सोमवार, 25 जून 2012

तंज़ करना आसान है , सहन करने के लिए ज़िगर चाहिए !






  • दूसरों पर व्यंग्य कर हंसने में कौन बडाई है , स्वयं पर करे और दूसरों को हंसने दें तब कोई बात है !
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    उत्तर

    1. वाणी जी,अगर आप ठीक से देखें तो हमने अपने ऊपर भी व्यंग्य किया है.

      ...और जो व्यंग्यकार है उस पर तो व्यंग्य करने में और मजा है.केवल अपने पर ही व्यंग्य करना अच्छा हो तो यह विधा ही समाप्त हो जायेगी.आप दूसरों पर व्यंग्य करने के लिए स्वतंत्र हैं,मगर बिना किसी छल-कपट के !
    2. इसको यूँ पढ़ लीजिये कि यदि कोई दूसरा हम पर करें , तो हम उसे भी ख़ुशी -ख़ुशी बर्दाश्त कर सकें!

      ये निर्धारित कौन करे कि कौन सी टिप्पणी/लेख बिना छल कपट के लिखा गया!!

      यह या पूर्व टिप्पणी व्यक्तिगत नहीं है , इसे अखिल ब्लॉगजगत के सम्बन्ध में देखिये !

    सुज्ञ24 जून 2012 9:23 pm
    व्यंग्य विधा एक तरह से सुरक्षित सजगता प्रयोजन से होती है. विवेकवान व्यंग्यकार हमेशा विचारों विषय मन्तव्यो पर ही चोट करते है. किन्तु लोगों का ईगो अपने विचारों के साथ भी जडता से जुडाव लिए होता है, अक्सर विचारों पर व्यंग्य को व्यक्तिगत अपमान के अभिप्राय में ले लिया जाता है.
  • आदरणीय सुज्ञ जी - थिअरी में होता होगा ऐसा जैसा आप कह रहे हैं - किन्तु प्रेक्टिकली मैंने इस विधा को बहुत ही कम इस तरह से प्रयुक्त होते देखा है | अक्सर (और अधिकतर) तो यह व्यंग करने वाले की मंशा व्यक्ति पर प्रहार ही होती देखि है, विचार पर या परिस्थिति पर नहीं |

    मैं व्यंग्य के लक्ष्य की नहीं, बल्कि व्यंग्यकर्ता के मंतव्य की बात कर रही हूँ | बात वहीँ आ जाती है फिर से - कि कर्म जो हो रहा है / किया जा रहा है, उसके classification के लिए उसके पीछे का मंतव्य ज्यादा महत्त्व रखता है - कर्म अपने आप में उतना अहम् नहीं है | गीता वाली लेखमाला के एक भाग में भी मैंने कहा था - यदि एक व्यक्ति सेना में है और अपनी बन्दूक से युद्ध के दौरान १०० दुश्मन सिपाहियों को मार दे - तो वह इनाम पाता है | किन्तु वही सैनिक छावनी में किसी बात पर क्रोधित हो कर उसी बन्दूक से एक भी इंसान को मार दे - तो वह फांसी के लिए नामित हो जाता है |

    तो बात यह नहीं की वार का लक्ष्य उस व्यंग्य को किस रूप में ले रहा है - बात असल में यह महत्त्व रखती है की व्यंग्यकार व्यंग्य कर किस उद्देश्य से रहा है ? परिस्थितियों को सुधारने के लिए ? सामने वाले के विचार उसे नहीं जंचते - तो अपनी असहमति दिखने और विचार परिवर्तन करवाने के उद्देश्य से ? सिर्फ मजाक, मस्ती, हंसी भर के लिए ? या उसे किसी बात से चोट लगी है और क्रोध के चलते ? या किसी से शत्रुता है उस शत्रुता के चलते ?

    हाँ - जिस पर व्यंग्य किया जा रहा हो - वह बहुत ही महान हो और पचा सके तो बात अलग है - किन्तु सार्वजनिक तौर पर व्यंग्य प्रहार से क्रोध आना बहुत ही साधारण सी बात है | आपके जैसे उच्च मानसिक स्तर वाले लोगों को न आता होगा क्रोध - मैं आप जैसे एक्सेप्शंस की बात नहीं कर रही, किन्तु आम जन की बात कर रही हूँ |
  • वाणी जी - आभार :)
  • आदरणीय शिल्पाजी और वाणी जी,
    यह कतई हास्य-व्यंग्य है और इसे इसी रूप में लिया जाना चाहिए.मेरी कोई खुंदक यदि अनूप जी से है तो इस बारे में वे ही बता सकते हैं.हमारी और उनकी संवादहीनता की स्थिति भी नहीं है !

    ...वे परले दर्जे के व्यंग्यकार हैं,ऐसे ही लिखते और टिपियाते रहते हैं.यह और बात है कि आपका व्यंग्य का हाजमा दुरुस्त नहीं है,खासकर शिल्पाजी के अनुसार !

    ..अभी तक अनूप जी ने इसे सीरियसली नहीं लिया है,अगर आप ऐसा ही कहती रहीं तो वे भी सोचने लगेंगे कि क्या सचमुच ऐसा ही है !

    ...मैं जहाँ तक जानता हूँ और जैसा उन्होंने कहा भी है कि इससे उनको मजा आया है.अब तो इसी बात का इंतज़ार है कि कब वे हमारी खटिया खड़ी करें और हमें फुल-मजा आए !
  • कृपया अनूपजी का खुद का अवलोकन देखिये !

    http://hindini.com/fursatiya/archives/1816
  • पता नहीं आपको यह क्यों लग रहा है कि आपकी खुंदक की बात हो रही है , यहाँ सवाल ब्लॉगिंग की प्रवृति का है . मैं पहले ही कह चुकी हूँ कि यह टिप्पणी व्यक्तिगत नहीं है इसलिए इस प्रवृति में वह भी शामिल हैं जिनका लिंक आपने दिया है !
    उदाहरण वह शब्द है ही जो वे कई बार इस्तेमाल करते हैं और आपने भी इस पोस्ट में किया है!
    हटाएं
  • exactly .. मैं और वाणी जी बात "व्यंग्य प्रवृत्ति" की कर रहे हैं | इस पोस्ट की / आपकी / अनूप शुक्ल जी की नहीं |

    @ यह और बात है कि आपका व्यंग्य का हाजमा दुरुस्त नहीं है,खासकर शिल्पाजी के अनुसार !
    जी - मेरा तो दुरुस्त बिलकुल नहीं है | :)

    व्यंग्य विधा मुझे बिलकुल ही हजम नहीं होती , specially जब वह व्यक्ति पर हो | हाँ सिस्टम पर हो - पोलिटिक्स पर हो (पोलिटिशियंस पर नहीं , पोलिटिक्स पर ) तब तो दवा की कडवी गोली की तरह निगल पाती हूँ | परन्तु व्यक्ति पर तो बिलकुल नहीं |

    यह आपका या आपकी इस पोस्ट का या फुरसतिया जी की उस पोस्ट का इशु नहीं है मेरे लिए |


    उन्हें यदि किसी पर हँसना या व्यंग्य करना आता है तो स्वयं पर भी उतनी सहजता से लेते हैं

    सच्ची?
    तनिक ताका झांकी कर लीजिए कि चिट्ठाचर्चा ब्लॉग पर कितनी टिप्पणियाँ हटाई/ हटवाई गईं हैं




    अपने दुःख को सहन करना और मुस्कराना बड़े जिगर का काम है ...
    दूसरों पर तंज़ कसना और खिलखिलाना सबसे आसान ...
    बात ही बात में कितनी पते की बात कही आपने !