोष त्रिवेदी</a></cite><span class="icon user blog-author"></span><span class="datetime secondary-text" style="margin-left: 6px;"><a href="http://www.santoshtrivedi.com/2012/06/blog-post_23.html?showComment=1340683041385#c5626973014550856209" rel="nofollow" style="color: #993300; text-decoration: none;">26 जून 2012 9:27 am</a></span></div>
<div class="comment-content" id="bc_0_73MC" style="margin-bottom: 8px; text-align: justify;">
कृपया अनूपजी का खुद का अवलोकन देखिये !<br />
<br />
http://hindini.com/fursatiya/archives/1816</div>
<span class="comment-actions secondary-text" id="bc_0_73MN" kind="m"></span></div>
<div class="comment-replies" id="bc_0_73BR" style="margin-left: 36px; margin-top: 1em;">
</div>
<div class="comment-replybox-single" id="bc_0_73B_box" style="margin-left: 48px; margin-top: 5px;">
</div>
</li>
<li class="comment" id="bc_0_74B" kind="b" style="background-color: #eee9dd; color: #222222; font-family: Georgia, Utopia, 'Palatino Linotype', Palatino, serif; font-size: 14px; line-height: 19px; margin: 0px 0px 16px; padding: 0.25em 0px 8px;"><div class="avatar-image-container" style="float: left; margin: 0.2em 0px 0px; max-height: 36px; overflow: hidden; width: 36px;">
<img src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhWKEUf0EbCRUiYORrU_5n4rl4hlRPMGnt_3pCSnV1txdrfllb1dFiQC4XfagF4NOuQZ703Pcl4GrLJqLyC-woE2lE-HAK3Qslg6LkEEEe02Ri3xSoxUKDYklxF5JYeSM2F6jQC7MRPPcU/s45/pic00759.jpg" style="border: 1px solid rgb(238, 238, 238); max-width: 36px;" /></div>
<div class="comment-block" id="c5998836328143087896" style="margin-left: 48px; position: relative;">
<div class="comment-header" id="bc_0_74M" kind="m" style="margin: 0px 0px 8px;">
<cite class="user" style="font-style: normal; font-weight: bold;"><a href="http://www.blogger.com/profile/01846470925557893834" rel="nofollow" style="color: #993300; text-decoration: none;">वाणी गीत</a></cite><span class="icon user" style="font-weight: bold;"></span><span class="datetime secondary-text" style="margin-left: 6px;"><a href="http://www.santoshtrivedi.com/2012/06/blog-post_23.html?showComment=1340684191363#c5998836328143087896" rel="nofollow" style="color: #993300; text-decoration: none;">26 जून 2012 9:46 am</a></span></div>
<div class="comment-content" id="bc_0_74MC" style="margin-bottom: 8px; text-align: justify;">
पता नहीं आपको यह क्यों लग रहा है कि आपकी खुंदक की बात हो रही है , यहाँ सवाल ब्लॉगिंग की प्रवृति का है . मैं पहले ही कह चुकी हूँ कि यह टिप्पणी व्यक्तिगत नहीं है इसलिए इस प्रवृति में वह भी शामिल हैं जिनका लिंक आपने दिया है !<br />
उदाहरण वह शब्द है ही जो वे कई बार इस्तेमाल करते हैं और आपने भी इस पोस्ट में किया है!</div>
<span class="comment-actions secondary-text" id="bc_0_74MN" kind="m"><span class="item-control blog-admin pid-1893426151" style="display: inline;"><a href="http://www.blogger.com/delete-comment.g?blogID=3648196938872431745&postID=5998836328143087896" o="d" style="color: #993300; padding-right: 5px; padding-top: 5px; text-decoration: none;" target="_self">हटाएं</a></span></span></div>
<div class="comment-replies" id="bc_0_74BR" style="margin-left: 36px; margin-top: 1em;">
</div>
<div class="comment-replybox-single" id="bc_0_74B_box" style="margin-left: 48px; margin-top: 5px;">
</div>
</li>
<li class="comment" id="bc_0_75B" kind="b" style="background-color: #eee9dd; border-bottom-width: 0px; font-family: Georgia, Utopia, 'Palatino Linotype', Palatino, serif; line-height: 19px; margin: 0px 0px 16px; padding: 0.25em 0px 0px;"><div class="avatar-image-container" style="color: #222222; float: left; font-size: 14px; margin: 0.2em 0px 0px; max-height: 36px; overflow: hidden; width: 36px;">
<img src="http://img2.blogblog.com/img/b36-rounded.png" style="border: 1px solid rgb(238, 238, 238); max-width: 36px;" /></div>
<div class="comment-block" id="c7204388925947583821" style="margin-left: 48px; position: relative;">
<div class="comment-header" id="bc_0_75M" kind="m" style="color: #222222; font-size: 14px; margin: 0px 0px 8px;">
<cite class="user" style="font-style: normal; font-weight: bold;"><a href="http://www.blogger.com/profile/17400896960704879428" rel="nofollow" style="color: #993300; text-decoration: none;">Er. Shilpa Mehta</a></cite><span class="icon user" style="font-weight: bold;"></span><span class="datetime secondary-text" style="margin-left: 6px;"><a href="http://www.santoshtrivedi.com/2012/06/blog-post_23.html?showComment=1340684658395#c7204388925947583821" rel="nofollow" style="color: #993300; text-decoration: none;">26 जून 2012 9:54 am</a></span></div>
<div class="comment-content" id="bc_0_75MC" style="color: #222222; font-size: 14px; margin-bottom: 8px; text-align: justify;">
exactly .. मैं और वाणी जी बात "व्यंग्य प्रवृत्ति" की कर रहे हैं | इस पोस्ट की / आपकी / अनूप शुक्ल जी की नहीं |<br />
<br />
@ यह और बात है कि आपका व्यंग्य का हाजमा दुरुस्त नहीं है,खासकर शिल्पाजी के अनुसार !<br />
जी - मेरा तो दुरुस्त बिलकुल नहीं है | :)<br />
<br />
व्यंग्य विधा मुझे बिलकुल ही हजम नहीं होती , specially जब वह व्यक्ति पर हो | हाँ सिस्टम पर हो - पोलिटिक्स पर हो (पोलिटिशियंस पर नहीं , पोलिटिक्स पर ) तब तो दवा की कडवी गोली की तरह निगल पाती हूँ | परन्तु व्यक्ति पर तो बिलकुल नहीं |<br />
<br />
यह आपका या आपकी इस पोस्ट का या फुरसतिया जी की उस पोस्ट का इशु नहीं है मेरे लिए |</div>
<div class="comment-content" id="bc_0_75MC" style="color: #222222; font-size: 14px; margin-bottom: 8px; text-align: justify;">
<br /></div>
<div class="comment-content" id="bc_0_75MC" style="color: #222222; font-size: 14px; margin-bottom: 8px; text-align: justify;">
<br /></div>
<div class="comment-content" id="bc_0_75MC" style="color: #222222; font-size: 14px; margin-bottom: 8px; text-align: justify;">
</div>
<div class="comment-header" id="bc_0_44M" kind="m" style="color: #222222; font-size: 14px; line-height: 19px; margin: 0px 0px 8px; text-align: left;">
<cite class="user" style="font-style: normal; font-weight: bold;"><a href="http://www.blogger.com/profile/06546381666745324207" rel="nofollow" style="color: #993300; text-decoration: none;">BS Pabla</a></cite><span class="icon user" style="font-weight: bold;"></span><span class="datetime secondary-text" style="margin-left: 6px;"><a href="http://www.santoshtrivedi.com/2012/06/blog-post_23.html?showComment=1340513000029#c210400725537360605" rel="nofollow" style="color: #993300; text-decoration: none;">24 जून 2012 10:13 am</a></span></div>
<div class="comment-content" id="bc_0_44MC" style="line-height: 19px; margin-bottom: 8px;">
<div style="color: #222222; font-size: 14px;">
<i>उन्हें यदि किसी पर हँसना या व्यंग्य करना आता है तो स्वयं पर भी उतनी सहजता से लेते हैं</i></div>
<div style="color: #222222; font-size: 14px;">
<br /></div>
<div style="color: #222222; font-size: 14px;">
सच्ची?</div>
<div style="color: #222222; font-size: 14px;">
तनिक ताका झांकी कर लीजिए कि चिट्ठाचर्चा ब्लॉग पर कितनी टिप्पणियाँ हटाई/ हटवाई गईं हैं</div>
<div style="color: #222222; font-size: 14px;">
<br /></div>
<div style="color: #222222; font-size: 14px;">
<br /></div>
<div style="color: #222222; font-size: 14px;">
<br /></div>
<div style="color: #222222; font-size: 14px;">
@<a href="http://mosamkaun.blogspot.in/2012/06/blog-post_25.html" style="line-height: 19px;">http://mosamkaun.blogspot.in/2012/06/blog-post_25.html</a></div>
<br />
<div class="comment-header" id="bc_0_46M" kind="m" style="background-color: #fff9ee; line-height: 19px; margin: 0px 0px 8px;">
<cite class="user" style="font-style: normal;"><a href="http://www.blogger.com/profile/01846470925557893834" rel="nofollow" style="text-decoration: none;"><span style="color: red;">वाणी गीत</span></a></cite><span style="color: #222222;"><span class="icon user" style="font-size: 14px; font-weight: bold;"></span></span><span class="datetime secondary-text" style="color: #222222; font-size: 14px; margin-left: 6px;"><a href="http://mosamkaun.blogspot.com/2012/06/blog-post_25.html?showComment=1340677983368#c8770054658426936967" rel="nofollow" style="color: #888888; text-decoration: none;">26-06-2012 8:03:00 am</a></span></div>
<div class="comment-content" id="bc_0_46MC" style="background-color: #fff9ee; color: #222222; font-size: 14px; line-height: 19px; margin-bottom: 8px; text-align: justify;">
अपने दुःख को सहन करना और मुस्कराना बड़े जिगर का काम है ...<br />दूसरों पर तंज़ कसना और खिलखिलाना सबसे आसान ...<br />बात ही बात में कितनी पते की बात कही आपने !</div>
<span style="font-size: 14px;"> </span></div>
</div>
</li>
</div>वाणी गीतhttp://www.blogger.com/profile/01846470925557893834noreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-7445694132447968411.post-6426013197923278612011-11-15T19:01:00.000-08:002011-11-16T00:44:05.996-08:00गृहिणियों का काम मल्टीटास्किंग के बिना चलता ही नहीं !<div face="arial" size="14px" style="line-height: 25px;"><a href="http://praveenpandeypp.blogspot.com/2011/11/blog-post_16.html">http://praveenpandeypp.blogspot.com/2011/11/blog-post_16.html</a></div><div style="font-family: arial; font-size: 14px; line-height: 25px;"><br /></div>गृहिणियों के नजरिये से बताऊँ तो हमारा काम तो मल्टी टास्किंग के बिना चलता ही नहीं !<br />अखबार पढ़ते हुए चाय पीना के साथ टीवी भी देखना और इसी समय बच्चों की शरारतों पर नजर रखते हुए उन्हें टोकते हुए किचन में बन रही सब्जी का ध्यान भी रखना(ये सभी काम एक साथ करना ), कई बार पूछते हैं बच्चे, आपकी कितनी आँखें हैं !वाणी गीतhttp://www.blogger.com/profile/01846470925557893834noreply@blogger.com5tag:blogger.com,1999:blog-7445694132447968411.post-41249285494076494862011-11-10T23:00:00.000-08:002011-11-10T23:03:41.515-08:00बेटियां क्यों नापसंद की जाती हैं ...नारी ब्लॉग पर!<div><a href="http://indianwomanhasarrived.blogspot.com/2011/11/blog-post_10.html">http://indianwomanhasarrived.blogspot.com/2011/11/blog-post_10.html</a></div><div><br /></div><span class="Apple-style-span" style="font-family: arial; font-size: small; ">बहुसंख्यक मध्यमवर्ग परिवारों में बच्चों की सीमित संख्या ( एक या दो ) होने के कारण अपनी ख़ुशी और सुविधा से उन्हें सुविधाएँ दी जाती हैं , इसलिए इस समय समाज में लड़कियों की घटती संख्या में मैं दहेज़ प्रथा को बड़े कारण के रूप में नहीं देख पा रही हूँ.</span><div style="font-family: arial; text-align: -webkit-auto; font-size: small; ">आजकल ससुराल पक्ष से अपने किसी भी कारण होने वाले मतभेदों को लिया- दिया जाने वाला धन या सामान की आड़ में दहेज़ प्रताड़ना का रूप देकर परेशान करने जैसी घटनाएँ ही ज्यादा देखने में आ रही हैं . (विश्वास कीजिये , यह एक बहुत बड़ा सच है ) , इसलिए दहेज़ प्रथा बंद हो जाए तो आपसी मतभेदों का एक कारण समाप्त किया जा सकता है मगर यह सीधे लड़कियों की घटती संख्या के लिए जिम्मेदार नहीं है . यदि दहेज़ ही एकमात्र कारण होता तो संपन्न मध्यमवर्गीय परिवारों में बेटियों को जन्म ना लेने देने जैसी घटनाएँ नहीं होती !</div><div style="font-family: arial; text-align: -webkit-auto; font-size: small; ">मध्यम वर्ग में लड़कियों के लिए दोहरे मानदंड हैं . असुरक्षित समाज में बेटियों को आत्मनिर्भर बनाना समय की मांग है , बढ़ते प्रतिस्पर्धी माहौल में जहाँ उन्हें आगे भी बढ़ना है , आत्मनिर्भर भी होना है , वहां उनके सहज व्यवहार को भी बारीकी से परखा जाता है, चरित्र का निर्धारण किया जाता है , इसके अतिरिक्त महिलाओ के प्रति बढती अपराधिक घटनाएँ भी एक प्रमुख कारण है ! </div>वाणी गीतhttp://www.blogger.com/profile/01846470925557893834noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-7445694132447968411.post-90951690027540299732011-09-21T17:04:00.000-07:002011-09-22T17:55:30.044-07:00बड़ा ब्लॉगर कौन!!<div><span class="Apple-style-span" style="font-family: arial; font-size: 14px; line-height: 25px; "><div style="font-family: Georgia, serif; font-size: 16px; line-height: normal; "><b><span class="Apple-style-span" style="font-family: arial; font-size: 14px; line-height: 25px; ">बड़ा ब्लॉगर कौन , वह जो टंकी पर चढ़ता हो या जिसके कमेन्ट प्रकाशित नहीं किये जा सके , या डिलीट करने पड़े ...</span></b></div><div style="font-family: Georgia, serif; font-size: 16px; line-height: normal; "><b><span class="Apple-style-span" style="font-family: arial; font-size: 14px; line-height: 25px; ">इधर हमारे भी एक दो कमेन्ट प्रकाशित नहीं किये गये तो हम भी भ्रम में रहे कि शायद बड़े ब्लॉगर बनने की पंक्ति में खड़े हैं , इसलिए सावधानी रखते हुए अपने कमेन्ट का लेखा जोखा रखते हुए एक ब्लॉग ही बना लेने की पहल की है . खुदा न खस्ता किसी दिन बड़े ब्लॉगर बन गये तो काम आयेंगे ..</span></b></div><div><b>अपना आशीर्वाद दीजियेगा !</b></div></span><span class="Apple-style-span" style="font-family: arial; font-size: 14px; line-height: 25px; "><div><br /></div></span><span class="Apple-style-span" style="font-family: arial; font-size: 14px; line-height: 25px; ">1.</span><span class="Apple-style-span" style="font-family: arial, sans-serif; font-size: 13px; background-color: rgb(255, 255, 255); ">जी हाँ , एक महिला को तब भी दुखी होना चाहिए जब उसे बंदरिया बना कर नचाया गया हो , वो भी एक दूसरी महिला के ब्लॉग पर ही ! <a href="http://mypoeticresponse.blogspot.com/2011/06/blog-post_23.html" target="_blank" style="color: rgb(0, 0, 204); ">http://mypoeticresponse.<wbr>blogspot.com/2011/06/blog-<wbr>post_23.html</a></span></div><div><br /></div><div><span class="Apple-style-span" style="font-family: arial, sans-serif; font-size: 13px; background-color: rgb(255, 255, 255); ">मुझे जो कहना था दिव्या को मैं मेल में कह चूकी हूँ , उसकी पोस्ट पब्लिश होते ही ! </span></div><div><span class="Apple-style-span" style="font-family: arial, sans-serif; font-size: 13px; background-color: rgb(255, 255, 255); ">(</span><span class="Apple-style-span" style="font-family: arial; font-size: 14px; line-height: 25px; "><b>मेरा यह कमेन्ट भी बहुत सिफ्रारिश के बाद पब्लिश किया गया)</b></span></div><div><br /></div><div>2.</div><div><span class="Apple-style-span" style="color: rgb(51, 51, 51); font-family: 'Trebuchet MS', Verdana, Arial, sans-serif; font-size: 12px; "><dt id="c4727814990145862772" class="blog-author" style="cursor: pointer; margin-top: 0px; margin-right: 0px; margin-bottom: 0px; margin-left: 0px; font: normal normal bold 122%/1.4em Arial, Verdana, sans-serif; padding-top: 0px; "><img src="http://www.blogger.com/img/blank.gif" class="comment-icon blogger-comment" alt="Blogger" style="width: 16px; height: 16px; margin-right: 4px; background-image: url(http://www.blogger.com/img/cmt/comment_sprite.gif); background-attachment: initial; background-origin: initial; background-clip: initial; background-color: initial; background-position: -45px -117px; background-repeat: no-repeat no-repeat; " /> <span dir="ltr"><a href="http://www.blogger.com/profile/03821156352572929481" rel="nofollow" style="color: rgb(51, 102, 204); text-decoration: none; font-weight: bold; ">रचना</a></span> said...</dt><dd style="margin-top: 0px; margin-right: 0px; margin-bottom: 0.75em; margin-left: 0px; padding-bottom: 0.25em; line-height: 16px; "><p style="padding-bottom: 0.25em; margin-top: 0px; margin-right: 0px; margin-bottom: 0.75em; margin-left: 0px; line-height: 16px; ">वाणी<br />आप जिस दिन ये पोस्ट आयी थी उस दिन भी मुझे कह्चुकी हैं की एक पुरुष ब्लोग्गर ने आप को कहा की ये पोस्ट आप के ऊपर हैं<br />फिर आज भी आप ये बात दुहरा चुकी हने<br />आप मुझ पर ये भी संदेह कर चुकी हैं की मै और दिव्या एक ही हैं और पूछ भी चुकी हैं<br />अब इसके बाद कुछ और कहने को रह ही क्या जाता हैं</p><p class="comment-timestamp" style="margin-top: 0px; margin-right: 0px; margin-bottom: 0.75em; margin-left: 0px; color: rgb(119, 119, 119); font-size: 11px; padding-bottom: 0.25em; line-height: 15px; ">September 21, 2011 11:40 AM</p><div class="r" style="clear: both; display: block; margin-top: 0px; margin-right: 0px; margin-bottom: 0px; margin-left: 0px; padding-top: 0px; padding-right: 0px; padding-bottom: 0px; padding-left: 0px; height: 1px; line-height: 1px; font-size: 1px; border-bottom-width: 1px; border-bottom-style: solid; border-bottom-color: rgb(204, 204, 204); "></div></dd><dt id="c4746272852376834145" style="cursor: pointer; margin-top: 0px; margin-right: 0px; margin-bottom: 0px; margin-left: 0px; font: normal normal bold 122%/1.4em Arial, Verdana, sans-serif; padding-top: 0px; ">3.</dt><dt id="c4746272852376834145" style="cursor: pointer; margin-top: 0px; margin-right: 0px; margin-bottom: 0px; margin-left: 0px; font: normal normal bold 122%/1.4em Arial, Verdana, sans-serif; padding-top: 0px; "><img src="http://www.blogger.com/img/blank.gif" class="comment-icon blogger-comment" alt="Blogger" style="width: 16px; height: 16px; margin-right: 4px; background-image: url(http://www.blogger.com/img/cmt/comment_sprite.gif); background-attachment: initial; background-origin: initial; background-clip: initial; background-color: initial; background-position: -45px -117px; background-repeat: no-repeat no-repeat; " /> <span dir="ltr"><a href="http://www.blogger.com/profile/01846470925557893834" rel="nofollow" style="color: rgb(51, 102, 204); text-decoration: none; font-weight: bold; ">वाणी गीत</a></span> said...</dt><dd style="margin-top: 0px; margin-right: 0px; margin-bottom: 0.75em; margin-left: 0px; padding-bottom: 0.25em; line-height: 16px; "><p style="padding-bottom: 0.25em; margin-top: 0px; margin-right: 0px; margin-bottom: 0.75em; margin-left: 0px; line-height: 16px; ">@ जी हाँ , रचना जी , मुझे आभास हुआ था कि कहीं आप दिव्या के नाम से ही तो नहीं लिखती हैं , ये मुझे किसी ने बताया नहीं था , पोस्ट लिखने के अंदाज से मुझे ऐसा महसूस हुआ , और मैंने आपसे पूछा , आपने बता दिया तो बात साफ़ हो गयी ...और बात वहीं ख़त्म हो गयी!<br /><br />@ मुझे किसी पुरुष ब्लॉगर ने ये नहीं कहा कि ये पोस्ट मुझ पर लिखी गयी है , मुझे सिर्फ इसका लिंक दिया गया था !<br />मेरा कमेन्ट लिखने का आशय यह है कि आहत करने वाली बात आहत ही करती है , वो चाहे पुरुष/महिला द्वारा पुरुष /महिला के लिए लिखी गयी हो !</p><p class="comment-timestamp" style="margin-top: 0px; margin-right: 0px; margin-bottom: 0.75em; margin-left: 0px; color: rgb(119, 119, 119); font-size: 11px; padding-bottom: 0.25em; line-height: 15px; ">September 21, 2011 12:08 PM</p><span class="item-control"><a href="http://www.blogger.com/delete-comment.g?blogID=2317402208490749429&postID=4746272852376834145" title="Delete Comment" style="color: rgb(51, 102, 204); text-decoration: none; font-weight: bold; border-top-style: none; border-right-style: none; border-bottom-style: none; border-left-style: none; border-width: initial; border-color: initial; "><img class="icon_delete" src="http://www.blogger.com/img/blank.gif" alt="Delete" style="background-image: url(http://www.blogger.com/img/cmt/comment_sprite.gif); background-attachment: initial; background-origin: initial; background-clip: initial; background-color: initial; width: 13px; height: 13px; border-top-style: none; border-right-style: none; border-bottom-style: none; border-left-style: none; border-width: initial; border-color: initial; background-position: -32px -101px; background-repeat: no-repeat no-repeat; " /></a></span><div class="r" style="clear: both; display: block; margin-top: 0px; margin-right: 0px; margin-bottom: 0px; margin-left: 0px; padding-top: 0px; padding-right: 0px; padding-bottom: 0px; padding-left: 0px; height: 1px; line-height: 1px; font-size: 1px; border-bottom-width: 1px; border-bottom-style: solid; border-bottom-color: rgb(204, 204, 204); "></div></dd><dt id="c4378460832923007969" class="blog-author" style="cursor: pointer; margin-top: 0px; margin-right: 0px; margin-bottom: 0px; margin-left: 0px; font: normal normal bold 122%/1.4em Arial, Verdana, sans-serif; padding-top: 0px; ">4.</dt><dt id="c4378460832923007969" class="blog-author" style="cursor: pointer; margin-top: 0px; margin-right: 0px; margin-bottom: 0px; margin-left: 0px; font: normal normal bold 122%/1.4em Arial, Verdana, sans-serif; padding-top: 0px; "><img src="http://www.blogger.com/img/blank.gif" class="comment-icon blogger-comment" alt="Blogger" style="width: 16px; height: 16px; margin-right: 4px; background-image: url(http://www.blogger.com/img/cmt/comment_sprite.gif); background-attachment: initial; background-origin: initial; background-clip: initial; background-color: initial; background-position: -45px -117px; background-repeat: no-repeat no-repeat; " /> <span dir="ltr"><a href="http://www.blogger.com/profile/03821156352572929481" rel="nofollow" style="color: rgb(51, 102, 204); text-decoration: none; font-weight: bold; ">रचना</a></span> said...</dt><dd style="margin-top: 0px; margin-right: 0px; margin-bottom: 0.75em; margin-left: 0px; padding-bottom: 0.25em; line-height: 16px; "><p style="padding-bottom: 0.25em; margin-top: 0px; margin-right: 0px; margin-bottom: 0.75em; margin-left: 0px; line-height: 16px; ">आपने बता दिया तो बात साफ़ हो गयी<br /><br />to phir aap ke pehlae kament kaa kyaa auchitya haen tab bhi aap mujh sae puchh chuki thee<br /><br />baat tab bhi usii din saaf ho gyaee thee<br />aur aap chaet par aaj bhi puchh chuki haen<br /><br />rahii baat aahat honae ki<br />to baebaat aahat hona agar aap ko ruchtaa haen to yae aap kaa adhikaar haen mujhae koi aaptti nahin haen<br /><br />maene yae patr divya kae liyaa likha haen<br />uttar wo daegi nahin daegi yae uski marzi haen</p><p class="comment-timestamp" style="margin-top: 0px; margin-right: 0px; margin-bottom: 0.75em; margin-left: 0px; color: rgb(119, 119, 119); font-size: 11px; padding-bottom: 0.25em; line-height: 15px; ">September 21, 2011 12:16 PM</p><div class="r" style="clear: both; display: block; margin-top: 0px; margin-right: 0px; margin-bottom: 0px; margin-left: 0px; padding-top: 0px; padding-right: 0px; padding-bottom: 0px; padding-left: 0px; height: 1px; line-height: 1px; font-size: 1px; border-bottom-width: 1px; border-bottom-style: solid; border-bottom-color: rgb(204, 204, 204); "></div></dd><dt id="c550260891767738464" style="cursor: pointer; margin-top: 0px; margin-right: 0px; margin-bottom: 0px; margin-left: 0px; font: normal normal bold 122%/1.4em Arial, Verdana, sans-serif; padding-top: 0px; ">5.</dt><dt id="c550260891767738464" style="cursor: pointer; margin-top: 0px; margin-right: 0px; margin-bottom: 0px; margin-left: 0px; font: normal normal bold 122%/1.4em Arial, Verdana, sans-serif; padding-top: 0px; "><img src="http://www.blogger.com/img/blank.gif" class="comment-icon blogger-comment" alt="Blogger" style="width: 16px; height: 16px; margin-right: 4px; background-image: url(http://www.blogger.com/img/cmt/comment_sprite.gif); background-attachment: initial; background-origin: initial; background-clip: initial; background-color: initial; background-position: -45px -117px; background-repeat: no-repeat no-repeat; " /> <span dir="ltr"><a href="http://www.blogger.com/profile/04046257625059781313" rel="nofollow" style="color: rgb(51, 102, 204); text-decoration: none; font-weight: bold; ">ZEAL</a></span> said...</dt><dd style="margin-top: 0px; margin-right: 0px; margin-bottom: 0.75em; margin-left: 0px; padding-bottom: 0.25em; line-height: 16px; "><p style="padding-bottom: 0.25em; margin-top: 0px; margin-right: 0px; margin-bottom: 0.75em; margin-left: 0px; line-height: 16px; ">.<br /><br />रचना दीदी ,<br />पत्र का जवाब शीघ्र दूँगी । तबियत बहुत खराब है। थोडा संभलने दीजिये।<br /><br />वाणी दीदी,<br />आपके मन में ये संशय भी आया की रचना और दिव्या एक हैं, तो सचमुच मैं धन्य हुयी। एक बात सच कह दूं तो....मैं तो रचना दीदी के पैर की धूल भी नहीं। इतना साहस विरले ही किसी स्त्री के पास होता है । काश मैं उनके जैसी बन सकती।<br /><br />एक बात और --आपने अपनी टिप्पणी मेल से क्यूँ लिखी थी ? जब सब कुछ सार्वजनिक और पारदर्शी है तो पब्लिक में लिखने से डर किस बात का था ? लेकिन आपकी विवशता समझ सकती हूँ। आपने मेल से क्यूँ लिखा उसका कारण जानती हूँ और आपके निर्णय का सम्मान करती हूँ।</p></dd></span></div><span class="Apple-style-span"><br /></span><div><span class="Apple-style-span" style="font-family: arial; font-size: 14px; line-height: 25px; ">..............................................................</span></div><div><b><span class="Apple-style-span" style="font-family: arial; font-size: 14px; line-height: 25px; ">मेरा कमेन्ट जो पब्लिश नहीं किया गया </span><span class="Apple-style-span" style="font-family: arial; font-size: 14px; line-height: 25px; ">कुछ और शब्द बाद में जोड़े </span><span class="Apple-style-span" style="font-family: arial; font-size: 14px; line-height: 25px; ">....</span></b></div><div><span class="Apple-style-span"><span class="Apple-style-span" style="font-size: 14px; line-height: 25px;"><b><br /></b></span></span></div><div><span class="Apple-style-span"><span class="Apple-style-span" style="font-size: 14px; line-height: 25px;"><br /></span></span><div><span class="Apple-style-span" style="font-family: arial; font-size: 14px; line-height: 25px; ">पब्लिकली नहीं लिखने का कोई डर या कारण नहीं है ...मगर बार बार ब्लॉगिंग छोड़ जाने की बात कहना , वो भी मनोविज्ञान की जानकार से, मुझे अच्छा नहीं लगता . मैं किसी से ब्लॉगिंग छोड़ जाने की अपील नहीं करती , जिसको नहीं रुचता है , छोड़ दे, मगर किसी कि पोस्ट को आधार बना कर नहीं ...ऐसे थोड़े ना चलता है कि हम किसी को कुछ भी कह दें , किसी पर कैसा भी व्यंग्य करें और जब हमारी बारी आये तो सौ तोहमतें लगा दें कि आपके कारण हम छोड़ कर जा रहे हैं /</span><span class="Apple-style-span" style="font-family: arial; font-size: 14px; line-height: 25px; "> यहाँ बड़ों का सम्मान नहीं किया जाता./</span><span class="Apple-style-span" style="font-family: arial; font-size: 14px; line-height: 25px; ">गाली </span><span class="Apple-style-span" style="font-family: arial; font-size: 14px; line-height: 25px; ">गलौज शुरू कर दी जाए ...आदि आदि ...</span><span class="Apple-style-span" style="font-family: arial; font-size: 14px; line-height: 25px; ">व्यंग्य या हंसी मजाक करने के आदि हैं तो उन्हें झेलने </span><span class="Apple-style-span" style="font-family: arial; font-size: 14px; line-height: 25px; ">का </span><span class="Apple-style-span" style="font-family: arial; font-size: 14px; line-height: 25px; ">माद्दा भी रखना चाहिए ! </span><span class="Apple-style-span" style="font-family: arial; font-size: 14px; line-height: 25px; ">मेरे विचार स्त्री और पुरुष दोनों के लिए समान ही होते हैं , सही मायनो में बिना जेंडर बायस्ड हुए!</span></div><div><span class="Apple-style-span" style="font-family: arial; font-size: 14px; line-height: 25px; "> मेरा मेल करने का कारण था कि आपने एक बार अस्वस्थ रहने की बात की थी ...और दो दिन तक आपने मेल का कोई जवाब नहीं दिया , और आज रचनाजी के बुलाते ही आप स्वस्थ हो गयी ! मैं फिर से कह रही हूँ कि आपके ब्लॉगिंग छोड़ जाने के कारण नहीं , आपकी अस्वस्थता से परेशान हुई हूँ मैं , क्योंकि इतनी इंसानियत मुझमे हमेशा रही है ...मैं दूसरों की बीमारी का जश्न नहीं मनाती !</span></div><span class="Apple-style-span" style="font-family: arial; font-size: 14px; line-height: 25px; "><div><div><br /></div></div></span></div>वाणी गीतhttp://www.blogger.com/profile/01846470925557893834noreply@blogger.com18