मंगलवार, 22 अप्रैल 2014

रोशनी है कि धुआँ…(1)

करीने से सजा कर रखे गए लाल बड़े अक्षरों से लिखा नाम " वायब्रेंट मिडिया हाऊस  " . शीशे की पारदर्शी दीवारों से झांकती अन्तःसज्जा  …  राह चलते कितनी बार कदम रुके होंगे , कितनी बार चीते की खाल जैसे चित्रकारी से सजी अपनी स्कूटी  को रोका होगा उसने  !


कब से संजों रखा था सपना उसने किसी दिन इस ऑफिस में बतौर संपादक नहीं तो , पत्रकार या कर्मचारी के रूप में ही सही  . बड़े घोटालों के खुलासे , सफेदपोशों के काले कारनामे , अन्याय के विरुद्ध डट कर खड़े रहना ,  जाने  कब ख़बरों  ही ख़बरों में वह इस हाउस से जुड़ गयी थी और जब अपने लिए करियर चुनने  का अवसर आया तब उसने यही अपनाया।  

घर में सबने टोका , बहुत मुश्किल है यह लड़कियों के लिए , क्यों पड़ती हो झंझट में।  पत्रकारिता में क्या है ,  लिखो घर सजाने के बारे में , परिवारों को एकजुट रखने के बारे में , अच्छा खाना बनाने की टिप्स , सौंदर्य और ग्लैमर की दुनिया के बारे में जानकारी देना , कविता , कहानियां भी लिखती हो , क्या यह काफी नहीं है ....
कोई समझाता विस्तृत आकाश है तुम्हारे सामने  , तुम्हे  पत्रकार ही क्यों बनना है ! कितना खतरा है इसमें और तुम लड़की  जात , कैसे करोगी सामना !
परिजनों की चिंता स्वाभाविक थी। 

जैसे और लड़कियां कर रही हैं , तुमने नहीं देखा मेघा , निष्ठा  को। कितना आत्मविश्वास है उसमे।  कितनी बेबाकी से भ्रष्ट राजीनीति , अफसरशाही , कालाबाजारी , घोटालों पर लिखती है , आज लड़कियां कहाँ नहीं हैं , क्या नहीं कर रही हैं , पुलिस ,सेना ,गुप्तचर विभाग , वकालत और जाने क्या क्या , क्या उनका परिवार नहीं है  , तुम नाहक फ़िक्र क्यों करती हो।
माँ के गले में बांहे डाल  उसे आश्वस्त करने की कोशिश करती।

मीडिया  हाउस में ऊर्जावान पत्रकारों की   नयी भर्तियों के बारे में जैसे ही  पता चला , वह मिली उत्कल से  . उत्कल और तेजस्वी  पडोसी और सहपाठी होने के कारण अच्छे मित्र भी थे। बारिश के पानी  में साथ कुलांचे भरने , नाव बहाने से से लेकर स्कूल के पास सटे मूंगफली और मूली के खेतों में सेंधमारी तक के कार्य उन्होंने एक साथ ही किये थे।  माध्यमिक विद्यालय तक आते दोनों के विद्यालय बदल गए . उत्कल के पिता कई प्रमोशन पा कर अपने विभाग के उच्चाधिकारी बन चुके थे , हर प्रमोशन के साथ ही उनका रहन -सहन उच्च से उच्चतर होता गया , उत्कल की माँ सोने से लदती  गयी , गैरेज में खड़े दुपहिया का स्थान महंगे  चौपहिया ने ले लिए ,गाड़ियां महँगी होती गयी  और इसी अदला बदली में उत्कल सरकारी विद्यालय से प्रमोट होकर सबसे शहर के सबसे प्रतिष्ठित  अंग्रेजी माध्यम के विद्यालय का विद्यार्थी हो गया।  तेजस्वी और उसके परिवार के साथ  उसके  व्यवहार में कोई परिवर्तन नहीं हुआ , हालाँकि उत्कल के माता- पिता जब तब अपने रुतबे का शंख बजाये बिना नहीं रहते।
 इंजीनियरिंग की पढ़ाई  पूरी कर  उत्कल शहर के ही जाने माने संस्थान   से जुड़  चूका था , तेजस्वी  अपनी पढ़ाई पूरी कर विभिन्न प्रतियोगी परीक्षाओं  का सामना करते हुए अपने सपने को पाल रही थी।   उत्कल भी  विभिन्न प्रतियोगी परीक्षाओं के साथ ही  उसके सपने पूर्ण करने में अपनी सलाह और प्रेरणा देना नहीं भूलता।   उत्कल ने ही मीडिया हॉउस की चीफ एडिटर का पता देते हुए उसे सलाह दी कि आवेदन करने से पहले वह पहले एक बार उससे मिल ले। उसके बाद ही अपना आवेदन दाखिल करे। 
परिचय से लेकर साक्षात्कार तक उसका आत्मविश्वास कई बार डगमगाया।  बॉब कट हेअर   स्टायल और मिनी स्कर्ट वाली फॉर्मल आउटफिटमें टाइटफिटेड माला ने उसे ऊपर से नीचे आँख भर देखा तो वह एक बार सकपका गयी।  उसने भी खुद पर एक नजर डाली , सलवार कमीज पर  लापरवाही से ओढ़ा स्टोल और रूखे बालों में गुंथी हुई चोटी ।  खुद को कोसा उसने , कम से  कम बाल खुले ही रख लेती , मगर घबराहट को छिपाते हुए चेहरे पर आत्मविश्वासी मुस्कान लाने में कामयाब हो ही गई 

 बात यही ख़त्म नहीं हुई , धड़धड़ाती अंग्रेजी में पूछे गए माला के सवालों ने फिर से उसके दिल की धड़कने बढ़ा दी।  अंग्रेजी ज्ञान बुरा नहीं  था उसका , मगर  हिंदी माध्यम से ली गयी शिक्षा पटर पटर अंग्रेजी बोलने पर अंकुश लगा देती।  उसने धीमे शब्दों में अपना परिचय देते हुए अपने आने का मकसद बताया।  

ओहो , पत्रकार बनने आई हो ,होठों को तिरछा कर भीषण हंसी को रोकते माला ने  हिंदी में ही कहा । चोर  नजरों से तेजस्वी ने देखा ,उसके पास ही खड़े एक कर्मचारी के होठों पर भी  तीव्र मुस्कराहट थी।  गले में लटके बैज पर नाम भी देखा उसने -साहिल  मिश्रा !

तेजस्वी ने एक गहरी सांस ली और अपने सपने को याद किया।
जी हाँ ! वैदेही  मैम कब और  कहाँ मिलेंगी। तन कर खड़े रहते उसने जवाब दिया.
वैदेही के नाम से माला  कुछ संयत हुई।  कार्य के प्रति अपने समर्पण के साथ ही बेबाकी और साहस के लिए जाने जाने वाली  अनुशासनप्रिय उपसम्पादक  वैदेही का अपना रुतबा था.
माला से  केबिन का पता लेकर  चल पड़ी तेजस्वी वैदेही से मिलने ।  
वैदेही उससे बड़े प्यार  से मिली , उत्कल ने उसे तेजस्वी के बारे में बता दिया था। उसकी शैक्षणिक योग्यता के साथ ही  उसके पसंदीदा विषय को भी जानना चाहा .

 तुम्हे  किस विषय पर लिखना अधिक पसंद है.

देश की  सामाजिक , राजनैतिक और प्रशासनिक  व्यवस्था पर  चिंतन और बेबाक लेखन मुझे बहुत पसंद है। 

स्त्री सशक्तिकरण अथवा स्त्रियों से ही जुड़े अन्य मुद्दों में तुम्हारी  रूचि नहीं है ? वैदेही का चौंकना लाज़िमी था !

सामाजिक व्यवस्था मतलब नारी नहीं हुआ !

हम्म्म्म  …मगर जैसी हमारी सामाजिक व्यवस्था है , उसमे स्त्री एक  कमजोर पक्ष मानी जाती है. उसे विशेष संरक्षण , सहानुभूति , देखभाल की आवश्यकता है।

मैं समाज के प्रत्येक अंग के चिंतन ,विकास और संरक्षण पर ध्यान देना और दिलाना चाहूंगी। 
तेजस्वी को अपनी चोंच से अंडे का खोल फोड़ कर बाहर आने वाली चिड़िया की कहानी याद थी. 

वैदेही ने उसे आवेदन और चयन की कार्यविधि समझाई। 

तेजस्वी मानती रही है कि खूबसूरती   देखने वाले की  आँखों में होती है , यह सिर्फ इंसान पर ही लागू होता है . घर में  उसकी भाई बहन से कई बार कहा सुनी हो जाती. उसकी टेबल को कोई हाथ ना लगाये , जो चीज जहाँ से ली वहीं  रखे . कई बार माँ  समझाती भी उसे - थोडा इग्नोर भी किया करो ,मगर  उसे  घर , स्टडी टेबल , ऑफिस  सब व्यवस्थित ही चाहिए।
जब उसे सुन्दर रंगों और शीशे से घिरे व्यवस्थित केबिन से सजा धजा ऑफिस अपने कार्यक्षेत्र के लिए मिला  तो उसकी प्रसन्नता  का ठिकाना ही नहीं था। उसका सपना सच होने जा रहा था !
खूबसूरत  स्वप्निल  सुबह में माँ की आवाज़ से नींद टूटी तेजस्वी की , क्या समय है आज ऑफिस जाने का। 
"ओह ! माँ ,सपनों में जाने कहाँ दौड़ती -उड़ती -फिरती रही रात भर मैं  "

चादर एक तरफ फेंक पैर में चप्पलें फंसाती सी  बाथरूम की और भागी।  नहा धोकर तैयार हुई तो माँ नाश्ते के साथ दही बताशा चम्मच में भरे खड़ी  थी।

घर से निकलते  पिता की स्नेहिल ऑंखें  सिर्फ इतना ही कह पाई "अपना ध्यान रखना "! 
 वहीँ माँ की सैकड़ों हिदायतें , ध्यान से जाना , हेलमेट जरुर लगा लेना ,  मोबाइल चेक करती रहना ....
तेजस्वी  सोच कर मुस्कुराती है   जब फोन इतने आसानी से उपलब्ध नहीं थे , माओं का गुजारा  कैसे होता होगा , कही पहुँचों तो कॉल करो , रवाना हो रहे हो तो कॉल करो , और यदि किसी कारणवश फोन नहीं  पाये तो घर पहुँचते जाने  कितने दोस्तों के पास फोन पहुँच जाए।  कई बार झुंझलाती है तेजस्वी कि क्या है ये माँ ,  घर ही तो आ रही थी , सब  दोस्त हँसते हैं मुझ पर , मैत्रेयी तो अधिक ही। उसके घर से कभी फोन नहीं आता , न वह करती है। 
माँ कहती है मन ही मन कभी गुस्से से , कभी खिन्न हो कर तो कभी हँसते हुए - माँ बनोगे तो जानोगे।

 एक दिन बहुत हंसती हुई  लौटी घर " पता है माँ , आज  मैत्रेयी की  मम्मी का दो बार फोन आया" . 
 क्यों ? 
 शुक्रवार की शाम घर लौटते उसका छोटा- सा एक्सीडेंट  हो गया था,  आंटी इतना डर गई कि दिन भर  फोन कर हालचाल लेती रही। 
 अब समझ आया न , क्यों चिंता रहती है हमें।

उसके बाद एक परिवर्तन आया तेजस्वी में , देर होने की सम्भावना में माँ को फ़ोन जरुर कर देती। 

वाईब्रेंट  मीडिआ हाउस में उसका पहला दिन उत्साह  भरा था। सबसे पहला काम उसे आलिया के साथ करना था। हंसमुख स्वाभाव की आलिया से मिलकर उसे बहुत अच्छा लगा।  दरम्याना कद , कंधे तक बाल , आँखों पर ऐनक  उसे उम्र के अनुसार परिपक्व बनाती मगर चेहरे पर शरारती मुस्कान और बच्चों सी खिलखिलाहट , उसके लिए अपने मातहतों  से जुड़ने में कोई बाधा नहीं पहुंचाती । 
आलियां ने  प्यार भरी मुस्कराहट से  तेजस्वी का स्वागत किया  और एक सादा कागज़ और पेन उसके सामने रख दिया .

तुम्हारा बायोडाटा देखा , तुम शेरो -शायरी कवितायेँ आदि लिखती हो , कुछ लिखो इस पर।

कुछ ज्यादा नहीं लिखती हूँ , बस यूँ ही कभी कभी डायरी में , कभी किसी को सुनाई भी , सहेलियों ने छीनकर पढ़ ली बस।

सकुचा गयी तेजस्वी. कभी किसी झोंक में डायरी में  लिखना अलग बात मगर यूँ अचानक लिखने का इसरार  दे तो ठिठकन  स्वाभाविक ही  लगती है . 

कोई बात नहीं , कुछ भी लिखो , जो तुम्हारा  दिल करे !

सुबह  की खिलती मुस्कुराती धूप  में 
फूलों पर शबनम के कतरे   
गोया  कि चाँदनी  ने 
रात भर आंसू बहाये हों। 

मैं ग़र गुल हूँ तो वह नहीं 
जो सदाबहार है 
मुझे तो चंद  लम्हों में मुरझाना है 
मैं ग़र खार हूँ तो वह नहीं 
जो ग़ुलों का हिफ़ाज़ती है 
मैं वह ख़ार हूँ जो हरदम 
आँखों में खटका  हूँ !

अपनी डायरी के पहले पन्ने  पर लिखी अपनी यही पंक्तियाँ उसे याद आई। 
कागज़ पर लिखे अक्षर पढ़ते हुए आलिया ने चश्मे के पीछे गहरी आँखों से देखा उसे !
पढ़कर भी सुना दो अब !
ग़र , ग़ुल , ख़ार जैसे शब्दों पर उसके पढ़ने पर बुरी तरह चौंकी आलिया।  
उसका बायो डाटा फिर से पढ़ा।

संस्कृत तुम्हारा अतिरिक्त विषय रहा है।  फिर तुमने यह ज़बान  कहाँ सीखी , इतना  साफ़ लहज़ा तो यह विषय पढ़ने वाले भी नहीं बोल पाते कई बार। अचंभित भी थी  आलिया !

पता नहीं ,   बस ग़ज़ल सुनने का शौक रहा है ,शायद वहीं !

हम्म्म .... मगर फिर भी। अब भी अचरज में थी आलिया।  

हर व्यक्ति के जीवन में बहुत कुछ बेवजह भी होता है। जीवन सफ़र में कुछ सामान्य पल ,  विषय और लोग  यूँ भी चौंकाते हैं। 

स्त्रियों से जुड़ी  न्यूज़ चैनल्स की बाईट्स , अख़बारों के समाचारों के संकलन का निर्देश देते हुए आलिया ने उसे पत्रकारों  के लिए जरुरी दिशा निर्देश पुस्तिका भी थमा  दी। 

इसे भी ध्यान से पढ़ना , तुम्हे काम करने और समझने में आसानी होगी। 

 तेजस्वी  कुछ अलग करना चाहती थी  , उसे कुछ  मायूसी हुई।  उसने वैदेही को भी अपने पसंदीदा विषय का संकेत दे दिया था।  जो भी हो , मगर उसे कार्य तो यही करना था  और उससे  पहले उसे ट्रेनी की वर्कशॉप ज्वाइन करनी थी।
वर्कशॉप में मिडिया हॉउस के वरिष्ठ  उपसंपादकों और तकनीकी जानकारों ने  सूचनाओं को  समाचारों  में बदलने की बारीकिया और कंप्यूटर से जुडी बहुत  तकनीकी जानकारियां साझा की।  
याद रखिये,  पत्रकारों का कार्य  निष्पक्ष होकर सूचनाएं एकत्रित करना और उन्हें आगे  बढ़ाना है .  उन्हें गलत या सही साबित नहीं करना है, वह कार्य पाठकों अथवा दर्शकों को अपने विवेक अनुसार करने देना है।    सूचनाओं  को  एकांगी अथवा पूर्वाग्रही न होने देने के लिए भावनाओं और संवदनाओं पर काबू रखना है। 

वरिष्ठ उपसम्पादक नरोत्तम धौलिया अपने समापन आख्यान में सम्बोधित कर रहे थे। 

आंदोलनों , लाठी चार्ज , दुर्घटनाओं , बम विस्फोटों और विभिन्न आपदाओं के चित्र तेजस्वी की आँखों के  सामने से  गुजर गए।  यह ख्याल उसे कई बार आता रहा था कि उन स्थानों पर  उपस्थित रिपोर्टर्स के लिए कितना मुश्किल रहा होगा , किस प्रकार उन्होंने अपने जज्बातों पर काबू पाया होगा।   उसे हॉस्पिटल में मरीजों से घिरे चिकित्सकों , नर्सों का भी ख्याल आता था , यदि वे अपनी भावनाओं को नियंत्रित ना कर सकें तो उनका कार्य कितना मुश्किल हो जाए। 
वर्कशॉप में ही उसकी पहचान कुछ और नए ट्रेनियों से भी हुई ,  सिमरन , शौर्य ,मयंक , अमिता।  समवयस्क होने के कारण वे सब जल्दी ही आपस में घुल मिल गये। अपनी डेस्क तक पहुँचते बेतकल्लुफी इतनी हो गयी कि आपस का परिचय आप से तुम और तू तक पहुच गया। तेजस्वी ने डेस्क पर  पहुचते ही सबसे पहले कंप्यूटर डेस्क और आस पास का जायजा लिया।   एक लाईन में बने पार्टीशन वाले केबिन में  अपने कम्यूटर पर झुके  मुस्तैद साथियों को आस पास की खबर नहीं थी । उसके साथी  भी  अपनी डेस्क में समा  चुके  थे।  तेजस्वी ने भी स्वयं को अपने कार्य पर ध्यान केंद्रित किया   अख़बारों और न्यूज़ चैनल की रिपोर्ट खंगालने लगी। 

इंदिरा नूई अमेरिका की प्रतिष्ठित पत्रिका फॉर्च्यून के 500 मुख्य कार्यकारी अधिकारियों की सूची में शामिल 18 महिलाओं में जगह बनाने में कामयाब रही हैं। वान्या  मिश्रा  मिस इंडिया वार्ड  चुनी गयी। प्रथम पृष्ठ के मुख्य समाचारों में स्त्रियों की कामयाबी से उत्साहित तेजस्वी तेजी से ख़बरें पलटने  लगी।  
 कूड़े के ढेर से नवजात बच्ची का शव बरामद किया गया ,  छह वर्ष की बच्ची घायल अवस्था में मिली ,    हॉस्टल में छात्रा  के गर्भवती होने  की खबर पर वार्डन तलब , महिला ने तीन बच्चों सहित कुएं में कूद कर जान दे दी. 
क्या आम स्त्रियों से जुडी कोई अच्छी खबर नहीं मिलेगी उसे , वह इन जीवित या मृत लड़कियों या स्त्रियों से समाचारों में ही मिल रही थी , इनसे वास्तविकता में आमने -सामने मिलना कैसा रहेगा ,तेजस्वी को लगने लगा था कि उसका काम इतना आसान नहीं  रहने वाला है।  

 यह तो चुनौतियों की दस्तक मात्र ही थी।

घर पहुचते शाम गहरा गयी थी। फ्लैट की सीढियाँ चढ़ते मिसेज वालिया  टकरा गयी , नाटे कद की सांवली रंगत वाली मिसेज वालिया सरकारी विद्यालाय  में हेडमिस्ट्रेस थी।  मगर कॉलोनी के सम्बन्ध में उनकी जानकारी किसी  पत्रकार या जासूस से कम नहीं थी। किसकी लड़की किसके साथ कब आई , कौन सी पड़ोसन ने बालकनी में  कपडे सुखाते किस पडोसी की खिड़की की ओर झाँका , किस पडोसी का दूसरे पडोसी से अबोला है।  अपनी काम  वाली बाई की बदौलत उन्हें सबकी खबर रहती थी। सूचनाएँ  निकलवाते समय उनकी उदारता चरम पर होती थी , और बाई भी इसका पूरा फायदा उठाती।  उनका शहर अभी इतना बड़ा महानगर नहीं था कि लोग आसपास रहने वालों से अनजान रहे। 
" वो छोटी बेबी की छींटदार सलवार कमीज तार से उतारते समय उलझ गयी थी , आपकी साडी का तार खीच गया था  " फुर्सत में उनको सुधार कर फिर से उपयोग में लेने की धुन चटपटी ख़बरों के चटखारों में जाने कहां बिला  जाती और वे जल्दी - जल्दी  सर हिलाते हुए हामी भर लेती।

तेजस्वी कई बार माँ से चर्चा करती ,  पढ़ीलिखी कामकाजी स्त्रियों  को भी  बातों के चटखारे लेने की  आदत नहीं छूटती। जाने  कितनी  बार माँ को ताना दिया होगा उन्होंने , आपका अच्छा है ,  दिन भर घर में रहती हैं , हमें तो समय ही नहीं मिलता आसपास की खबर रखने का  , आपका तो अच्छा टाईम पास हो जाता है , हमें कहाँ फुर्सत,  कहते हुए भी  दो -चार पड़ोसनों का हाल बताये बिना नहीं खिसकती।

तेजस्वी भुनभुनाती  है माँ  पर , कभी मैं इन्हे  खरी खोटी न सुना दूं , घरेलू स्त्री होने का मतलब सिर्फ टाईम पास करना नहीं है , मिसेज आहूजा को  कॉलोनी की ताजा खबर तो खूब होगी ,   देश दुनिया की कोई खबर मालूम करने की कोशिश भी की है कभी , कभी अखबार हाथ में उठाकर देखा भी होगा , कभी किसी गरीब बच्चे को पढ़ाने  की कोशिश की है , क्या  मुकाबला करेंगी मेरी माँ से , बड़ी आई। पता नहीं स्कूल में बच्चो को क्या पढ़ाती होंगी।  हुंह !

माँ  हंस देती है , छोडो भी , क्यूँ उलझना !

अभिवादन का इन्तजार किये बिना ही  मिसेज वालिया  पूछ बैठी  "कैसी हो तेजस्वी !"

शिष्टाचार वश तेजस्वी को  रुकना ही पड़ा " अच्छी हूँ आंटी , आप कैसे हो ? सीमा कैसी है , बहुत दिनों से मिलना नहीं हुआ ". 

हाँ , तुम भी पता नहीं कहाँ व्यस्त रहती हो , अब जाकर घर पहुंची हो। 22 मार्च को सीमा की शादी तय कर दी है , लड़का दिल्ली का रहने वाला है , बहुत पैसे वाले हैं।  सीमा को देखते ही पसंद कर लिया। 

ओह , अच्छा।  बहुत बधाई आपको , मगर मार्च में  सीमा के फायनल ईअर की परीक्षाएं भी तो है। 

होती रहेगी परीक्षा तो , अच्छा लड़का मिला तो कर दी शादी तय , वर्ना आगे जाकर बहुत मुश्किल हो जाती है।

चलती हूँ आंटी , बहुत थक गयी हूँ।  कल मिलती हूँ सीमा से ! कहते हुए तेजस्वी तेजी से अपने फ़्लैट की ओर लपक ली। 


कैसा रहा आज का दिन।  माँ उसका रास्ता ही देख रही थी। 
बहुत अच्छा , थकान हो रही है लेकिन अब।  
फ्रेश होकर थोड़ी देर  आराम कर लो ,  खाना बन रहा है. साथ ही  खायेंगे .  

होती  रहेंगी परीक्षाएं  … हाथ -मुंह धोकर  फ्रेश होने से काउच पर चैन से पसरते शब्द उसके कानों में गूंजते रहे। माँ  छोटी बहन मनस्वी के साथ टेबिल पर खाना लगाकर सबको बुला  रही थी। चार लोगो के छोटे से  परिवार में रात  खाना एक साथ ही करने का एक अलिखित नियम सा था। भाई   मयूर और उसके पिता भी पहुँच चुके थे डाइनिंग टेबिल तक।  

माँ , लोग बेटियों को क्यों पढ़ाते हैं , बस एक अच्छा रिश्ता मिल जाए , सिर्फ इसलिए ही। तेजस्वी के  दिन भर के अनुभव के बारे में कोई उससे पूछे, उससे पहले ही वह अपने सवाल के  साथ तैयार थी। 

मकसद यही हो , जरुरी नहीं।  मगर अच्छा रिश्ता हो जाए , यह तो सभी माता- पिता चाहते होंगे।

उसने सीमा के बारे में बताया , सीमा बीटेक  के आखिरी वर्ष में थी।  

मुझे पता है , लड़के ने भी अभी बीटेक किया है , कैम्पस सलेक्शन हो चुका  है। लड़के के माता -पिता दोनों ही सरकारी सेवा में हैं , उसकी बड़ी बहन विदेश में सैटल है।  उन्हें सीमा के आगे पढ़ने में भी कोई समस्या नहीं है।  इस रिश्ते में कोई समस्या मुझे नजर नहीं आती।  

मगर माँ , सीमा की परीक्षाएं हैं , शादी के कुछ दिन बाद ही। 

मुहूर्त नहीं था आगे का , लड़के की बहन भी अभी ही आ सकती थी विदेश से। उनके नजरिये से भी देखो। 

खाने के समय हम क्यों उलझ रहे हैं दूसरों की जिंदगियों से। तुम बताओ , सब ठीक रहा आज। पिता ने हस्तक्षेप करते हुए बात को बहस में बदलने से रोका  . खाना खाते हुए वे दिन  भर  के कार्यकलापों पर बातचीत करते रहे। 

दिन पर दिन गुजरते  रहे।  आलिया  के साथ उसके साथियों की मीटिंग होती , लक्ष्य निर्धारित होते   .  स्त्रियों की शिक्षा व  सुरक्षा से सम्बधित योजनाओं और कानून की जानकारी एकत्रित करने के लिए स्त्रियों से जुड़े कई समाजसेवी संगठनों से मिलना , विभिन्न आंकड़े एकत्रित करना , साक्षात्कार लेना  ,रिपोर्ट तैयार करना ,  उनको आलेख अथवा समाचार में बदलना , कार्य के ढेर में ढेर होते तेजस्वी अपने कार्य में प्रवीण होती जा रही थी। 

अपने कार्य के प्रति समर्पित तेजस्वी  अपने अन्य साथियों के मुकाबले विनम्र और हंसमुख होने के कारण सभी से घुली मिली रहती। आलिया का उस पर यकीन  बढ़ता  जाता था।  एक दिन आलिया ने उसे केबिन में बुलाकर शक्ति  सदन की रिपोर्ट तैयार करने के लिए कहा। शक्ति  सदन के फाउंडर ,सदस्यों ,  प्रताड़ित स्त्रियों की कानूनी सहायता करने , उन्हें आवास उपलब्ध कराने , आर्थिक मदद हेतु कार्य की व्यवस्था , कार्य निष्पादन मूल्यांकन  करने तथा उनसे सम्बंधित विभिन्न आंकड़े जुटाने थे.  इस कार्य के विस्तार और समय के तकादे के मद्देनजर आलियां ने तेजस्वी को एक और साथी को इस प्रोजेक्ट से जोड़ लेने के निर्देश भी दिए। 

सिमरन प्रशिक्षण अवधि में उसकी  साथी थी।   उनकी अच्छी मित्रता भी  हो चली  थी. तेजस्वी ने इस कार्य के लिए सिमरन के नाम की सिफारिश की। एक ही साथ कार्य करते दोनों आपस के अनुभव बांटती। जब -तब सिमरन उसके पास आ कर बैठ जाती और विभिन्न विभागों के हर व्यक्ति से जुडी ख़बरें सुनाती रहती।  पता नहीं वह इतनी सूचनाएं कहाँ से जुटाती थी। काम के बीच सर जुड़ाए खुसर- पुसर करते ,  देख दूसरे साथी बहुत चिढ़ते कि आखिर  ये यहाँ क्या करने आई हैं  मगर सिमरन पर कुछ असर न होता। 
कार्य के बीच चर्चा , विमर्श के दौरान जब भी वे लोग अन्य साथियों के साथ होते ,  सिमरन तेजस्वी की प्रशंसा ही करती  नजर आती।    तुम कितनी सुन्दर हो , तुम लिखती कितना अच्छा हो , .कितनी मेहनती  हो।  तेजस्वी विनम्रता से अपनी प्रशंसा सुनते हुए थोडा सकुचाती .  वह कई बार दबी जुबान में उसे मना  भी करती। 

अब सिमरन और तेजस्वी को अपने इस कार्य की रिपोर्ट वायब्रेंट  मिडिया हाउस  की विभागीय प्रभारी सुचित्रा को देनी थी।  स्त्रियों से जुड़े  सभी विषयों को  सुचित्रा ही देखती थी।  आलिया  से बिलकुल विपरीत  सुचित्रा अत्यंत सख्त मिजाज थी। अपने विषय में निष्णात सुमित्रा को  स्त्री इनसायक्लोपीडीया भी कहा जाता था।  तेजस्वी नोट करती कि उनके चेहरे पर एक मुस्कराहट भी अतिरिक्त नहीं होती थी , बल्कि शायद उसने उन्हें कभी मुस्कुराते हुए भी नहीं देखा था।  स्त्रियों से जुडी शिकायतों में वे हमेशा स्त्री के पक्ष में ही रहती।  इस मामले में उन्हें जरा भी लापरवाही पसंद नहीं थी। यदि किसी भी रिपोर्ट में स्त्री पर  आरोप सही  साबित होने की स्थिति में होता  , तब वे उस पर गहन  छानबीन करती ,कई फेरबदल करवाती  , यहाँ तक कि कई बार रिपोर्ट ख़ारिज ही कर देती।


कानून की अवधारणा की तर्ज पर ही उनका अजेंडा था कि कई दोषी स्त्रियां बच निकलें तो कोई बात नहीं , मगर एक भी निर्दोष स्त्री  उपेक्षा अथवा  गलतबयानी की शिकार न हो। उनके स्त्रियों  से जुड़े मामलों पर  अतिवादी रुख तथा  तीव्र प्रतिक्रिया से  आतंकित पुरुष साथी घबराये से रहते। उनके सौंपे गए कार्य  जल्दी से निपटाकर भागने की कोशिश में रहते। पीठ पीछे लोग उन्हें हिटलर अथवा कुंठित स्त्री का खिताब देते नजर आते , यहाँ तक कि  सिमरन भी अन्य साथियों के साथ मिलकर अक्सर सुचित्रा का उपहास करती   हालाँकि उनके सामने कुछ कहने की हिम्मत किसी में भी नहीं होती थी।  कभी -कभी इस छींटाकशी से   तेजस्वी व्यथित भी होती। वह मानती  थी  कि  उनके इस रूखे व्यवहार के पीछे कुछ तो गम्भीर वजह अवश्य रही होगी।

एक दिन अपने केबिन में उन्हें अकेला पाकर उनके सामने की कुर्सी पर डट गयी।  
सुचित्रा का रुखा सा प्रश्न  था - कुछ काम था मुझसे !
नहीं , बस यूँ ही। आपको अकेले देखा तो बात करने की इच्छा हुई।

 मन में सोच रही थी तेजस्वी कि सख्त मिजाज लोगों के आँखों पर चश्मा ना हो तो उनका सामना बड़ा मुश्किल  हो जाता है।

क्यों , आज तुम्हे कोई काम नहीं है! 
थोडा ही बाकी है। क्या आप कभी हंसती मुस्कुराती नहीं है !
उनके रूखेपन को नजरअंदाज करते हुए तेजस्वी ने कहा।

मैं ऑफिस काम करने के लिए आती हूँ ,  यह कोई मनोरंजन का स्थान नहीं है , जहाँ हंसी -मजाक  कर दिल बहलाया जाए। 
नहीं … मतलब काम तो किया जाना चाहिए … मगर  … बस ऐसे ही … आपको कभी हँसते नहीं देखा … बस इसलिए ही  … अटकते ,झिझकते , डरते तेजस्वी ने कह ही दिया।

अपने काम से काम रखने की सलाह देने की मंशा रखते हुए  सुचित्रा ने एक बार गम्भीर मुद्रा में उसकी ओर  देखा। मगर तेजस्वी के भोले सहमे चेहरे और कागज-पेन  को हाथ में पकड़कर भागने की मुद्रा में देख  रोकते रुकते भी सुचित्रा के मुख पर हलकी-सी मुस्कान आ ही गयी। 

अरे बाबा , मैं हंसती भी हूँ और मुस्कुराती  भी हूँ , मगर उचित कारणो से ही।  बेवजह हंसी -दिल्लगी में मेरी कोई रूचि नहीं है।  तुम्हारी रिपोर्ट कहाँ तक पहुंची , तुम्हे पता है न मुझे काम समय पर चाहिए।

जी , रिपोर्ट लगभग पूरी हो चुकी है , कुछ थोडा- सा कार्य ही अभी बाकी है।

सुचित्रा के रूखे रौबीले व्यवहार से थोडा आहत होते हुए  तेजस्वी को सुखद अनुभूति भी हुई। उसने सुचित्रा को मुस्कुराते हुए देखा  और आँखों में छिपी कही स्नेह की छाया भी अवतरित हुई।

विरोधाभास मूलतः इंसानी प्रवृति ही नहीं , प्रकृति में ही निहित है. बर्फ से ढकी चादर से ढका है गुनगुने पानी का अस्तित्व , नारियल के सख्त आवरण में है सफ़ेद झख मुलायम गिरी , कछुए के कड़े खोल में छिपा है एक नरम वजूद ।  सुचित्रा  और तेजस्वी भी इसी विरोधाभाषी व्यक्तित्व अथवा अनुभूति की प्रतीक दिख पड़ी।

अगले दिन तेजस्वी ऑफिस में पहुंची तो फिजां में तनाव साफ़ नजर आ रहा था। सुचित्रा आज समय से पहले ऑफिस में मौजूद थी।  फक्क पड़े कुछ चेहरों को देखते डेस्क तक पहुची तेजस्वी तो सिमरन   दोनों हाथ बांधे विचारमग्न मुद्रा में खड़ी नजर आई.

मैं यह ऑफिस छोड़ रही हूँ।  
क्यों , क्या हुआ , ऐसे अचानक , तेजस्वी परेशान थी। 
कारण तो तू  सुचित्रा से ही पूछ लेना  , बस तुझे विदा कहने को ही रुकी थी। मुझे जल्दी ही कहीं जाना है।  तेजस्वी की किसी भी प्रतिक्रिया का  इन्तजार किये  बगैर ही सिमरन तीर की तरह दरवाजे से बाहर निकल गयी।

अगले ही पल तेजस्वी सुचित्रा के केबिन में थी। 
मैम , सिमरन ऑफिस छोड़ कर जा रही है , ऐसा क्या हुआ। उसके चेहरे पर उलझन , खिन्नता , परेशानी स्पष्ट पढ़ी जा सकती थी। 
सुचित्रा ने अपनी उसी सख्त रौबदार मुद्रा में उसे बैठने का इशारा करते हुए एक कागज उसके सामने  बढ़ा दिया। 
हलकी सी सिहरन के साथ कागज़ सँभालते तेजस्वी की आँखें तरल हो आई थी।  वह कागज सिमरन के "सुकेत  एक्टिविस्ट" होने की पुष्टि कर रहा था।

क्या तुम्हे पता नहीं है , इस ग्रुप से सम्बन्ध रखने वाले किसी व्यक्ति को हम अपने विभाग में नियुक्ति नहीं दे सकते हैं। यह एक्टिविस्ट ग्रुप हमारे प्रमुख प्रतिद्वंद्वी मिडिया कम्पनी का ही एक हिस्सा है।

मुझे इस सम्बन्ध  में कोई जानकारी नहीं है, जैसा कि आप जानती है यह  मेरा पहला कार्य ही है।

जिसे किसी प्रोजेक्ट में आप साथ लेते हैं , मित्र बनाते हैं , उसकी जानकारी तो आपको होनी चाहिए। सञ्चालन दृष्टि से दृश्य -श्रव्य माध्यम किसी भी तरह कॉर्पोरेट संस्था से भिन्न नहीं है,  यहाँ भी उतनी ही सतर्कता आवश्यक है।  तुम्हे इसका ध्यान रखना चाहिए था।

सुचित्रा के कमरे से निकलते तेजस्वी अनमयस्क सी थी।  उसने फ़ोन मिलाया सिमरन को ," तूने अपने एक्टिविस्ट होने की बात मुझसे क्यूँ छिपाई। 
मैंने कुछ नहीं छिपाया , मुझे स्वयं ही नहीं पता कि कब उन्होंने मुझे सदस्य बना लिया . मैं मना  कर पाती , इससे पहले ही मेरा नाम सार्वजानिक कर  दिया गया। चल , मैं तुझसे बाद में बात करती हूँ।  
सिमरन ने  बड़ी बेरुखी से अपनी बात समाप्त करते हुए फोन काट दिया।

तेजस्वी अचानक हुए इस घटनाक्रम से बुरी तरह परेशान थी।  शक्ति सदन की उसकी रिपोर्ट भी अधूरी पड़ी थी , उससे सम्बधित  सामग्री भी सिमरन के पास ही थी। उसका किसी भी काम में मन नहीं लग रहा था। बेखयाली में दो- तीन दिन गुजर गए , मगर उसका कार्य पूरा नहीं था।  अनुशासन की पाबंद सुचित्रा समय में लापरवाही और छूट बर्दाश्त नहीं कर सकती थी, उसने तेजस्वी को इस प्रोजेक्ट  से अलग कर दिया।
अपने पहले बड़े प्रोजेक्ट को अधूरा छोड़ने की कसक तेजस्वी के चेहरे और  कार्यशैली पर स्पष्ट नजर आती थी।  मगर आलिया का व्यवहार अब भी उसके साथ स्नेहपूर्ण ही था। आलिया के निर्देशानुसार अब उसे भारतीय संस्कृति, परंपरा  ,व्रत- त्योहार जैसे विषय पर कार्य प्रारम्भ करना था मगर तेजस्वी का उत्साह क्षीण हो चुका  था।
 कई बार  स्वयं को समझाती तेजस्वी अपने कार्य में मन लगाने का भरपूर प्रयास करती। समय अपनी रफ़्तार से बीतता ही है , मनःस्थिति किस प्रकार  की भी हो। 

 कुछ समय बीते  एक दिन सुचित्रा के केबिन के आगे से गुजरते चिरपरिचित आवाज ने उसके क़दमों को रोक लिया।  केबिन में  झाँक कर देखा तो उसकी हैरानी और ख़ुशी का  ठिकाना न था।  सुचित्रा के सामने कुर्सी पर बैठी सिमरन बहुत बेतकल्लुफी से आपस में विमर्श कर रही थी। उसने दोनों को टोका नहीं और अपनी सीट पर लौट आई।
 उस दिन के  बाद सिमरन से उसकी बात भी नहीं हो पाई थी।    उसे  पूरा यकीन था कि सिमरन तेजस्वी से मिलकर ही  जायेगी , बल्कि तेजस्वी को गहन उत्सुकता थी कि नाराजगी में संस्थान छोड़ने वाली सिमरन को सुचित्रा से आखिर क्या काम रहा होगा। सिमरन का इन्तजार करते अपने काम से फारिग होकर नजरें उठाई  तो अचानक ही सामने से अनजान बन कर गुजरती सिमरन पर उसकी नजर पड़  गई। उसने पीछे से पुकारा भी मगर जाने उसकी आवाज सिमरन के कान तक नहीं पहुंची अथवा उसने जानबूझकर नहीं सुना।

 तेजस्वी देर तक  अजीबोगरीब व्यवहार पर  सोचती रही मगर उसे कोई  सिरा नजर नहीं आया।  उसने सर झटक कर कई बार स्वयं को समझाया शायद  जल्दी में रही होगी , कोई आवश्यक कार्य रहा होगा , सोचते उसका सिर  भारी हो गया।

इसी उधेड़बुन के बीच घर पहुंची  तो माँ सजी- धजी सीमा की  मेहंदी और  महिला संगीत में जाने के लिए तैयार उसका इन्तजार कर रही थी। माँ ने पहले से ही उसके सलवार कमीज हैंगर पर लटका रखे थे।  जल्दी तैयार हो जाओ ,हमें काफी देर हो चुकी है।  खाने के समय कार्यक्रम में पहुंचना अच्छा नहीं लगता। 

हाथ मुंह धोकर   क्रीम और पीले रंग के अनारकली सूट पहने आईने के सामने बाल संवारती तेजस्वी पर  मुग्ध दृष्टि डालते  माँ  ने थूथकारा डाला , नजर ने लगे !

दोनों  कार्यक्रम में पहुंची तब तक महिला संगीत समाप्त ही होने को ही था।  लाया डाक बाबू लाया रे संदेसवा , मेरे पिया जी को भाये न बिदेसवा पर एक लड़की मंच पर थिरक रही थी। 
तेजस्वी और उसकी माँ  ने सीमा के पास जाकर सीमा को  बधाई  दी।
भड़कीले लाल रंग के सलवार कमीज में लकदक मिसेज वालिया चहकती हुई तपाक  से बोली ," हमने तो समय से अच्छा लड़का देखकर सगाई कर दी , अब आप भी तेजस्वी के लिए लड़का  देखना शुरू  कर दो।  बराबर- सी ही तो  हैं दोनों।
माँ ने कुछ कहा नहीं , सिर्फ मुस्कुरा कर रह गयी।  

 संयोगवश सीमा का जन्मदिन भी था उसी दिन।  मंच के पास ही केक काटने की तैयारी  भी थी। सीमा और उसका भावी पति सौरभ मंच के सबसे आगे एक सुन्दर झूलनुमा बेंच पर साथ बैठे थे। उस  मंच के सामने लगी बेंच पर पीछे की तरफ बैठ कर दोनों संगीत का आनंद ले रही थी। मिसेज वालिया चहकती हुई बता रही थी ,  सीमा के ससुर बहुत खुश  हैं इस रिश्ते से , केक पर सजावट उन्होंने अपने हाथों से की है।  कहने लगे कि मेरी बहू लाखों में एक है तो इसका तोहफा तो मैं ही सजाऊंगा। अभी थोड़ी देर पहले ही नृत्य के लिए बहू का हाथ पकड़कर स्टेज पर ले गए। पूरे परिवार ने साथ नृत्य किया। ख़ुशी में उनकी आँखें छलछला रही थी।

संगीत के बाद केक काटा गया ,  वर- वधू  को अंगूठी पहनाई गयी, मेवा -बताशे से गोद भरी गयी। पूरे कार्यक्रम में सीमा के स्वसुर का उत्साह देखते बनता था।  बहू का हाथ पकड़कर केक कटवाने से लेकर अंगूठी पहनाने  तक वे साये की तरह सीमा के आसपास ही मंडराते नजर आ रहे थे।  महिलाओं की खुसुर- पुसुर चालू थी , बहुत खुशकिस्मत है सीमा।

रोशनी  , संगीत , उल्लासमय वातावरण , अच्छा भोजन , घर लौटते सीमा का मानसिक तनाव काफी कम हो चूका था, मगर माँ कुछ अनमनी -सी दिख रही थी।
 क्या  हुआ माँ  , तुम्हे कैसे लगे सीमा के ससुराल वाले।  
कुछ नहीं।  अच्छे हैं।  शोरशराबे से थकान हो जाती है मुझे !
निकलते समय कॉफी पी लेनी थी।  कोई नहीं , घर चल कर पी लेते हैं। 

घर आकर माँ काफी देर तक सीमा के स्वसुर के अत्यंत उत्साही व्यहार पर सोचती रही , मगर किसी से कहा कुछ नहीं। 
गहराती रात में खिड़की के परदे सरकाकर बाहर चाँद निहारते तेजस्वी भी सोचती रही देर तक।  हर दिन एक अँधेरे में डूबता है और सवेरा फिर सूर्य की रोशनी में जगमगाता। यूँ तो अँधेरा किसे भाता है मगर  चांदनी रात में अँधेरा भी कितना सम्मोहक होता है , रोशनी भी आँखों को चौंधियाए नहीं तभी भाती है वर्ना तो वेल्डिंग मशीने भी कितनी किरणे बिखेरती है , आँखों पर चश्मा न हो तो आँखे खराब। 
क्या -क्या सोचने लगी वह।
लैंप की बत्ती बुझा सूर्य के संतुलित प्रकाश की  सम्भावना लिए नींद पलकों पर भारी हो आई। 

आलिया के केबिन में अनाथाश्रम , बालश्रम ,  बालश्रमिकों के शोषण आदि  विषयों पर चर्चा करते हुए तेजस्वी की नजरे बार -बार टेबल पर रखी   लाल फ़ोल्डर वाली फाईल पर टिक जाती।  उसका हेडिंग  जाना -पहचाना सा लग रहा था।  चर्चा समाप्त होकर कमरे से बाहर निकलते आखिर उसने फाईल उठाकर पलट ही ली।  वह शक्ति सदन की विस्तारित  रिपोर्ट थी जिस पर प्रस्तुतकर्ता का नाम पढ़ा उसने - सिमरन बर्वे। तेजस्वी हतप्रभ उदास सी  कमरे से बाहर निकल आयी।  उसका प्रोजेक्ट किसी और  नाम से पूर्ण हो चूका था।
सिमरन ने भी काफी काम किया था इस पर , एक गहरी सांस लेकर तेजस्वी ने स्वयं को समझाया मगर मित्रता का यह नया रूप देखकर तेजस्वी चकित थी।  सिमरन के साथ ही उसे सुचित्रा के व्यवहार पर  भी अचम्भा हो आया था। स्वयं मन को टटोला उसने , दृढ महिला के रूप में उनकी छवि में क्या बचा रह गया था उसकी समझ से परे।  उसे समझ आने लगा था कि  घर से बाहर की दुनिया बहुत विचित्र है।  माँ -पिता  की समझाइशें इतनी व्यर्थ नहीं थी।   

वह सिमरन के साथ अपनी मित्रता के पलों को स्मरण करती रही। एक दिन उसके लिखे  आलेख  पर बहस करते  अंग्रेजी में धाराप्रवाह अपने विचार प्रस्तुत कर रहे मनीष को  सिमरन ने  उसे टोका था  , क्यों अंग्रेजी झाड़ रहे हो , उससे क्या फायदा होगा , तुम्हे पता नहीं कि तेजस्वी हिंदी मीडियम से है। 
साथियों के होठों की दबी मुस्कान के साथ  सिमरन  का विजयी भाव उसे सब समझा तो रहा था , मगर आँखों पर बंधी मित्रता की पट्टी ने उसे बतौर  मजाक अथवा  टांग खिंचाई जैसे ही लिया था। जब -तब बहनजी कह देना भी वह इग्नोर ही करती आई थी। 
पीछे छोड़ आये कुछ और पन्ने भी उलटे उसने। उसने सोचा फिर से एक लेख पर मनीष की उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया पर भी सिमरन का व्यवहार अखरना चाहिए था उसे।  एक साथ ही संस्कृत , हिंदी ,अंग्रेजी और उर्दू भाषा पर अपनी तीव्र पकड़  के साथ प्रखर प्रतिभाशाली मनीष अपने साथियों ही नहीं ,वायब्रेंट मीडिया हाउस से जुड़े  पाठकों , दर्शकों में भी अत्यंत लोकप्रिय था। अपने कार्यक्षेत्र में प्रगति करते विद्वानों की प्रशंसा बहुत मायने रखती है , तेजस्वी फूली नहीं समा रही थी मगर सिमरन ने विशेष कुछ भी कहा नहीं था बल्कि स्वयं की अन्य उपलब्धियों के बारे में बात करते विषय ही बदल दिया था।  

यह सब कुछ अखरा क्यों नहीं उसे , तो क्या मित्रता के रिश्तों में  अब तक वह सिर्फ मूर्ख ही बनती  आई थी, सोचते स्मृतियों के तार  उलझते जाते थे. खैर तेजस्वी को अटकना नहीं था , आगे ही बढ़ना था।  नाम तेजस्वी यूँ ही तो नहीं रख गया था।  

 बाल श्रमिकों की वर्त्तमान स्थितियों पर अपनी खोज पर कई हैरतअंगेज चौंकाने वाले तथ्य  उसके सामने थे।   बाल कल्याण के लिए निर्मित की जाने  वाली सरकारी संस्थाओं के आंकड़े मानवता को शर्मसार करते नजर आते थे। बाल  कल्याण के लिए निर्मित विभिन्न आश्रय स्थलों से भागने अथवा गायब होने वाले बच्चों की संख्या उसे विस्मित कर रही थी।  दर दर भीख मांग कर गुजर करने वाले बच्चे इन सुविधाजनक आश्रय स्थलों पर टिकना क्यों नहीं चाहते , क्यों बार- बार भागने के प्रयास करते हैं , सम्मान पूर्वक मिलने वाला भोजन और आश्रय इन्हे क्यों नहीं सुहाता , घर पहुँचते , खाना खा कर विश्राम करते भी उसके दिमाग में प्रश्न अटके ही थे।  

चींचीं के मधुर कलरव से नींद खुली उसकी , नारंगी आभा के साथ सूर्यदेव प्रकट हुआ ही चाहते थे , माँ बालकनी में पक्षियों के लिए अनाज और पानी रख कर आयी थी। बहुत बचपन से माँ को  पक्षियों को दाना खिलाते देखा है उसने। दाना चुगने आती नन्ही चिड़िया , कबूतर , तोते उसे सदा लुभाते रहे थे। एक बार  पिंजरे में पक्षी पालने के लिए वह कितना मचली थी , मगर माँ ने सख्ती से मना कर दिया था। तेजस्वी को समझाया था माँ  ने कि पंछी तो उड़ते- फिरते ही लुभाते हैं , तुमने देखा नहीं उन्हें , वे यहाँ रखें पानी और दाने से ज्यादा इधर -उधर बिखरे हुए दाने  या बहते पानी की ओर ही अधिक भागते हैं। घायल पक्षी के संरक्षण के लिए बेहतर स्थान उपलब्ध करवाना उचित है , मगर आकाश में उन्मुक्त उड़ते पक्षी को पिंजरे की कैद में रखना आमनवीय है। ये पक्षी मनुष्य से अधिक स्वतंत्रता प्रेमी होते हैं !

पक्षियों की चहचहाहट के बीच उसे आश्रम के बच्चों का ख्याल हो आया  और अपना  कार्य भी।  उसे बाल विकास मंत्रालय से जुड़े आश्रयस्थलों और  बाल भवन के अतिरिक्त कुछ स्वयंसेवी संस्थानों से भी जानकारी प्राप्त करनी थी। ऑफिस में मनीष व अन्य साथियों के साथ  ग्रुप डिस्कशन के बाद उन्होंने अपनी खोज की रुपरेखा तय की और उत्साही  कदम चल पड़े एक नयी मंजिल  की राह पर  । 


क्रमशः  
रुकावटें  जीवन का सहज हिस्सा है, कई बार इंसान टूट जाता है , बिखर जाता है तो कई बार दृढ बनता है , मनीष और तेजस्वी को कितनी रुकावटे मिलती है , देखते हैं अगली किश्त में !

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