मंगलवार, 22 अप्रैल 2014

रोशनी है कि धुआँ..... (2)

सामान्य मध्यमवर्ग परिवार की तेजस्वी ने अवरोधों के बावजूद पत्रकारिता में रूचि बरकरार  रखते हुए मिडिया हाउस में अपना कार्य जारी रखा। शुरूआती गलतफहमी और संशय से  कार्य में व्यवधान भी कम नहीं रहे   ,  इन सबसे उबर कर तेजस्वी अब आगे बढ़ रही है  …… 

तेजस्वी के जादुई पिटारे नुमा बैग से कई चीजें निकलती जा रही थी , साडी , कुरता- पायजामा , कड़े , पर्स , सैंडिल , पत्रिकाएं।  साइड की पॉकेट से निकले प्लास्टिक के पाउच में मूंगफली के साथ  नमक , मिर्च, अमचूर , काला नमक का मिला जुला चूर्ण , एक और थैली में कुछ पेड़े भी थे , दूध को अच्छी तरह औंटा  कर बनाये , कुछ भूरे लाल से पेड़े भी।  

तुम्हे याद है  माँ ! उस गाँव के छोटे बस स्टैंड पर तुम जरुर ख़रीदा करती थी। 
हाँ , कैसे भूलूंगी।  रानी को भी बहुत पसंद थे , हॉस्टल जाते या लौटते अक्सर खरीद लेते थे।  आस पास की अन्य दुकानों से अलग बड़ी साफ़ सुथरी सी छोटी दूकान पर मूंगफली बेचता वह छोटा सा लड़का  जिसने कहा था , बहुत अच्छा पेड़ा है , तनी चख कर तो देखीं दीदी लोग , कही और से किनबे नहीं करेंगे। एक बार उसके कहने से लिए  हुए पेड़े हर बार की जरुरत हो गये थे और मूंगफली का साथ तो बस के सफ़र भर चलता रहता।

माँ की यह आदत शिक्षा पूरी होने से  , विवाह और उसके बाद बच्चों के बड़े होने तक भी बनी रही थी. उस बस स्टैंड से गुजरते तेजस्वी को याद आया था ।  वह जानती है माँ के भीतर बसी बैठी उस  लड़की को जिसे प्रसन्न करने के लिए बड़े महंगे तोहफों की जरुरत नहीं होती , और उसने शहर से खरीदी साडी , बैग , पुस्तकों के साथ इस गाँव  से पेड़े और मूंगफली भी खरीदी , खास नमक मिर्च के चूर्ण के साथ !

लगभग एक वर्ष बाद लौटी थी तेजस्वी अपने शहर। वायब्रेंट मीडिया  हॉउस अपना काम आगे बढ़ाते हुए विस्तारण प्रक्रिया में कुछ अन्य शहरों  में ऑफिस खोलना चाह्ती थी।  आलिया को जोनल हेड बना कर  भेजा जाना था।  आलिया को तेजस्वी की मनःस्थिति का आभास था इसलिए उसने उसे साथ काम करने का प्रस्ताव दिया।  माँ को  समझाना इतना आसान नहीं होता यदि वह स्वय उनका जन्मस्थान  नहीं  होता।  शहर से सटे हुए गाँव में ही उनका अपना घर था , माँ का घर , भाई -बहनों का घर , खेत खलिहान। शिक्षा के लिए गाँव से शहर पढ़ने आये भाई अब वहीँ सैटल हो गए थे। माँ को तसल्ली थी , मामा , मौसी , नानी का साथ रहेगा।
बीते एक वर्ष में वे भी उसके पास जाकर रह आयी थी , दो कमरों के उसके फ़्लैट में सब सामान जुटा कर।  भाई भाभी ने ऐतराज भी जताया कि क्या हमारे साथ नहीं रह सकती , इसका वजन हो जाएगा।  मगर व्यवहारकुशल माँ रिश्तों की बारीकियों से अनजान नहीं थी।  आखिर हार कर भाई ने अपने घर के पास ही एक फ़्लैट का एक हिस्से में उसके रहने का इतंजाम कर दिया।  माँ निश्चित थी , परिवार पास भी था और उनपर बोझ भी नहीं !
आलिया  के साथ तेजस्वी नए माहौल में कार्य करते हुए पुराने बुरे अनुभवों को भूल चुकी थी। शहर की विभिन्न समस्याओं और सामाजिक सरोकारों से जुड़े उसके कार्य और लेख उसकी पहचान बन गए थे। सरकारी हॉस्टलों में कामकाजी महिलाओं की परेशानियों ,  चाइल्ड शेल्टर में शोषण के शिकार नासमझ बच्चों  , सरकारी विद्यालयों में  शिक्षकों की अनुपस्थिति ,  मिड डे मील में घोटाले के साथ ही अपनी तनख्वाह का कुछ हिस्सा किसी और को देकर अपने स्थान पर पढ़ाने   भेजने जैसी कई सनसनीखेज रिपोर्ट पेश कर उसने अपने नाम और पेशे दोनों का ही एक रुतबा हासिल कर लिया था।   घटनाओं और समस्याओं की तह तक जाकर उनका विश्लेषण और निष्पक्ष निर्भीक विचारों की गूँज उसके अपने शहर तक भी कम नहीं थी। नाम और सम्मान  ओज की वृद्धि करते ही हैं , आत्मविश्वास भी बढ़ जाता है , अब तेजस्वी पूर्णतः आत्मनिर्भर आत्मविश्वासी हो चली थी। उसके अपने शहर में उसकी  जरुरत को महसूस करते हुए प्रमोशन के साथ उसकी नियुक्ति हेड ऑफिस में कर दी गयी और अपने पुराने ऑफिस में कार्य सँभालने हेतु ही पुनः लौटी थी अपने ही शहर में। 

फ्लैट की सीढियाँ चढ़ते उतरते  एक बार फिर मिसेज  वालिया से टकराई।  बहुत प्यार से गले ही लगा लिया उन्होंने , कैसी हो , बहुत नाम कमा लिया है तुमने तो और सर पर हाथ फेरते हुए आशीर्वादों की झड़ी लगा दी।  थोड़ी हैरानी हुई तेजस्वी को क्योंकि अब उनकी आवाज़ में तंज़ नहीं था , चेहरे पर पहली सी चमक भी नहीं थी।  घर आना कहते हुए जल्दी ही विदा भी हो ली।

तेजस्वी ने उनके इस असामान्य व्यवहार की चर्चा माँ से की तो माँ भी कुछ उदास हो गयी ," परेशान  है पिछले कुछ समय से।  सीमा पीछले 6  महीने से मायके में ही है , शायद उसके ससुराल में कोई समस्या है।  खुल कर बताया नहीं उन्होंने और ज्यादा पूछना जख्मों पर नमक छिड़कने जैसा लगता है , यही सोचकर ज्यादा जोर देकर पूछा भी नहीं। तुम चली जाना सीमा से मिलने , किसी से ज्यादा मिलती -जुलती नहीं।  हंसती खिलखिलाती लड़की बिलकुल मुरझा गयी है।  शायद तुम्हे कुछ बताये , तुमसे मिलकर अच्छा लगेगा उसे !

ओह ! हाँ , जरुर मिलूंगी सीमा से !
और जल्दी ही तेजस्वी को मौका भी मिल ही गया सीमा से मिलने का।  बिल्डिंग में गाडी पार्क करते सीमा नजर आ ही गई। बहुत थकी हुई लग  रही थी।
कैसी हो सीमा , तेजस्वी ने उसके कंधे पर हाथ रखा तो चौंकते हुए उसका चेहरा पीला पड़ गया। 
अच्छी हूँ , तुम कैसी हो।  माँ ने बताया कि तुम वापस यही आ गयी हो , अच्छा लगा ! 
दोनों साथ सीढियाँ चढ़ते हुए बाते करती जाती थी।  
उसके फ्लैट की बालकनी में मिसेज वालिया ने भी देखा दोनों को।  तेजी से दरवाजे के पास आते तेजस्वी को भी भीतर बुलाने लगी ,"  आओ  बेटा ,  चाय पीकर जाना। थकी मांदी लौटी हो दोनों साथ। 
सीमा की समस्या भी जान लेने की मंशा से उसने कहा , ठीक है आंटी , आप बनाये चाय।  मैं माँ को बताकर आती हूँ !
वापस लौटने तक चाय तैयार थी। सीमा उसे अपने कमरे में  ले आई।  एक अजीब सी उदासी ,सन्नाटा पसरा था दोनों के बीच।  सीमा के तन पर कोई सुहाग चिन्ह भी नहीं था , बस चुप सी बैठी रही दोनों। 
ख़ामोशी तोड़ते हुए तेजस्वी ने ही बात प्रारम्भ की ,   क्या कर रही हो आजकल , कुछ कमजोर भी हो गयी हो। 
कुछ ख़ास नहीं , प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी  में लगी हूँ। अभी कोचिंग से ही आ रही थी। 
और कैसे है सब ससुराल में , हमारे जीजाजी , तुम्हारी  सास ? थोडा झिझकते हुए उसने पूछा। 

अच्छे ही होंगे ! एक गहरी स्वांस लेती हुई सीमा की आवाज जैसे गहरे कुएं से आई !
मैं पिछले छह महीने से यही हूँ !

क्यों ? सब ठीक तो है ,  ससुराल में पढ़ाई नहीं  हो पाती होगी।
कह तो दिया उसने , मगर साथ ही उसे स्मरण हुआ कि विवाह से पहले गदगद होते मिसेज वालिया ने बताया था कि   उसकी सास ने  कहा है कि बेटी जैसे मायके में पढ़ती है ,वैसी ही यहाँ भी रहेगी।  बेटे का साथ इसका भी टिफिन बना दिया करुँगी!

सीमा ने कुछ कहा नहीं।  एक फीकी - सी मुस्कान उसके चेहरे पर आकर तेजी से विलुप्त हो गयी।
कई बार मन की उथलपुथल को व्यक्त करने में शब्दों की आवश्यकता  नहीं होती।  बस किसी के साथ  यूँ ही खामोश गुजारे दो लम्हे  भी दुख को आधा बाँट लेते हैं। बल्कि कई बार दुःख की तीव्रता से घबराये लोग भाग निकलना चाहते हैं अपनों से , अपनों की आँखों में उठने वाले सवालों से और अपनों से बचते-बचाते अपने गमो का पिटारा किसी अजनबी के सामने खोल आते हैं।

तेजस्वी समझ सकती थी सीमा की मनःस्थिति को  , विश्वास की धरती के पैरों के नीचे  से खिसकने की पीड़ा को।  चोट खाया विस्मित मन छटपटाता है मन ही मन , हमसे गलती हुई कैसे किसी को समझने में।  उसने  सीमा का हाथ अपने हाथ में ले लिया  था। सीमा के सख्त  होते चेहरे पर कुछ बूँदें लुढक गयी आंसुओं की , जैसे चट्टान की ओट में  रुका हुआ कोई सोता फूट पड़ने को तैयार हो।


धीमी सिसकियाँ आह भरे तेज रुदन में बदलते देर नहीं लगी . तेजस्वी  पास बैठी बस पीठ सहलाती रही , उसने सीमा को चुप करने का प्रयास भी नहीं किया . भीतर जमे दर्द को तेज हिचकोलों की जरुरत थी बहकर निकल जाने को वरना  जाने कब तक दबा बैठा धीमे रिसता धमनियों को सख्त करता रहता. मिसेज वालिया एक बार कमरे में आई भी मगर तेजस्वी  ने चुप रहने का इशारा करते हुए बाहर जाने को कहा . वापस पानी के गिलास  और चाय के साथ लौटी , तब तक सीमा का गुबार भी कुछ शांत हो गया था . तेजस्वी ने पानी का गिलास उठाकर दिया उसे , धीमी चुस्कियों में पानी पीकर रखते सीमा का चेहरा और धड़कन भी सामान्य हो चुकी थी . तेजस्विनी की ओर देख  उसने धीमे से सौरी कहा , दुपट्टे से आंसू पोंछते आँखों के किनारे और नाक भी सुर्ख लाल सी हो उठी थी . चाय की चुस्कियों के बीच संयत होती सीमा ने विवाह के बाद के सुनहरे दिनों के बदरंग होते पलों की दास्तान बयान की तो तेजस्वी  हैरान हो गयी .

विवाह के बाद ससुराल में सबने उसे हाथो- हाथ लिया था ,  सभी रस्में बहुत उल्लास और शालीनता से निभाई गयी थी . चूँकि सास और ससुर से सगाई और विवाह की तैयारियों के दौरान कई बार मिल चुकी थी , इसलिए उनके बीच नए घर में उसे कुछ  अजनबीपन नहीं लग रहा था.वह भी अपने आप को खुशकिस्मत समझ रही थी इस परिवार का सदस्य बन कर . मगर सौरभ से उसका अधिक परिचय नहीं हो पाया था . देखने दिखाने की रस्म के समय भी उसके माता- पिता ही साथ थे , मगर संकोचवश सीमा ने अकेले में मिलने की इच्छा  जताना उचित नहीं समझा वही सौरभ ने कहा दिया कि माँ पिता जी को पसंद है , इसलिए मुझे भी पसंद है . अलग से बात करने की कोशिश भी नहीं की गयी .सगाई की रस्म के समय भी दोनों के बीच औपचारिक बात चीत ही हो पाई , एक दो बार उसकी रिश्ते की छोटी बहन या सहेलियों ने फोन मिलाकर बात करने की कोशिश की तो कभी उधर से सौरभ स्वयं तो कभी उसका  नंबर व्यस्त आता मिला. शक सुबह की गुन्जईश इसलिए नहीं रही कि उसके सास ससुर अक्सर फोन पर बाते करते या मिलने आते . उसके ससुर कई बार अकेले भी मिलने चले आते. सुसंस्कृत मृदु व्यव्हार युक्त अच्छे परिवार  के गुणों से प्रभावित होकर इस ओर ध्यान ही नहीं दिया गया कि सौरभ कभी सीमा से स्वयं बात करने का इच्छुक नहीं रहा .

तेजस्वी  के मन में ख्याल आया कि भारतीय पारम्परिक विवाह की कितनी अजीब परम्परा है कि जिसके साथ पूरा जीवन बिताना है बस वही अजनबी रहे  . कही पढ़ा हुआ भी याद आया उसे कि अजनबी लड़कों से बात न करो , मगर शादी कर लो . स्मित मुस्कराहट उसके चेहरे पर आकर लौट गयी , वह गंभीरता से सीमा की बातें सुनने लगी .
हालाँकि विवाह की रस्मों के दौरान उसकी भोली प्यारी मुस्कान और हलकी फुलकी छेड़छाड़ ने सीमा को गुदगुदाए रखा , सुदर्शन हंसमुख सा पति , हर पल ख्याल रखने वाला परिवार और सबसे बढ़कर उसके हर पल की चिंता रखने वाले उसके शवसुर . सीमा का मन अपने भाग्य पर इतराने को करता क्योंकि सामान्य हिंद्स्तानी कन्याओं की ही तरह विवाह और अच्छे परिवार से इतर कुछ अपने लिए उसने न सोचा था , न ही उसे प्रेरित किया गया था . शिक्षा का मकसद तो विवाह के लिए अच्छा लड़का मिलने पर ही पूर्ण मान लिया गया था , उनकी इच्छा हो तो आगे पढ़ायें ,नौकरी करवाएं वर्ना घर गृहस्थी संभाले ! हालाँकि सीमा के सास ससुर का वादा था उसकी शिक्षा पूरी करवाने का . पगफेरे पर मायके जाकर एक दिन रह भी आई सीमा , बेटी का प्रफुल्लित चेहरा मिसेज वालिया के चेहरे की रंगत को बढ़ा गया था , बड़ी ख़ुशी और उत्साह  के साथ बेटी के ससुराल से आये तोहफे , जेवर , कपडे आदि दिखाती फूली न समाती थी .
विवाह की सभी रस्मों के बाद मेहमान लौटने लगे . विवाह की गहमागहमी और रिश्तेदारों से गुलजार घर कुछ सूना सा होने लगा , सौरभ को भी अपनी नौकरी के लिए जाना पड़ा , एक सप्ताह की ड्यूटी के बाद पुनः छुट्टी लेकर आने का वादा कर जाने की तैयारी करता रहा  , मगर सीमा ने महसूस किया इन दिनों में कि कई बार वह अकेले में बैठा घंटे तक कुछ सोचता ही रहता था या कभी लेटा रहता चुपचाप बस छत को निहारते , उस समय सासू माँ उसे किसी बहाने से अपने पास बुला लेती कि उसे आराम कर लेने दिया जाए , शादी व्याह के काम काज में बहुत थक गया है , तब वे सीमा को अपने पास बिठाकर उससे ढेरों बाते करती वह स्कूल में कैसी थी , बचपन में क्या करती थे , उसकी पढाई के बारे में . सीमा सोचती रहती कि कितने अच्छे हैं सब लोग उसे बिलकुल अकेला नहीं रहने देते .
श्वसुर  हमेशा उसके आस- पास ही मंडराते रहते .  सौरभ के  चले जाने के बाद तो घर उसे बहुत सूना सा लगा कुछ पल के लिए मगर श्वसुर उसका बहुत ध्यान रखते , उसके लिए नाश्ते की प्लेट , मिठाई का प्याला लिए उसके कमरे में ही चले आते , तेरी सास को करने दे कुछ काम , हम दोनों खायेंगे साथ  . कभी उसके कमरे में टीवी ऑन कर बैठ जाते , साथ पिक्चर देखते हैं , सीमा को थोडा संकोच होता , कई बार वह उठकर सास के पास चली जाती मगर वे उन्हें वापस अपने कमरे में भेज देती कि अभी तो वह नई बहू  है , घर के कामकाज के लिये परेशां होने की जरुरत नहीं . ज्यादा कुछ कहते उसे डर लगता कि कही वे बुरा न मान जाए .
एक दो दिन में उसके माता पिता मिलने आये और दामाद के आने तक  अपने साथ मायके ले जाने की अनुमति मांग बैठे , कुछ दिनों में उसकी क्लासेज भी शुरू होने वाली थी ,. सीमा के सास श्वसुर  ने  आदर सत्कार से उनकी मेहमानवाजी की . साथ ही यह भी कह बैठे कि आप तो हमारे घर की रौनक ले जाना चाहते हो , आपके पास रह ली इतने वर्षों , अब यही रहने दो . मगर मिसेज वालिया के बहुत इसरार करने पर आखिर एक सप्ताह के लिए सीमा को मायके भेजने के लिए राजी हुए . मायके लौटी सीमा अपनी आवभगत में डूबी सौरभ के फोन का इन्तजार करती .  एक दो बार उसके माता -पिता ने कहा भी कि दामाद जी का फोन आये तो उनसे बात करवा देना, उनसे कभी अच्छी तरह बात ही नहीं हो पाई  . मगर वह कभी फोन नहीं करता . सीमा ही मिला लेती कभी उसे फ़ोन तो बहुत कम ही बात कर पाता . सीमा को संकोच होता कि क्या कहे वह माता -पिता को , कई बार बहाना लगा लेती कि उन्होंने फोन किया था , आप पड़ोस में थी , आप सो रहे थे , आप घर पर नहीं थे . आखिर एक दिन उसकी सास का फोन आने पर मिसेज वालिया ने कह ही दिया कि दामाद जी से तो कभी बात ही नहीं हो पाती , हमेशा जल्दी में फोन करते हैं . उसकी सास ने कह बैठी , बेचारा बहुत व्यस्त है , ऑफिस की नई जिम्मेदारी , और वहां कोई और है भी नहीं सब काम उसे ही करना पड़ता है , स्वभाव से ही संकोची है !
उसी शाम  फोन आया सौरभ का सीमा के पास , सीमा से औपचारिक बातचीत के बाद उसने उसके माता- पिता से भी बात की , माफ़ी मांगते हुए कि व्यस्तता के कारण वह अब तक उनसे बात नहीं कर सकता था ! एक सप्ताह में उसके सास- ससुर एक साथ और अकेले ससुर दो बार चक्कर काट गए थे कि हमारा तो मन ही नहीं लगता इसके बिना. मिसेज वालिया बेटी के भाग्य पर  ख़ुशी से फूली न समाती . सौरभ के लौटने पर ही सीमा भी लौटी ससुराल नवदाम्पत्य के मद में सिहरन भरी सकुचाहट में शरमाई सी .

मगर इस बार घर की दीवारों में अजब- सी ख़ामोशी सूनापन- सा था ,  इस समय घर में सिर्फ चार प्राणी होने के कारण ही नीरवता का अहसास हुआ , यही सोचा सीमा ने .  सास- श्वसुर को अपने दफ्तर के लिए विदा करती घर में सौरभ के साथ अकेले रहने से रोमांचित होती रही मगर उसका उत्साह अलसाये से पड़े चुपचाप छत निहारते सौरभ को देख विदा हो लिया .
वह घबरा गयी , आपका स्वास्थ्य तो ठीक है , हाथ से सर छू कर देखा उसने मगर तापमान सामान्य देख उसे राहत मिली .  दिन भर बिस्तर पर लेते उसकी बातों का हाँ हूँ में जवाब देता देख सीमा ने सफ़र और कार्य की थकान को ही कारण समझा . विवाह की रस्मों के तुरंत बाद नए दफ्तर की जिम्मेदारी , वह तो कुछ दिन मायके में बेफिक्री में बिता आई थी मगर सौरभ को आराम मिला ही नहीं ,सोचते हुए उसने सौरभ को डिस्टर्ब नहीं किया ., शाम को कुछ समय बाहर गया सौरभ , लौटकर थोड़ी देर उसका मूड अच्छा रहा  , सबने साथ खाना खाया .सौरभ अपने  कमरे में जाकर लेट गया .  सीमा रसोई का काम निपटाकर आई  तो उसने सौरभ को नींद की आगोश में डूबा पाया . सास श्वसुर अपने कमरे में चले गए वह देर रात  तक टीवी देखती सो गई  . मगर जब अगले कई दिनों सौरभ का वही रूटीन रहा तो सीमा के मन में शंका होने लगी . उसे समझ नहीं आया कि वह क्या कहे , क्या करे . माँ का फोन आता तो शुरू में सब ठीक होने की बात कह बहाना बना देती , बताती तो तब जब उसे इस अजीबोगरीब व्यवहार पर कुछ समझ में आता  और जब उसे समझ आया तो उसके क़दमों के नीचे की जमीन ही गुम हो गयी जैसे . सौरभ नशे का आदी था,  नशे में दिन भर पड़े रहना और शाम को बाहर नशे का इंतजाम करने जाना उसकी दिनचर्या थी .वह स्तब्ध खामोश हो गयी थी . कैसे करे वह उसकी इस लत का सामना , किसे कहे , किसे बताये . सास को बताना चाहा तो मगर वह शायद पहले से ही जानती थी . प्रकट में सिर्फ यही कहा उन्होंने कि पढाई इतनी मुश्किल होती है कि बच्चे दबाव को सहन नहीं कर पाते , इसलिए कभी कर लेते हैं नशा . इस तर्क ने उसे क्षुब्ध कर दिया , वह भी तो यही पढाई कर रही है , उसे तो कभी जरुरत महसूस नहीं हुई किसी नशे की . यहाँ परिवार समाज का दबाव है तो यह हाल है , नौकरी पर क्या करता होगा ! यह ख्याल उसे परेशान करता रहा . दूसरी ओर उसके कॉलेज में नए सेमेस्टर की क्लासेज भी शुरू हो गयी थी , सास से इजाजत मांगनी चाही तो टाल देती , अभी नयी शादी है , अभी से क्या कॉलेज पढाई , साथ समय बिताओ , एक दूसरे को समझो जब तक छुट्टी पर है . समझती क्या ख़ाक वह जब शब्दों , मन अथवा स्पर्श का आदान प्रदान होता तब तो . मन मार कर सीमा उसकी पोस्टिंग पर जाने का इन्तजार करने लगी . आखिर पंद्रह दिन की छुट्टी बिताकर जब वह पुनः  लौट गया तो सीमा कॉलेज जाने की तैयारी में लग गयी , कॉलेज में पढाई और साथियों के बीच उसका मन फिर भी रमा रहता मगर घर लौट कर वही घुटन उसे तोड़ जाती , मायके भी हो आती बीच में, सबके साथ हंसती मुस्कुराती  मगर उसने सौरभ के व्यवहार के बारे में कभी किसी से बात नहीं की .
श्वसुर का व्यवहार उसके प्रति अभी भी अत्यंत प्रेमपूर्ण था . एक दोपहर जब वह कॉलेज से घर लौटी तो श्वसुर घर पर ही मिले , सास दफ्तर में ही थी . वह इस समय उन्हें घर पर देखकर चौंकी जरुर ,
सीमा के पूछने पर कहा उन्होंने , कुछ नहीं, थोडा सर में दर्द था , आराम कर लूं यही सोचकर घर लौट आया. वह चाय का कप तैयार कर ले आई थी .  मुड़ी ही थी कि पीछे से आवाज लगा कर उन्होंने बाम की डिब्बी लाने को कहा . बाम ले आई तो सर पर मल देने का इसरार कर बैठे . कई बार पिता के सर में दर्द होने पर भी लगाया ही था बाम , ममता से भरी उसने धीमे बाम मलना शुरू किया , थोड़ी देर बाद उन्होंने सीमा के  हाथ की अंगुलियाँ जोर से थाम ली . घबरा गई सीमा  , भौंचक धीमे से हाथ छुड़ा कर वह कमरे से बाहर आ गयी.





तेजस्वी के जेहन में कौंधी माँ की शंका जो उन्होंने सीमा की सगाई के समय व्यक्त की थी ," तुम्हे सीमा के ससुर का स्वभाव कैसा लगा ". सीमा कहते हुए कुछ देर के लिए रुकी थी और तेजस्वी सोच रही थी ये माताएं सचमुच अंतर्ज्ञानी होती है . बचपन में उनसे छिप कर की जाने वाली शरारतें भी वे झट से ताड़ लेती थी , किचन में से आवाज लगा लेती , तुम लोग सोफे पर क्यों उछल रहे हो , दूध का वेशिन में उड़ेल दिया न . बच्चे हर बार हैरान हो जाते , माँ , आप एक साथ क्या- क्या कर लेती हो , आपको सब कैसे पता चल जाता है . ममता से भरी माँ मुस्कुराती , बच्चों के जन्म के समय ईश्वर माँ की पीठ पर भी आँख उगा देते हैं और चार अदृश्य हाथ भी देते हैं . कुछ भी शरारत करते उन्हें याद रहता कि  माँ की पीठ पर लगी आँखें उन्हें देख रही है .

सीमा की आवाज जैसे किसी अंधे कुंए से आ रही थी . उसे ससुराल में अजीब सा भय लगने लगा था हालाँकि वह अपने आप को समझाती कि कही उसका भ्रम तो नहीं रहा , कही उनके स्नेह को उसने गलत अर्थ तो नहीं दिया.  यदि ऐसा हुआ तो कितना बड़ा पाप अपने सर पर ले रही है वह , हर समय कशमकश अथवा अपराधबोध  में घिरी रहती .. एक दिन बेडरूम से अटैच्ड बाथरूम से बाहर निकल बेध्यानी में साड़ी पहनते जब उसकी नजर दरवाजे पर गयी तो उढ़के दरवाजे के पास एक साया सा नजर आया . वह धीमे चलते कमरे से निकल कर किचन तक आई तो फ्रिज में ठन्डे पानी की बोतल निकलते उसके ससुर सास से चाय बनाने की फरमाईश करते नजर आये . वह घबराई पसीने से भरी उलटे पैरों  कमरे तक पहुंची और अनुमान लगाती रही कि उसके कमरे के सामने से होकर रसोई तक जाने में कितना समय लगता लगेगा!

 एक बार फिर उसने डरते हुए भी  स्वयम को धिक्कारा , नहीं , इस तरह की शंका फिजूल है . मगर मन में बैठे भय ने कमरे में रहते उसे दरवाजे की सांकल बंद रखने को मजबूर कर दिया , यदि दरवाजा खुला रहता तो हर समय सावधान रहने की उसकी कोशिश न उसे सोने देती , न ही किसी काम में मन लगा पाती . अपने मन की शंका को अपने साये तक से भी छिपा कर रखना और अपनी संभावित गलत दृष्टि के अपराधबोध  और चिंता में डूबे उसका स्वास्थ्य गिरता जाता था . आँखों के नीचे काले घेरे होने लगे . सीमा अपनी स्थिति का बयान किसी से नही कर सकती थी . घर में काम करते हर समय घबराए ,चौकस रहते उससे काम में गलतियाँ होती जाती , कभी कप गिलास टूट जांते, रसोई से डायनिंग टेबल तक लाते खाने के डोंगे गिर जाते , डोर बेल बजने पर हर प्रकार से निश्चिन्त होने पर ही खोलने की उसकी आदत , घर में अकेले न  रहने का इसरार , सास अब उससे नाराज रहने लगी थी .
छुट्टियों में कुछ दिनों के लिए सौरभ के घर आने से उसे कुछ राहत मिली क्योंकि वह ज्यादा समय घर में ही बिताता था. इस बार उसके व्यवहार में कुछ परिवर्तन भी था , देर से सही , कुछ खुशियाँ उसके हिस्से में आई तो . मगर जब छुट्टियों के बाद वह वापस काम पर जाने लगा तो सीमा ने उसके अच्छे मूड को ध्यान में रख कर अपनी पढाई मायके में रहकर पूरी करने की इच्छा प्रकट कर दी .
सौरभ इस पर सहमत नहीं था . उसके जाने के बाद मम्मी पापा के अकेले रह जाने की चिंता के साथ ही उनके बुरे मान जाने का भय भी था ,  फिर भी कुछ दिनों के अंतराल पर मायके आने जाने और रहने की स्वीकृति देते हुए उसने अपने माता पिता को भी सूचित किया . सास यह सुनकर थोड़ी नाराज हुई , क्या तकलीफ है यहाँ इसे , अपना कमरा , अपना घर , कोई पाबंदी नहीं . लोग सवाल भी करेंगे , मगर सौरभ ने नई ब्याहता पत्नी के बिगड़ते स्वास्थ्य और अनुरोध की लाज रखते हुए माँ को मना ही लिया . सौरभ के जाने के बाद कुछ दिनों के लिए सीमा मायके रह आई . दाम्पत्य प्रेम की आभा, दुश्चिंताओं से मुक्ति और आराम , उसके चेहरे पर पुरानी रंगत लौट आने लगी थी .
एक सप्ताह बात पुनः लौटी ससुराल तो सास ,ससुर दोनों ही चहक उठे .
सुनती हो , इसकी नजर उतार देना , और खूबसूरत हो आई हमारी बहू तो , उसके ससुर अपनी पत्नी को सम्बोधित कर रहे थे. सास स्नेह से मुस्कुराई  मगर सीमा के चेहरे पर भय और सकुचाहट एक साथ उजागर हो आई .
दुश्चिंता और शक एक बार मन में घर कर जाए तो .व्यक्ति की सोच घडी की सूई की उलटी दिशा में चल देती है , हर कथन अथवा कार्य अपने विपरीत अर्थ में भाषित हो मानसिक कष्ट देता प्रतीत होता है . कही दोष उसकी सोच का ही हो , सीमा स्वयं को यह समझा साहस बटोर लाती .
एक बरसात के दिन सीमा कॉलेज से लौटी . रेनकोट और हेलमेट ने उसे पूरा गीला होने से तो बचा लिया था मगर फुहार ने मन का मौसम सीला कर दिया था . अपनी मस्ती में गुनगुनाते अपने कमरे की ओर बढ़ते उसके कदम ठिठक से गए .
आज फिर उसके श्वसुर घर पर ही थे . झिझकते हुए उसने पूछ ही लिया , आप अभी घर पर कैसे . ऑफिस के काम से शहर से बाहर जाना है , पैकिंग के लिए जल्दी आना पड़ा . तुम थोड़ी देर आराम कर लो , फिर मदद कर देना .
मदद के नाम से सीमा की सिट्टी पिट्टी गुम थी . वह कमरे में गयी और तेजी से दरवाजा बंद कर लिया  . गीले कपडे तक बदलने की इच्छा नहीं हुई उसकी . घबराई सी बैठी थी वह कि कब वे उसे पुकार ले , क्या कहकर वह कमरे से बाहर आने से मना करेगी , यही सोचती डरती सिमटी बैठी रही . कुछ देर में अपने दरवाजे पर खटखट की आवाज़ से तीव्र हुई उसकी धडकनों के कारण पैरों तक ने जैसे उसका साथ छोड़ दिया . उसने दबे पाँव दरवाजे और खिड़की की सांकल अच्छी तरह चेक की और आँखें बंद कर लेटने का नाटक करने लगी . एक दो बार की खटखट के बाद दरवाजे पर आहट बंद हो गयी और सोने का नाटक करते जाने उसकी आँख कब लग गयी, उसे पता ही नहीं चला  .
नींद खुलने पर उसने देखा खिड़की से बाहर ,शाम का धुंधलका छाने लगा था . ओह , कितनी देर सोती ही रह गयी , साथ ही उसे अपना भय भी फिर से याद आने लगा .
नींद भी क्या अजब शै है. बड़े से बड़ा दुःख और भय नींद में महसूस नहीं होते , ऐसे समय में नींद आ जाना राहत देता है तन मन दोनों को , दुःख के हाथो कलेजे फटने से रह जाते है उनके जिन्हें नींद आ सकती हो , चिंता , आशंकाओ से घिरे भी नींद आ ही जाती है , मानव प्रजाति के लिए प्रकृति की यह महत्वपूर्ण देन है .

धीमे से द्वार खोल देखा उसने , किचन से खटर पटर आती आवाज ने उसे आश्वस्त किया कि सासू माँ लौट आई थी घर . कॉलेज से आकर भूखे ही सो गयी थी , भूख भी सताने लगी थी अब उसे , वह रसोई की ओर बढ़ गयी . सास के चेहरे पर नाराजगी साफ़ झलक रही थी , ऐसे भी क्या घोड़े बेच कर सोना आता है तुम्हे , घर में कोई आये कोई जाए , किसी से कोई मतलब नहीं . पापा ने कहा भी था मदद करने को मगर तुम अनसुनी कर जाकर सो गयी , ये क्या तरीका है . क्या कर रही थी तुम इतनी देर !
मुझे अकेले घर में डर लगता है .
अकेले कहाँ थी तुम , तुम्हारे ससुर थे न घर में . और अपने घर में किससे डर लगता है ! तुम्हे अपने मायके में डर नहीं लगता था कभी !
वह आगे कुछ न कह सकी , बस पैर से जमीन कुरेदती सी चुपचाप खड़ी रही . उन्होंने सीमा से यह पूछना भी उचित नहीं समझा कि उसने खाना खाया या नहीं . पेट में कुलबुलाते चूहों की अनदेखी कर वह रसोई में सास का हाथ बंटाने लगी . मगर अच्छा यह रहा कि दो तीन दिन के लिए उसे भय से राहत मिल गयी थी .

सप्ताहांत का दिन उसके लिए मनहूस होने वाला था, उसने सोचा नहीं होगा . कॉलेज से लौटी ड्राइंगरूम में टीवी देखते सोफे पर ही  लेटी सीमा को नींद आ गयी थी . मेनगेट का दरवाजा कब खुला , कौन अन्दर दाखिल हुआ उसे कुछ खबर ही नहीं रही . गालों पर कुछ सरसराहट से चौंक कर उसकी नींद खुली तो स्तब्ध सीमा को कुछ सोचने में भी वक्त लगा . सोफे पर उसके करीब कोई बैठा था जिसकी गोद में उसका सर था. घबराकर तेजी से उठते हुए वह स्वयं से बहुत नाराज थी , इतनी निश्चिंतता से वह सो कैसे सकती थी . स्थिति समझ में आते ही अपना आपा खोकर उसकी चीख निकल पड़ी  , आप यहाँ क्या कर रहे हैं , दरवाजा बंद था,  भीतर कैसे आये .
चाबी थी मेरे पास , बेल की आवाज पर किसी ने दरवाजा नहीं खोला तो लॉक खोलकर अन्दर आ गया , मगर तुम इतना घबरा क्यों गयी . तुम्हे सोते देख उठाना उचित नहीं समझा . तुम आराम करो .
अपना बैग उठाकर वे अन्दर चले गए. मगर सीमा के लिए अब इस स्थिति में उस घर में अकेले रहना संभव नहीं था . हर समय भय के साये में रहना उसे मानसिक रूप से थका रहा था . उसी शाम सौरभ भी लौटा . मगर सीमा को समझ नहीं आ रहा था कि किस प्रकार वह अपना भय सौरभ के आगे प्रकट करे . यदि उनसे उस पर विश्वास नहीं किया , यदि उसका भय भी बेबुनियाद रहा , भ्रम रहा हो तो वह स्वयं से कैसे नजरें मिलाएगी . मन को मजबूत कर उसने सिर्फ सौरभ से अपने मायके में या उसके साथ ही जाने की बात की तो सौरभ का सौम्य दिखने वाला चेहरा गुस्से से तमतमा उठा .
क्या मतलब है तुम्हारा , क्यों जाना है तुम्हे मायके रहने या मेरे साथ . यही रहना होगा तुम्हे मेरे मम्मी पापा के साथ . क्या परेशानी है तुम्हे यहाँ ! सौरभ के तेज चीखने की आवाज सुन उसके माता पिता भी वहीँ आ गए थे . एकांत में कही अपनी बात  पर तेज चीख कर हंगामा करते देख सीमा अपमान और ग्लानि से भर  उठी .
क्या बात है सौरभ , इतना क्यों चीख रहे हो , क्या हुआ .
कुछ नहीं माँ , ये अपने मायके रहना चाहती है या मेरे साथ .
सौरभ की माँ को बुरा लगाना स्वाभाविक था . थोड़ी नाराजगी भरे शब्दों में वे बोली ,  घर में कुल तीन प्राणी है , काम का कोई दबाव नहीं है , कॉलेज जाने की छूट है , पूछो इससे ये फिर भी ये ऐसा चाहती है .
हाँ , बताओ क्या परेशानी है तुम्हे यहाँ . क्या कहती सीमा.
परेशानी कुछ नहीं है  , मैं आपके साथ रहना चाहती हूँ.

सौरभ की माँ दुःख और क्षोभ में भर उठी , इतने चाव से बहू लेकर आये थे , मगर पता नहीं था कि उसे हमारी आवश्यकता नहीं , वह हमारे साथ नहीं रहना चाहेगी . कुछ महीनो की ही गृहस्थी हुई है अभी और इनके अलग रहने के ख्वाब जाग उठे हैं . उनकी आँखों से बहते आंसूं ने सीमा को अपराधबोध से भर दिया . विवाह से पहले सौरभ के माता- पिता के व्यवहार से प्रभावित सीमा ने कभी कल्पना भी नहीं की थी कि उसे इन परिस्थितियों का सामना करना होगा . अपने छोटे से घर में अपने पति और उसके माता -पिता के साथ रह उनकी खुशियों और दुखों को जीना और साझा करना ही ध्येय समझा था उसने . मगर अब हर समय इस भय के साये में सौरभ के बिना उसका उस घर में रहना असंभव था . सौरभ के मना करने के बावजूद उसके जाने के बाद अपना बैग उठाकर वह मायके चली आई थी . सौरभ को यह पता चला तो वह सीमा को फ़ोन कर उसने अपनी नाराजगी प्रकट की  और कभी घर वापस न लौटने का फरमान सुना दिया था .
उधर सौरभ बहुराष्ट्रीय कम्पनी में कार्य करने के प्रयास में अंततः दुबई में नौकरी मिल गयी थी . दुबई जाने की तैयारियों के लिए हालंकि वह कुछ दिन के लिए अपने शहर आया मगर सीमा से मिलने या उसको बुलाने की कोई कोशिश नहीं की . सीमा को इस खबर का पता उसके किसी मित्र से तब पता चला जब वह दुबई जा चुका था .
सौरभ के बिना उसे ससुराल जाना मंजूर नहीं था और उसके दुबई चले जाने के बाद वैसे भी उसके रास्ते बंद हो चुके थे . मिसेज वालिया ने सीमा को समझाने की बहुत कोशिश की कि उसे ससुराल में रहना चाहिए , अपने सास ससुर के साथ , मगर सीमा के लिए नहीं जाने का कारण बताना इतना आसान नहीं था . बेटी की जिद के आगे मजबूर उन्होंने एक दो बार उसके सास ससुर से मिलकर बात करने की कोशिश की , मगर वे इसे पति -पत्नी के बीच का मामला बताकर दूर हो गए . अब जो भी बातचीत हो सकती थी , वह सौरभ के दुबई से लौटने पर ही संभव थी . सौरभ के लौटने का इन्तजार करते सीमा ने अपनी पढाई पर पूरा ध्यान केन्द्रित किया ,  फाइनल सेमेस्टर की तैयारी में उसने रात दिन एक कर दिए .

(मध्यम वर्ग में पली बढ़ी तेजस्वी अपने तेज के दम पर ही आगे बढती आयी है , कार्यालय की मुसीबतों से लड़ कर विजयी होते इस बार उसने लडाई लड़ी अपनी सखी के लिए , साथ ही उस स्त्री के लिएभी  , जिसने बेटी के रूप में लड़कियों को ताना या निपटा दी जाने वाली जिम्मेदारी ही समझा था . )

मिसेज वालिया ने बेटी के दिन पर दिन पीले पड़ते चेहरे और खाना खाने की इच्छा नहीं होने को बिगड़ते रिश्ते के कारण तनाव और पढाई के साथ कॉलेज की भागदौड़ ही समझा था , मगर एक दिन जब कॉलेज से लौट कर बेहद थकान के साथ सीमा ने खाया पीया सब उलट दिया तो उन्हें चिंता होने लगी थी उसके स्वास्थ्य की भी . लेडी डॉक्टर ने बधाई के साथ जो सूचना दी , उसने एकबारगी उन्हें खुश भी किया था , शायद आने वाले बच्चे की ख़ुशी में परिवार के मतभेद सुलझ सके , मगर सीमा और अधिक चिंतित हो गयी थी . मिसेज वालिया यह खुशखबरी लेकर सीमा के ससुराल पहुंची तो उनके आश्चर्य का ठिकाना नहीं था , सौरभ घर पर ही मौजूद था , वह दुबई से अपनी नौकरी छोड़ कर आ चूका था . उसके माता पिता ने बहुत अधिक प्रसन्नता न जाहिर करते हुए भी वे सीमा को अपने घर छोड़ जाने की ख्वाहिश प्रकट की , मगर सौरभ ने इस पर कुछ नहीं कहा और वहां से उठकर चला गया . उसी शाम  सीमा के फोन पर सौरभ का फोन आया तो जो थोड़ी बहुत उम्मीद बची थी , वह भी टूट गयी . नशे में फोन पर ही भारी गालीगगलौज करते हुए उसके चरित्र पर अंगुली उठाते सौरभ का यह रूप इससे पहले सीमा ने नहीं देखा था . सौरभ का यह रुख देखते सीमा तय नहीं कर पा रही थी कि वह आगे क्या करेगी , उसकी पढाई , करिअर , जीवन सब अधरझूल में था . अँधेरे आंसुओं में डूबते एक रात पेट में उठे भीषण दर्द ने उसे अस्पताल पहुंचा दिया , आने वाली जिंदगी ने खुद अपना रास्ता तलाश कर लिया था , उसने मुक्त कर दिया सीमा को. यह खबर जब सीमा के के ससुराल पहुंची तो तीनो प्राणी चीख पुकार उठे कि उनके खानदान के वारिस को जानबूझकर इस दुनिया में आने नहीं दिया गया . सीमा और उसके माता पिता हैरान थे कि कल तक जिस बच्चे को स्वीकार ही नहीं किया जा रहा था , वह इतना अजीज हो गया आज कि उसके न होने का कारण भी सीमा के मत्थे ही मंड दिया गया . मगर सीमा के लिए मुश्किलें यही समाप्त नहीं होने वाली थी , हॉस्पिटल से घर पहुँचते उसके सामने कानूनी नोटिस था जिसके अनुसार वह घर के कीमती जेवर और रुपयों के साथ लापता थी . उस नोटिस का जवाब देने के लिए वकील से मिलने जुलने का दौर चल रहा था इन दिनों !गहरी सांस लेकर सीमा ने अपनी कहानी समाप्त की .  उत्पीडन और शोषण के अनेकानेक केस से रूबरू होने के बाद भी तेजस्वी को इस मामले में कुछ कहना सूझा नहीं . खिड़की से बाहर देखा उसने , बाहर घिरता अँधेरा उसके दिल में घर करने लगा था जैसे मगर  अपनी सखी से सब कहकर सीमा का मन हल्का हो गया था .  अब वह बहुत संयमित लग रही थी .
चलती हूँ अब , बहुत रात हो गई सी दिखती है .
सॉरी , यार . तुम दिन भर से थकी मांदी लौटी थी , अपना दुखड़ा रोने में मैंने यह ध्यान ही नहीं रखा .
कोई बात नहीं  , मुझे अच्छा लगा कि मैं तुम्हारे लिए इतनी विश्वसनीय हूँ कि तुम बेहिचक सब कह सकी . चिंता मत करो , सब ठीक ही होगा . अपनी परीक्षा की तैयारी अच्छी तरह करो , कुछ मदद चाहती हो तो भी कहना .
अवश्य ही , खाना खा लो बेटा. मिसेज वालिया उसे बड़े स्नेह से कह रही थी . उनके शब्दों की आर्द्रता ने छुआ तेजस्वी के मन का कोई कोना , बीत कुछ वर्षों की कडवाहट जो उसने कभी जाहिर नहीं की थी , घुल कर बह गयी जैसे उसमे .
नहीं आंटी , माँ इन्तजार करती होंगी . आप सीमा का ख्याल रखिये . मैं अभी चलती हूँ ....स्नेह से भरी तेजस्वी  ने जवाब दिया और दरवाजा खोल कर बाहर निकल आई . माँ-पिता और भाई बहन खाने पर लिए उसका ही इन्तजार कर रहे थे . माँ ने कुछ पुछा नहीं , सिर्फ खाना परोसती रही . तेजस्वी को माँ की यह बात भी बहुत पसंद आती है कि वे चुप रखकर सुनने का इन्तजार करती है . खाने के बाद बालकनी में बैठी माँ बेटी देर रात सीमा की परेशानियों पर विचार करती रही , क्या हल निकलेगा इसका !!
अगला दिन बहुत व्यस्त था तेजस्वी की लिए , सीमा के माता पिता के साथ वह भी वकील बत्रा से मिलने चली गयी थी. उन्होंने सीमा को कोर्ट में प्रताड़ना का केस दर्ज करवाने की सलाह दी मगर वह इसके लिए तैयार नहीं थी . उसके मन में हलकी सी उम्मीद थी कि वह सौरभ से मिलकर बात करेगी तो शायद बात संभल जाए . आखिर तेजस्वी के प्रयासों के फलस्वरूप मध्यस्थ की सहायता से सीमा के कॉलेज में सौरभ का आना तय हुआ क्योंकि वह उसके घर आने के लिए बिलकुल तैयार नहीं था . सौरभ सीमा से मिलने कॉलेज पहुंचा तब भी नशे में ही धुत था . सीमा ने  अपना पक्ष समझाने की बहुत कोशिश की , मगर सौरभ टस से मस ने हुआ.  सीमा का हाथ पकड़कर ग्राउंड में ले आया और चीखने चिल्लाने  लगा ,  कॉलेज के अन्य साथियों ने भरसक प्रयास कर उसे चुप कराया और उसकी गाडी में ले जाकर बैठाया . सुलह की यह आखिरी कोशिश नाकाम हो गयी थी , मगर पास ही मौजूद तेजस्वी के कैमरे में उसकी हरकतें कैद हो चुकी थी . तेजस्वी ने जब यह मिसेज वालिया और उनके परिवार को दिखाया तो वे समझ गए कि अब सुलह की कोई गुन्जाइश नहीं रही हालाँकि वे यह भी जानते थी कि कोर्ट में सीमा के चरित्र हनन की कोशिशों को सामना करना इतना आसान नहीं था . तेजस्वी ने अपने कैमरे की गवाही के साथ ही सौरभ की नशे की आदतों , बुरे व्यवहार  एक मजबूत पक्ष अवश्य खड़ा कर लिया था . तेजस्वी ने सीमा को कुछ बताये बिना ही उसके सास ससुर से अपने सुबूतों के साथ संपर्क किया तब वे समझ चुके थे कि अब सीमा को कोर्ट में बुलाना उनके लिए मुसीबत हो सकता है . वे हाथ जोड़ कर माफ़ी मांगने लगे और सीमा को वापस ससुराल बुला लेने की बात भी कर उठे .  तेजस्वी जानती थी कि उसके लिए इस तनावपूर्ण  तकलीफदेह व्यवहार को भूला पाना संभव नहीं होगा मगर वह सीमा से मिलकर ही आखिरी फैसला करना चाहती थी . सीमा ने सौरभ के साथ आगे जीवन बिताने में असमर्थता प्रकट की . आखिर तय यह हुआ कि आपसी सहमति के आधार पर तलाक लिया जाएगा , और सीमा के विवाह में होने वाला खर्च , दहेज़ में दिया गया सामान सहित  उसका स्त्रीधन उसे वापस दिया जाएगा . भरण पोषण के लिए सौरभ से रकम लेने में सीमा की कोई रूचि नहीं थी .
तेजस्वी को सीमा के लिए दुःख अवश्य था कि मात्र 24 वर्ष की उम्र में उसने क्या नहीं देखा , मगर फिर भी उसके मुश्किल समय में मददगार होने का आत्मसंतोष भी था.
मिसेज वालिया को समय ने सबक दिया है कि बेटी का विवाह हो जाना ही कोई बड़ी उपलब्धि नहीं है , उनके सामने सपनों , महत्वाकांक्षाओं का विस्तृत संसार है , उनका साथ देना और उत्साह बढ़ाना है . जब तब तेजस्वी की सहायता से  गदगद हुई जाती बलईंयाँ लेती हैं , बेटी हो तो तेजस्वी जैसी !
सीमा के जीवन में भी धीरे- धीरे खुशियाँ लौट आएँगी . कडवे दुखद समय को भूलने में कुछ समय तो लगेगा ही . समय ने उसे सिखाया है बहुत कुछ ....
तेजस्वी ने जो बाहर की दुनिया में सीखा , सीमा को घर की चाहरदिवारियों ने ही सिखाया . चुनौतियाँ , कठिनाई , कहीं भी कम नहीं !
अब मिसेज वालिया नहीं करती किसी पर कटाक्ष , यही कहती नजर आती है - बेटी है तो क्या . पढाओ- लिखाओ . अपने पैरों पर खड़ा करो . जीने दो उन्हें अपनी जिंदगी , शादी /विवाह भी समय पर हो ही जायेंगे !!

तेजस्वी की एक और यात्रा पूर्ण हुई हालाँकि चुनौतियों का सफ़र सतत है . उसे अभी अपने जीवन के अनगिनत सोपान इसी दृढ़ता और साहस के साथ तय करने हैं !!
धुंए के पार रोशनी है . विश्वास और  दृढ़ता कायम रहे तो धुंध को चीर कर रोशनी की लकीर पहुँचती ही है !!



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